Bihar Best Tourist Spots: दर्शनीय हर पथ, आध्यात्मिक चेतना होती साकार; यह है बुद्ध का बिहार
बुद्ध ने जंगल-पर्वत को अपना मार्ग बनाया। इनके आसपास रहने वाले तब के समाज के लोग जिनमें उपेक्षित वंचित समुदाय भी था। शिष्यत्व के लिए उस समय उमड़ते लोग। एक असाधारण यात्रा के यात्री भगवान बुद्ध। वेणु वन से जेठियन। जेठियन यानी गया जिले में प्रवेश कर रहे हैं। इस राह पर कहीं स्तूप मिलेंगे कहीं बुद्ध की स्मृतियों के चिह्न। हर पग पर ज्ञान का प्रकाश।
अश्विनी, पटना। समय के साथ थोड़ा-बहुत परिवर्तन स्वाभाविक है, पर वे जंगल-पर्वत, नदी, सरोवर आज भी हैं। ये सामान्य प्राकृतिक दृश्य भर नहीं। उस अतीत की कल्पना भर से जैसे कोई प्रकाशपुंज मन को छू ले, जहां कभी उस पथिक के पांव पड़े थे, जो घर-परिवार छोड़ ज्ञान की खोल में निकला हो। राजकुमार सिद्धार्थ!
इन वन, पर्वत, नदी-सरोवर ने उस राजकुमार को देखा। उस बुद्धत्व को भी, जिसने राजकुमार को बना दिया भगवान बुद्ध। ज्ञान की खोज में 'पर्यटन विहार' पर निकले उस यात्री की यात्रा का साक्षी है बिहार। गया जिले के बोधगया की उस तपोभूमि को तो पूरी दुनिया जानती है, पर राजकुमार से बुद्ध बनने की वह यात्रा! जिसकी कल्पना भर से स्पंदन तो उसकी अनुभूति क्या होगी। इसके लिए करना होगा बिहार का भ्रमण। जिस होकर बुद्ध चले, बस उस राह पर बढ़ते चले जाएं। ज्ञान की खोज में घर छोड़कर निकले राजकुमार का स्वागत करता नालंदा।
जहां विश्वविख्यात विश्वविद्यालय हुआ करता था। जिसे विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने जला डाला था। इसी नालंदा जिले का राजगीर प्रखंड। यहां है वेणु वन। जब राजकुमार सिद्धार्थ भ्रमण करते हुए यहां पहुंचे तो इसे विश्राम स्थल बनाया था। नालंदा से सटा हुआ गया जिला, जिसे जोड़ती है एक पर्वत शृंखला। वे इसी होकर बढ़ते गए। आज वे स्थल विभिन्न प्रखंड क्षेत्र के अंतर्गत हैं। उन प्रखंडों से होते हुए यात्रा की जा सकती है।
जंगल-पर्वत के बीच वेणु वन का प्राकृतिक सौंदर्य जैसे कदमों को रोक ले। बुद्ध को यह स्थल यूं ही प्रिय नहीं रहा होगा। उन्होंने कहा था-आनंदमयी राजगीर रमणीय है और रमणीय है वेणु वन का कलन्दक सरोवर। यह सरोवर भी यहीं है। कलन्दक पाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है गिलहरी। अतीत के साक्ष्यों के साथ आज भी यह स्थल रमणीय है, दर्शनीय है।
बुद्ध ने जंगल-पर्वत को अपना मार्ग बनाया। इनके आसपास रहने वाले तब के समाज के लोग, जिनमें उपेक्षित, वंचित समुदाय भी था। शिष्यत्व के लिए उस समय उमड़ते लोग। एक असाधारण यात्रा के यात्री भगवान बुद्ध। वेणु वन से जेठियन। जेठियन, यानी गया जिले में प्रवेश कर रहे हैं। इस राह पर कहीं स्तूप मिलेंगे, कहीं बुद्ध की स्मृतियों के चिह्न। हर पग पर ज्ञान का प्रकाश। नालंदा से गया, यहां तक के पड़ाव में पर्वत शृंखला बनी रहती है। गया जिले में ही गुरपा प्रखंड के गुरुपद पहाड़ी के बाद ढुंगेश्वरी है, जहां बुद्ध पहुंचे थे। फिर बोधगया। तब उरुवेल वन कहा जाता था। यहीं बोधगया में है महाबोधि मंदिर। पीपल का वह वृक्ष, जिसके नीचे ज्ञान प्राप्त कर राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध बन गए।
बोधगया के बगल में ही सुजातागढ़। यहां बहुत बड़ा स्तूप है। कहा जाता है कि यहीं की एक युवती सुजाता ने तप से स्वयं को जीर्ण-कर चुके राजकुमार को खीर (पायस) खिलाई थी। राजकुमार की चेतना लौटी, बुद्धत्व मिला और बुद्ध बनकर फिर निकल पड़े दुनिया को ज्ञान देने। फिर उसी राह से लौटे, जिस होकर आए थे। राजगीर के वेणु वन में इस बार मगध के राजा बिम्बिसार को बुद्ध मिले थे, जिन्होंने पुन: वापस आने का वचन दिया था। यहीं है गृद्धकूट पर्वत। चारों ओर वन की हरियाली। यहीं उन्होंने उपदेश दिया था। इस पर्वत पर 160 फीट ऊंचा स्तूप है, जिसे जापान के बौद्ध धर्मगुरु निचिदाराचे फूजी ने 1969 में बनवाया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उसकी आग में धधक रही दुनिया को शांति का संदेश।
बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद वापस लौटे तो ताड़वन में पहला आश्रय है। यह स्थल भी यहीं है। राजगीर में वैभारगिरी चोटी पर सप्तवर्णी गुफा बुद्ध की तपस्या की कहानी सुना रही। गया के जेठियन और नालंदा जिले के राजगीर के बीच 13 किलोमीटर की दूरी है। यहां प्रत्येक किलोमीटर पर एक स्तूप है। बुद्ध मार्ग के एक भाग में अब नेचर सफारी का आनंद भी है। बगल में ही सिलाव है। यहां आचार्य शीलभद्र का टीला है, जो सातवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नालंदा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष (कुलपति) थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग के गुरु भी। यहां का खाजा बहुत प्रसिद्ध है।
बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद बिहार के हर क्षेत्र में पहुंचे, जहां ऐतिहासिक साक्ष्य और प्रतीक चिह्न भी उपस्थित हैं। इन प्रखंडों से यात्रा करते हुए वैशाली जिला में प्रवेश करने पर चेचर (तब कोटिग्राम) गांव मिलता है। आज का चेचर 24 गांवों का समूह था। बुद्ध के इस क्षेत्र में 12 बार आने के प्रमाण है। यहां संग्रहालय भी है, जिसमें कई पुरातात्विक साक्ष्य हैं। पटेढ़ी बेलबर प्रखंड के बेलबर (तब बेलुग्राम) में उन्होंने 483 ईसा पूर्व अपने निर्वाण की घोषणा की थी।
नारी सशक्तीकरण के प्रति उनका कितना बड़ा आग्रह था कि यहीं पर महिलाओं को भिक्षुणी बनने की सलाह भी दी। अर्थात, स्वयं के पथ से जोड़ा। यहां से मुजफ्फरपुर होते हुए पूर्वी चंपारण का केसरिया है। यहां भी बहुत बड़ा स्तूप है। पश्चिम चंपारण के लौरिया प्रखंड में भी 15 स्तूप हैं। रमपुरवा में विशाल बौद्ध स्तंभ है।
इन स्थलों पर भ्रमण से ही बुद्ध पथ की यात्रा पूरी होती है। पूर्व बिहार की ओर बढ़ें तो भागलपुर में चंपानगर है, जहां गग्गरा पुष्करिणी पर बौद्ध संगति हुई थी। कहलगांव प्रखंड में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष बुद्ध की पहुंच का प्रमाण हैं। बांका के अमरपुर प्रखंड के भदरिया गांव में हाल ही में खोदाई में मिले अवशेष उनके आने का प्रमाण दे रहा। बिहार में बुद्ध की यह यात्रा है। सुषमा से भरपूर स्थल, आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह, ज्ञान की खोज के साक्षी पथ।
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