'निर्भीक और दृढ़ निश्चयी क्रांतिकारी थे टिपन मौआर...', अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते प्राणों की दे दी थी आहूति
इस बार पूरा देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। ऐसे में आज उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को को याद करने का दिन है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में योगदान दिया। 19 अगस्त 1942 का दिन बिहटा के लोगों के लिए अविस्मरणीय रहा है। यहां के रणबांकुरों ने जिस वीरता के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी उसकी कहानी आज भी रोंगटे खड़ी कर देने वाली है।
रवि शंकर, बिहटा: 19 अगस्त 1942 का दिन बिहटा के लोगों के लिए अविस्मरणीय रहा है। यहां के रणबांकुरों ने जिस वीरता के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी, उसकी कहानी आज भी रोंगटे खड़ी कर देने वाली है। बिहटा के राघोपुर निवासी टिपन मौआर ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वीरता की नई परिभाषा लिखी थी।
वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा पूरे देश मे गूंज रहा था। देशभक्तों द्वारा सरकारी भवन पर तिरंगा फहराया जा रहा था।
बिहटा में गूंज रहा था आजादी की लहर
आजादी की लहर बिहटा में भी गूंज रहा था। बिहटा क्षेत्र की स्थिति काफी भयावह हो गयी थी। बिहटा स्टेशन पर 105 बोगियों वाली खड़ी दो मालगाड़ी को 12 अगस्त 1942 से 14 अगस्त 1942 तक लुटा गया।
स्टेशन पर चढ़ाई कर रेल की पटरियां उखाड़ी गई। दो केबिन,थाना, सरकारी दफ्तर, पोस्ट ऑफिस में आग लगा दिया गया था। ऐसा लगा मानो बिहटा से अंग्रेजी सरकार का शासन उठ गया हो। फिर 18 अगस्त को भारी संख्या में जवान भेजे गए। वहीं, 19 अगस्त को आजादी के दीवाने जुटे थे।
बिहटा के राघोपुर में हाथ मे तिरंगा लेकर अपनी आवाज बुलंद करते हुए देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिये नारेबाजी कर रहे थे तब अंग्रेजों ने दमन के लिये जो कुछ किया वो कहानी आज भी लोगों के मन में गुंजती है।
आंदोलन को कुचलने के लिये हुआ था बल प्रयोग
आंदोलन को कुचलने के लिये आंदोलनकारियों पर अंग्रेजों ने लाठियां बरसाना शुरू कर दिया, लेकिन आज़ादी के दीवानों को इसकी परवाह कहां थी। अचानक गोलियां भी चलने लगी। गोली चलते ही भीड़ तीतर-बितर हो गए, लेकिन जब धुंध छटी तो आजादी के इस लड़ाई में बिहटा के राघोपुर निवासी टिपन मौआर शहीद हो चुके थे।
उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया। उनकी सहादत से प्रेरणा लेकर हजारों युवा स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।
शहीद टिपन मौआर के पौत्र सिविल सर्जन डॉ. ललित मोहन शर्मा ने अपनी मां के द्वारा बताई गई बातों को साझा करते हुए कहा कि वे एक निर्भीक और दृढ़ निश्चयी क्रांतिकारी थे।
देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत
17 अगस्त क्रांति को पटना के जेपी गोलंबर पर सात सहोदर भाई की आहुति के बाद उनका खून खौल गया था। आंदोलन को तेज करते हुए 19 अगस्त को फिरंगियों के साथ लड़ते-लड़ते अपनी प्राणों की आहुति दे दी। उनकी वीरता की गाथा देशवासियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है।