देश में धूमधाम से मनाई जा रही हरितालिका तीज, जानें इसकी पूजा विधि; हरियाणा से बिहार का यह व्रत कैसे अलग?
उत्तर भारत में आज सुहागिन महिलाओं द्वारा बड़े ही धूमधाम से हरितालिका तीज मनाई जा रही है। बिहार में मुख्य तौर पर इसे किया जाता है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। अगर आप भी हरितालिका तीज की पूजा कर रही हैं तो आपको जानना चाहिए कि क्या है पूजा की सही विधि और इसके पीछे की पौराणिक कथा।
जागरण डिजिटल डेस्क, पटना: उत्तर भारत के कई हिस्सों में आज बड़े धूमधाम से हरितालिका तीज मनाई जा रही है। बिहार की सुहागिनों ने भी अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखा है। अगर आप भी हरितालिका तीज की पूजा कर रही हैं, तो आइए बताते हैं कि क्या है पूजा की सही विधि और इसके पीछे की पौराणिक कथा...
हरितालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे कठिन व्रत माना जाता है। हालांकि, बिहार के अलग-अलग हिस्सों में इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। कहीं पर यह एक दिन का होता है तो कहीं पर इसे दो दिनों भी मनाया जाता है। जो महिलाएं इसे दो दिन मनाती हैं, वो एक दिन पहले से नमक खाना छोड़ देती हैं। नहाय खाय के दिन वो खाने में मीठा लेती हैं।
क्यों पड़ा हरितालिका नाम?
हरित का अर्थ 'हरण' होता है और तालिका का अर्थ 'सखी'। इसलिए इस व्रत को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है।
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क्या है पौराणिक कथा?
हरितालिका तीज को लेकर मान्यता है कि एक बार देवी पार्वती का उनकी सखियों ने अपहरण कर लिया था। उन्हें लेकर वो कहीं चली गईं। ऐसे में माता पार्वती बालू का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गईं। तब से ही इसे सुहागिन महिलाएं मनाती आ रही हैं।
पूजा करने की सही विधि
ये व्रत पति की लंबी आयु, घर में सुख, शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत महिलाएं रखती हैं। इस व्रत के दिन प्रदोष काल में शाम को सूर्य अस्त होने के बाद मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा साम्रगी के तौर पर 5 तरह के फल, फूल, धूप, घी, दीप आदि मौजूद होते हैं। इस दिन दान-पुण्य करने की भी परंपरा है।
हरियाली तीज और हरितालिका तीज एक ही है क्या?
हरियाली तीज और हरितालिका तीज एक नहीं है। हरियाली तीज सावन के महीने में मनाई जाती है, जबकि हरितालिका तीज भादो के महीने में मनाई जाती है।
हरितालिका तीज का कई सालों से व्रत करती आ रही निर्मला देवी बताती हैं कि हमारे बिहार में इसे कहीं पर एक दिन तो कहीं पर दो दिन भी मनाते हैं। हम लोग व्रत से एक दिन पहले नहाय खाय के दिन खाने में कुछ मीठा लेते हैं। उसके बाद पूरा दिन निर्जला होता है। जिसमें पानी की एक बंद भी नहीं लेते। अगले दिन सूर्य उदय होने के बाद पूजा-पाठ के पश्चात व्रत खोलते हैं।
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