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भाजपा-जदयू के अंदर क्‍या चल रहा है? क्‍यों हो रहा अमित शाह के बिहार आने का इंतजार, INSIDE STORY

बिहार में भाजपा और जदयू के रिश्‍ते काे लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा हो रही है। भाजपा नेता ऐसे मुद्दे भी उठा रहे हैं जो जदयू के लिए सहज नहीं होता। अब सबकी नजरें 31 जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे पर टिकी है।

By Vyas ChandraEdited By: Updated: Thu, 28 Jul 2022 02:17 PM (IST)
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सीएम नीतीश कुमार, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सुशील मोदी। जागरण आर्काइव
अरुण अशेष, पटना। Bihar Politics: क्या सचमुच बिहार में एनडीए के दो बड़े घटक दलों-भाजपा और जदयू (BJP and JDU) में सबकुछ ठीक चल रहा है? यह सवाल अब राजनीतिक गलियारे से बाहर निकल कर आम लोगों के बीच पहुंच गया है। वजह, भाजपा उन प्रसंगों को सार्वजनिक मंच पर उठाने से परहेज नहीं कर रही है, जो जदयू के लिए अप्रिय है।

आरएसएस पर कमेंट से भाजपा नाराज 

इस संदर्भ में फुलवारीशरीफ की घटना नई है। वहां पुलिस ने कुछ ऐसे लोगों को पकड़ा, जिन पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है। ये पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (PFI) के सदस्य हैं। फिलहाल इस मामले की जांच की जिम्मेवारी एनआइए (NIA) को सौंप दी गई है। इस प्रकरण में पटना के सीनियर एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों की टिप्पणी पर भाजपा ने गहरी आपत्ति जाहिर की। ढिल्लों ने पकड़े गए लोगों के हवाले से कहा था कि पीएफआई भी आरएसएस (RSS) की तरह लोगों को शारीरिक प्रशिक्षण देता है।

सुशील मोदी की मांग से गरमाई सियासत 

बाद में ढिल्लों ने सफाई दी कि उन्होंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा। वही कहा जो पकड़े गए लोगों ने पूछताछ के दौरान कहा था। भाजपा के कई नेताओं ने एसएसपी की आलोचना की। उन्हें बर्खास्त करने की मांग की। पूर्व उप मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी (Ex Deputy CM Sushil Modi) भी कूद पड़े। उन्होंने भी एसएसपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर दी। मोदी की मांग को इसलिए गंभीर माना गया, क्योंकि उन्हें भाजपा के अंदर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का परम हितैषी माना जाता है। 

यह अंतिम मामला नहीं है

फुलवारीशरीफ के मामले में दोनों दलों की अलग-अलग राय पहला और आखिरी मामला नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के तुरंत बाद से दोनों के संबंध पहले जैसे नहीं रह गए थे। असली खटास लोजपा के चिराग पासवान (Chirag Paswan) के कारण पैदा हुई। जदयू ने नोट किया कि उसकी खराब चुनावी उपलब्धि के लिए चिराग जिम्मेवार हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में जदयू को दी गई प्राय: सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। यह भी कि चिराग को जदयू को छोटा करने की जिम्मेवारी भाजपा की ओर से दी गई थी। जदयू ने इसका ठोस कारण भी जुटाया। 

चिराग को भाजपा ने सौंपी थी ये जिम्‍मेवारी 

चिराग ने एक दर्जन से अधिक ऐसे लोगों को उम्मीदवार बना दिया था, जो भाजपा के थे और हार के बाद फिर भाजपा में ही लौट आए। जवाब में जदयू ने भी उन नेताओं को वापस बुला लिया, जो बागी बन कर चुनाव लड़े थे। बीच में चिराग प्रकरण ठंडा पड़ गया था। राष्ट्रपति चुनाव के समय चिराग की सक्रियता बढ़ी। इससे माना जा रहा है कि भाजपा उन्हें भाव दे रही है। भाजपा की ओर से लोजपा चिराग गुट को एनडीए का अंग मान लिया गया है। 

विशेष दर्जा का मुद्दा मरा नहीं

केंद्र सरकार के मंत्रियों ने संसद में और भाजपा के नेताओं ने बाहर में कई बार बता दिया है कि बिहार क्या अब किसी राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता है। भाजपा का कहना है कि केंद्र सरकार ने विशेष राज्य का दर्जा तो नहीं दिया, लेकिन पैकेज के रूप में राज्य को काफी धन दे दिया है। केंद्र से मदद जारी है। खैर, जदयू विशेष राज्य के मुद्दे पर बहुत जोर नहीं दे रहा है। इसे उस स्तर तक ही उछाल रहा है, ताकि यह मुद्दा मरे नहीं और रिकार्ड में दर्ज भी रहे कि जदयू इस मांग को छोड़ नहीं रहा है। ताकि अवसर मिलने पर इसे फिर से उछाला जा सके।

जाति आधारित गणना पर भी नहीं है एकमत

जाति आधारित गणना भी ऐसा ही विषय है, जिस पर भाजपा-जदयू के बीच मतैक्य नहीं था। विधानसभा में सबसे बड़े दल राजद (RJD) का समर्थन मिला तो जदयू मजबूत हुआ। ना-नुकुर के बाद भाजपा भी राजी हो गई और अब बिहार में जाति आधारित गणना की प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्रारंभ में भाजपा ने इसे गैर-जरूरी बताया। प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल ने दार्शनिक अंदाज में कह दिया-सिर्फ दो जाति है-अमीर और गरीब। कुछ मंत्रियों ने कहा कि जातियों को गिनने से बढ़‍िया है कि जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) के लिए कानून बना दिया जाए। केंद्र में आरसीपी सिंह (RCP Singh) को मंत्री बनाने पर भी दोनों दलों में दूरी बढ़ी। जदयू की मांग थी कि केंदीय मंत्रिमंडल में उसे दो या तीन जगह मिले। इसे भाजपा ने एक पर समेट दिया। 

मानसून सत्र में तकरार

बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में भी दोनों दलों के बीच की बढ़ती हुई खाई नजर आई। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक की खोज पर एक विशेष बहस का आयोजन किया तो उससे जदयू ने खुद को अलग कर लिया। बहस के दौरान जदयू विधायकों की अनुपस्थिति से नाराज विधानसभा अध्यक्ष ने इस आयोजन को स्थगित कर दिया। विधानसभा के भीतर दोनों दलों का मनमुटाव कई मौके पर उजागर हुआ। मानसून सत्र छोटा था। अगर बड़ा होता तो कुछ और हो सकता था। यह सब चल ही रहा था कि राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में 30 जून को हुए सभी स्थानांतरण रद कर दिए गए। 

गृहमंत्री की यात्रा का इंतजार 

राजनीति में दिलचस्पी रखने मगर किसी दल से जुड़ाव न रखने वाले तटस्थ लोग केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बिहार यात्रा का इंतजार कर रहे हैं। शाह 31 जुलाई को पटना आ रहे हैं। वे भाजपा मोर्चा संगठनों की कार्यकारिणी बैठक के समापन सत्र को संबोधित करेंगे। कयास लगाया जा रहा है कि शाह की बिहार यात्रा के समय ही इस सवाल का जवाब मिल पाएगा कि दोनों दलों के बीच सबकुछ ठीक है या सचमुच गठबंधन पर संकट है। वैसे, संसदीय कार्य और शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी माहौल को यह कह कर सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं कि गठबंधन में आल इज वेल का सीन है। हालांकि बुधवार को लालू प्रसाद के करीबी पूर्व विधायक भोला यादव के घर पड़े सीबीआई के छापे में कुछ लोग परिवर्तन की आहट भी सुनने लगे हैं। 

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