India Emergency 1975: आपातकाल का वह दौर, जब बिहार में फैली थी लालू यादव की मौत की अफवाह
India Emergency 1975 तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लागू आपातकाल के विरोध ने लालू प्रसाद यादव की राजनीति को आधार दिया। तब वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में सक्रिय रहे। एक बार सेना की पिटाई में उनके मरने तक की अफवाह फैल गई थी।
By Amit AlokEdited By: Updated: Fri, 25 Jun 2021 11:05 AM (IST)
पटना, ऑनलाइन डेस्क। India Emergency 1975 राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की राजनीतिक पैदाइश आपातकाल (Emergency) एवं कांग्रेस (Congress) की खिलाफत के साथ परवान चढ़ी थी। हालांकि, आज उनकी राजनीति 'यू' टर्न लेकर महागठबंधन (Mahagathbandhan) में कांग्रेस (Congress) के साथ है। यह बात फिर कभी, फिलहाल चर्चा आपातकाल के दौर के लालू की करते हैं। साल 1975 के 25 जून को लागू किए गए आपातकाल के विरोध में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन (JP Movement) में सक्रिय रहे लालू उस वक्त एक छात्र नेता (Student Leader) थे। आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई, वे जेल में भी रहे। एक बार तो सेना की पिटाई में उनकी मौत की अफवाह (Rumor of Lalu Prasad Yadav Death) से सनसनी फैल गई थी।
छात्र राजनीति के दौरान जेपी के करीब पहुंचे लालू लालू प्रसाद यादव का जन्म गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में हुआ था। परिवार गरीब था। भाई मुकुंद चौधरी ने उन्हें पटना लाकर शेखपुरा मोड़ के सरकारी स्कूल की पांचवीं कक्षा में नामांकन करा दिया। अब लालू अपने भाई के ही साथ पटना वेटनरी कॉलेज के एक कमरे के बिना शौचालय के विहीन क्वार्टर में रहने लगे। वे शौच के लिए खेत में जाते थे। लालटेन के लिए केरोसिन तेल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। किसी तरह पढ़कर पटना विश्वविद्यालय में पहुंचे। पढ़ाई के लिए रिक्शा तक चलानी पड़ी। बच्चे थे तो डॉक्टर बनने का सपना था, लेकिन एलएलबी किया। ये अलग कहानी है। खैर, पटना विश्वविद्यालय (Patna University) की छात्र राजनीति में सक्रियता के दौरान लालू धीरे-धीरे जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) के करीब पहुंच गए। छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे लालू प्रसाद यादव बतौर छात्र नेता 1974 में जेपी आंदोलन से जुड़े। इसके पहले वे 1971 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव तथा 1973 में अध्यक्ष बने थे।
जेल गए, एक बार मरने तक की फैली थी अफवाह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिारा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा लागू आपातकाल के खिलाफ जब बिहार से जयप्रकाश नारायण की सशक्त आवाज गूंजी तो लालू भी उसके साथ हो लिए। आंदोलन के दौरान पुलिस की लाठियां खाईं, गिरफ्तार होकर जेल भी गए। एक बार तो लालू प्रसाद यादव की मौत की अफवाह से सनसनी मच गई थी। यह वाकया 18 मार्च 1974 का है। सड़कों पर उतर आए छात्रों के आंदोलन में लालू भी शामिल थे। उधर, सरकार आंदोलन को कुचलने पर आमादा थी। उसने आंदोलनकारियों के खिलाफ सेना (Indian Army) को उतार दिया। उस दिन सेना ने आंदोलनकारियों को जमकर पीटा था। इस घटना के बाद यह अफवाह फैल गई कि सेना की पिटाई से बुरी तरह घायल लालू की मौत हो गई है। बाद में लालू के सामने आने के बाद मामला शांत हुआ।
आपातकाल की याद में बेटी का नाम रखा 'मीसा' अब लगे हाथ आपातकाल (Emergency) से जुड़ा लालू का एक और किस्सा भी जान लीजिए। उस दौरान जब साल 1975 में लालू को आंतरिक सुरक्षा कानून (MISA) के तहत गिरफ्तार किया गया था, उनकी बेटी का जन्म हुआ। तब लालू ने बेटी का नाम 'मीसा' रख दिया। लालू कहते थे कि यह नाम उन्हें इंदिरा गांधी के आपातकाल व जेल जाने की याद दिलाता रहेगा। अब इसे राजनीति की विडंबना ही कहिए कि जिस कांग्रेस शासन के आपातकाल के विरोध में लालू ने आंदोलन किया और जिसकी याद में बेटी का नाम मीसा (भारती) रखा, आज उसी के साथ खड़े हैं।
आज घोटालों से घिरा चपरासी क्वार्टर वाला सीएम बहरहाल, आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव (LS Election) में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। देश में जनता पार्टी (Janata Party) की सरकार आई तो बिहार में लालू यादव का राजनीतिक कद भी बढ़ता गया। जनता पार्टी के टिकट पर वे महज 29 साल की उम्र में सांसद बने। लालू ने 1980 में बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में एंट्री ली। वे 1985 में फिर विधायक बने। साल 1989 तक बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहने के बाद 1990 में मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री (CM) बने तो रहने के लिए चपरासी क्वार्टर चुना। पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब 'सबआल्टर्न साहेब- बिहार एंड द मेकिंग ऑफ़ लालू यादव' में लिखा है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू अपने भाई के चपरासी वाले घर में रहने लगे थे। अब इसे भी राजनीति का खेल ही कहेंगे कि कभी चपरासी क्वार्टर से राज्य चलाने वाला यह राजनेता आज बेनामी संपत्ति व घोटालों के कई आरोपेां से घिरा है। चारा घोटाला (Fodder Scam) में तो सजायाफ्ता भी है।
आपातकाल ने दी राजनीति को धार, आज भी विपक्ष की धुरी जाे भी हो, यह तथ्य है कि लालू की राजनीति को आपातकाल के विरोध ने धार दी। वक्त के साथ इसमें कई टर्न आए, चारा घोटाला में फंसकर कुर्सी भी चली गई, जेल भी जाना पड़ा, लेकिन बिहार में उनकी अहमियत बरकरार रही है। आज भी बिहार में उनके बिना राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती है।
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