कोलकाता के बाद होती है पटना की दुर्गा पूजा की चर्चा, 100 साल से भी पुरानी समितियां बनाती हैं भव्य पंडाल
दुर्गा पूजा की चर्चा हो तो कोलकाता और हावड़ा के बाद पटना का ही नाम आता है। पटना में दुर्गा पूजा के मौके पर विशाल पंडाल और भव्य देवी प्रतिमाएं बनाने की परंपरा है। यहां की कई पूजा समितियों का अतीत 100 से 150 साल तक पुराना है।
By Shubh Narayan PathakEdited By: Updated: Sat, 09 Oct 2021 02:12 PM (IST)
पटना, प्रभात रंजन। Dussehara in Patna: दुर्गा पूजा की चर्चा हो तो कोलकाता और हावड़ा के बाद पटना का ही नाम आता है। पटना में दुर्गा पूजा के मौके पर विशाल पंडाल और भव्य देवी प्रतिमाएं बनाने की परंपरा लंबे अरसे से चली आ रही है। यहां की कई पूजा समितियों का अतीत 100 से 150 साल तक पुराना है। शहर में बनने वाले भव्य पंडाल देखने के लिए पटना के साथ ही आसपास के भी जिलों से लोग आते रहे हैं। पिछले साल कोविड संक्रमण के कारण पूजा पंडाल नहीं बने और मूर्तियों की स्थापना नहीं की गई। इस बार पूजा पंडाल और प्रतिमाएं तो दिखेंगी, लेकिन उनपर कोविड गाइडलाइन का असर दिखेगा। बंगाली अखाड़ा पूजा समिति, डाकबंगला चौराहा, दुर्गाश्रम बेली रोड, चूड़ी मार्केट, गोविंद मित्रा रोड आदि कई समितियों का पुराना इतिहास रहा है। शहर के प्रमुख पूजा समितियों के इतिहास पर प्रकाश डालती रिपोर्ट। इस स्टोरी के साथ संलग्न सभी तस्वीरें वर्ष 2019 या उससे पहले की हैं।
आजादी के दीवानों ने की थी मां दुर्गा की पूजा
शहर के बंगाली अखाड़ा पूजा समिति का इतिहास काफी पुराना है। यहां पर बंगाली पद्धति से वर्षों से मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना होते रही है। पूजा समिति के संयुक्त सचिव अशोक चक्रवती की मानें तो बंगाली अखाड़ा का नामकरण इसलिए हुआ कि यहां पर 1893 के पहले कुश्ती की प्रतियोगिता हुआ करती थी। यहां स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से बचने के लिए कुश्ती करने के बहाने आंदोलन को लेकर रणनीति बनाते थे। अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उसी वर्ष नवरात्र के मौके पर मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना आरंभ की थी। आजादी के दीवानों ने पूजा की परंपरा का जो शुभारंभ किया था, वो आज भी जारी है।
एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं बंगाली अखाड़ा की प्रतिमाएंबंगाली अखाड़ा पूजा समिति के संयुक्त सचिव ने बताया कि इस वर्ष पूजन का 129 साल पूरा हो जाएगा। यहां पर स्थापित होने वाली मूर्ति की खास बात है कि मां की सभी प्रतिमाएं एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा बिना काट-छांट किए कोलकाता के मूर्तिकार अशोक पाल बनाते रहे हैं। यहां पर षष्ठी से मां की पूजा आरंभ होती है और मां की प्रतिमा का पट भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। सप्तमी व नवमी तक आरती के समय धुनुची नृत्य यहां पर लोगों को आकर्षित करते रहती है। वहीं इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर धुनची नृत्य व कई सांस्कृतिक कार्यक्रम पर रोक रहेगी। परंपरा का निर्वाह करते हुए इस बार सामान्य रूप से पूजा होगी।
दुर्गाश्रम में 82 वर्षो हो रही मां की पूजा, पंचमी को कलश स्थापना शहर की पुरानी पूजा समितियों में से एक शेखपुरा के बेली रोड स्थित दुर्गाश्रम पूजा समिति की ओर से वर्ष 1939 से हो रही है। दुर्गाश्रम बेली रोड के सचिव रंजीत कुमार ने बताया कि आरंभ के दिनों में यहां पर मां का पिंड स्थापित था। नवरात्र के समय यहां पर मेला लगता था। मां के पिंड की पूजा के लिए दूर-दराज से भक्त आते थे। पटना का यह ऐसा पूजा पंडाल है, जहां कलश की स्थापना नवरात्र के पहले दिन नहीं बल्कि पंचमी तिथि को होती है। पूजा समिति प्रायोगिक झांकियों और पंडाल के लिए हमेशा चर्चा में रही है। वर्ष 2013 में यहां भगवान शंकर की जटा से निकलने वाली मां गंगा को माता दुर्गा द्वारा रोकने की झांकी को श्रद्धालुओं ने खूब पसंद किया था। वहीं, इस वर्ष कोरोना गाइडलाइन के तहत मां की प्रतिमा सात फीट होगी। इस बार शेखपुरा से लेकर मंगल मार्केट तक सामान्य रूप से लाइटिंग की व्यवस्था की जाएगी।
57 वर्षो से पूजा पंडाल मां दुर्गा की पूजा शहर के आकर्षण का केंद्र रहने वाला डाकबंगला चौराहे की पूजा समिति श्रद्धालुओं का मन मोहित करते रही है। नवयुवक संघ श्री दुर्गा पूजा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष संजीव प्रसाद टोनी बताते हैं कि लगभग दो दशक से मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना दुर्गा पूजा के समय होते रही है। वर्ष 1964 से संघ की ओर से आयोजन होता रहा है। बीते 57 वर्षों से चौराहे पर दुर्गापूजा का आयोजन होता रहा है। यहां पर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के मूर्तिकार जगन्नाथ पाल आते रहे हैं। कोरोना के कारण बीते वर्ष प्रतिमा स्थापित नहीं किया गया था, बल्कि फ्लैक्स के जरिए मां दुर्गा की झलक श्रद्धालुओं को मिली थी। इस वर्ष भी यहां पर प्रतिमा स्थापित नहीं होगी। जिला प्रशासन ने पंडाल बनाने की अनुमति नहीं दी है। सामान्य पंडाल बना थ्री-डी फ्लैक्स पर प्रिटिंग के जरिए मां की झलक दिखाने का प्रोग्राम है।
62 वर्षो से पूजा पंडाल बना मां की पूजा पटना के डाकबंगला चौराहे पूजा समिति के बाद कदमकुआं स्थित डोमन भगत सिंह लेन पूजा समिति श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। बीते छह दशकों से पूजा पंडाल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। आयोजन समिति के अध्यक्ष पंकज कुमार ने बताया कि यहां पर 62 वर्षो से प्रतिमा स्थापित कर पूजा होते रही है। सचिव राकेश अग्रवाल ने बताया कि 1959 से लेकर 1985 तक भारत माता की प्रतिमा बैठाई गई थी। यहां मां की प्रतिमा के हाथों में तिरंगा होता था, जो अपने आप में अलग होता था। 1985 के बाद से अष्टधात्री मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है। इस बार सरकार की गाइडलाइन के अनुसार सामान्य पूजा पंडाल बना पूजा की जाएगी। लाइटिंग की व्यवस्था के लिए चंदन नगर के कारीगर आएंगे।
88 वर्षो से प्रतिमा स्थापित कर हो रही पूजा शहर के खाजपुरा शिव मंदिर का पूजा पंडाल आकर्षण का केंद्र रहा है। दुर्गापूजा महोत्सव खाजपुरा शिव मंदिर के महासचिव पुनील कुमार ने बताया कि पूजा पंडाल 1932 से बनते आ रहा है। यहां पूजा शिव मंदिर के निर्माण के समय से हो रहा है। मां की प्रतिमा बनाने को लेकर बंगाल प्रति वर्ष कोलकाता से कारीगर आते रहे हैं। इस वर्ष आशियाना मोड़ से जगदेव पथ तक पंडाल बनाया जाएगा। मां की प्रतिमा भी छोटे आकार की होगी।
104 वर्षो से माता के सौम्य रूप की हो रही पूजा शहर के कदमकुआं स्थित शिव मंदिर चूड़ी मार्केट में होने वाली मां के प्रतिमा की पूजा कई वर्षो से हो रही है। पूजा समिति के अध्यक्ष शशिरंजन मिश्रा की मानें तो यहां पर पहली बार 1918 में दुर्गामाता की मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद माता की प्रतिमा की स्थापित कर अनवरत पूजा अर्चना जारी है। इस बार कोरोना गाइड लाइन को देखते हुए छह से आठ फीट की माता की प्रतिमा स्थापित होगी।
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