बिहार में चूहे खाने को मजबूर बाढ़ से घिरे दलित, DM बोले- कोई समस्या नहीं
बिहार के सहरसा में दलित गांव बनाही में लोग चूहे खाकर गुजारा कर रहे हैं। दूसरी ओर डीएम ने कहा कि ग्रामीण ऐसा मजबूरी में नहीं बल्कि आदतन कर रहे हैं।
पटना [वेब डेस्क]। बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों, खासकर कोसी व सीमांचल में हालात काफी खराब हैं। कोसी के पानी का दंश झेल रहे सहरसा जिले के कई गांवों में भोजन-पानी का जुगाड़ समस्या बन गई है। सहरसा के सलखुआ प्रखंड स्थित दलित आबादी वाले बनाही गांव के लोग तो चूहे खाकर भूख मिटा रहे हैं।
इस बाबत पूछने पर डीएम विनोद सिंह गुंजियाल ने कहा कि गांव में चूहे आसानी से मिल रहे हैं, इसलिए लोग खा रहे हैं। डीएम के दलित बस्ती में राहत नहीं पहुंचने के कारण ऐसा होने से इंकार किया है।
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बाढ़ से घिरी एक हजार दलित आबादी
सहरसा के सलखुआ में दलितों का गांव है बनाही। यहां की करीब एक हजार की आबादी बाढ़ से घिरी है। गांव के पौने दो सौ घर चारों तरफ बाढ़ के पानी से घिरे हैं। कहने को तो प्रशासन बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री का वितरण कर रहा है, लेकिन यहां के लोगों के अनुसार उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। खाने-पीने का सामान लाना भी मुश्किल हो गया है।
खतों से निकल ऊंची जगह पहुंचे चूहे
ग्रामीण ऊंची जमीन पर शरण लिए हुए हैं। उधर, बाढ़ का पानी भर जाने के कारण खेतों से निकलकर सांप व चूहे आदि जीव भी बड़ी संख्या में वहां पहुंच गए हैं। भूख से परेशान आबादी ने चूहों को खाना शुरू कर दिया है।लोग मजबूरी में चूहे खा रहे हैं।
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यूं किया मजबूरी बयां
बनाही गांव के रामोतार सादा और रामविचार सादा ने बताया कि वे लोग कई दिनों से गांव में कैद होकर रह गए हैं। भोजन के अभाव में चूहा खाने की मजबूरी है। गांव के प्रभु सादा व अंगूरी सादा के अनुसार वे रोजाना दर्जन भर से अधिक चूहे पकड़ लेते हैं।
40 से 50 रुपये किलो बिक रहे चूहे
गांव के बेचन सादा जैसे लोगों ने तो इस मजबूरी में अपना व्यवसाय ढ़ूंढ़ लिया है। वे चूहा मारकर बेचते हैं और जो नहीं बिकता है, खा लेते हैं। ये लोग चूहे पकड़कर 40 से 50 रुपये किलो तक के दमा में बेच रहे हैं।