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नवादा के पूर्व विधायक गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन, पटना के अस्‍पताल में ली आखिरी सांस

कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन लंबे समय से चल रहे थे बीमार पटना के निजी अस्पताल में ली अंतिम सांस पहली बार 1977 में बने थे विधायक वे बिहार के नवादा जिले के रजौली के रहने वाले थे।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Updated: Tue, 12 Jan 2021 08:05 AM (IST)
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कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक गणेश शंकर विद्यार्थी। फाइल फोटो

नवादा/रजौली, जागरण टीम। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव व पोलित ब्यूरो के सदस्य पूर्व विधायक गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन हो गया है। सोमवार की देर रात बिहार की राजधानी पटना के एक निजी अस्पताल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वे बिहार के नवादा जिले के रजौली के रहने वाले थे।

अभी रजौली नहीं आया है पार्थिव शरीर

उनके निधन की खबर देर रात में ही उनके शुभचिंतकों और उनके स्‍वजनों को रजौली में मिल गई थी। इसके बाद सभी लोग उनके अंतिम दर्शन करने के लिए जुटने लगे। सुबह तक उनका पार्थिक शरीर रजौली नहीं आया था। उनका अंतिम संस्कार पटना में होगा या रजौली में, अभी कुछ  स्पष्ट नहीं हो पाया है।

97 वर्ष की उम्र में भी मदद को रहते थे तत्‍पर

गणेश शंकर विद्यार्थी 97 वर्ष की उम्र में भी लोगों के लिए सेवा भावना से काम करने को तत्पर रहते थे। कोई भी व्यक्ति उनके दरवाजे पर अगर पहुंचता था तो वे मना नहीं करते थे। लाठी के सहारे पर चलते हुए वह किसी बाबू के ऑफिस में पहुंच जाते थे और उनके साथ गए लोग बाबू के ऑफिस में उनका आदर और सम्मान देखकर गदगद हो जाते थे। काम हो या ना हो, लेकिन उनको जो सम्मान पूरे बिहार में मिलता था, इससे सभी लोग संतुष्ट रहते थे।

कांग्रेसी परिवार में थे इकलौते कम्‍युनिस्‍ट

गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म रजौली में वर्ष 1924 हुआ था। उनका परिवार इलाके में काफी प्रतिष्ठित था। बताया जाता है कि गणेश शंकर विद्यार्थी वर्ष 1952 से ही राजनीतिक में आए थे। उनका पूरा परिवार कांग्रेसी था। परिवार में वह इकलौता ऐसे शख्‍स थे जो कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खड़े होकर अंतिम सांस तक चलते रहे।

12 बार लड़े चुनाव, दो बार हासिल की जीत

उन्होंने 12 दफा चुनाव लड़ा, जिसमें दो बार ही उन्हें जीत मिली थी। नवादा विधानसभा क्षेत्र से 1977 और 1980 में उन्हें जीत मिली थी। बताया जाता है कि गणेश शंकर विद्यार्थी अल्प आयु से ही लोगों के लिए काम करना चाहते थे। 12 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजी हुकूमत के समय अंग्रेजी हुकूमत के इमारत पर नवादा में तिरंगा फहराने वाले वामपंथी थे।