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किडनी प्रत्यारोपण में बिहार का पहला कदम, IGIMS में हुई शुरुआत

लंबे इंतजार के बाद सोमवार का दिन (14 मार्च) बिहार के चिकित्सकीय इतिहास का पन्ना बन गया। पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में सूबे का पहला किडनी प्रत्यारोपण किया गया।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Tue, 15 Mar 2016 12:54 PM (IST)
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पटना [सुमिता जायसवाल]। लंबे इंतजार के बाद सोमवार का दिन (14 मार्च) बिहार के चिकित्सकीय इतिहास का पन्ना बन गया। पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) में सूबे का पहला किडनी प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) किया गया। दिल्ली एम्स से दो दिन पहले आई चिकित्सकों की टीम ने संस्थान के डॉक्टरों की मदद से यह प्रत्यारोपण किया। मंगलवार को दूसरा प्रत्यारोपण होगा ।

50 वर्षीय महिला को जीवन :

पहला किडनी प्रत्यारोपण 50 वर्षीया महिमा (काल्पनिक नाम) का किया गया। उसके 40 वर्षीय भाई (महीम) ने अपनी किडनी दान में दी है। मरीज को 14 दिनों तक गहन निगरानी में रखा जाएगा। उसके बाद सर्जरी की सफलता सुनिश्चित हो सकेगी। एम्स, नई दिल्ली के डॉ. वी सीनू के नेतृत्व में यह प्रत्यारोपण हुआ।

सर्जरी के उपकरण का हो इंतजाम : डॉ. वी सीनू ने 'दैनिक जागरण' से बातचीत में कहा कि 1997 से वे प्रत्यारोपण कर रहे हैं। एम्स, नई दिल्ली में वे हर वर्ष 140 किडनी प्रत्यारोपण करते हैं। बिहार में यह सर्जरी संस्थान के निदेशक डॉ. एनआर विश्वास और एम्स, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा के सहयोग से की गई है। डॉ. सीनू ने कहा कि यहां फिलहाल कुछ सर्जरी उपकरण जैसे रिट्रैक्टर और वैस्कुलर नहीं हैं। सर्जरी के लिए कुछ उपकरण वे अपने साथ दिल्ली से लाए थे।

उन्होंने बताया कि प्रत्यारोपण में आइजीआइएमएस के नेफ्रो, यूरोलॉजी, रेडियोलॉजी, जनरल सर्जरी और एनेस्थीसिया के विभागाध्यक्ष ने सहयोग किया। संस्थान के 5-6 डॉक्टर को किडनी प्रत्यारोपण का अनुभव है। प्रत्यारोपण के नियमों के मुताबिक 20-30 प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद ही आइजीआइएमएस के डॉक्टर सर्जरी कर सकेंगे।

डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मरीजों को ज्यादा जरूरत : डॉ. वी सीनू का कहना है कि डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की ज्यादा जरूरत पड़ती है। रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें खानपान का ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा जैसे नियमित शुगर टेस्ट कराते हैं, वैसे ही यूरिन टेस्ट कराना चाहिए।

संस्थान के निदेशक डॉ. एनआर विश्वास ने कहा कि राज्य में पहली बार किडनी प्रत्यारोपण की शुरुआत उनकी पूरी टीम की मेहनत का नतीजा है। इसके अलावा बिहार सरकार से उन्हें भरपूर सहयोग मिला। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन और स्वास्थ्य सेवा के निदेशक आजाद ङ्क्षहद प्रसाद को प्रत्यारोपण के लिए समय सीमा के अंदर अनुमति देने के लिए धन्यवाद किया।

क्यों पड़ती है जरूरत

इंसान के शरीर में दो किडनी होती हैं, जिनका काम शरीर में खून से विषैले पदार्थ एवं अनावश्यक पानी निकालकर उसे साफ-सुथरा रखना होता है। किडनी की क्रोनिक बीमारी इलाज से पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती। अंतिम अवस्था में उपचार केवल डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण से ही संभव है।

आसान नहीं है प्रत्यारोपण

- जब डॉक्टर स्पष्ट करता है कि गुर्दे ने काम करना बंद कर दिया है।

- कानूनी तौर पर रिश्तेदारों को दाता के रूप में चुना जाता है। या कोई अन्य सहमति से दान कर सकता है।

- दाता की जांच कर पता लगाया जाता है कि गुर्दा मरीज के अनुरूप है कि नहीं।

- पहले दाता की लैप्रोस्कोपी की जाती है। गुर्दे को बाहर निकालकर उसे संभालकर रखा जाता है।

- मरीज की ओपन सर्जरी की जाती है। इसके लिए रोशनी के साथ हवादार वातावरण की आवश्यकता होती है।

- ट्रांसप्लांट योग्य डॉक्टर, सर्जन, और यूरोलॉजिस्ट की मौजूदगी में होता है।

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