Lalan Singh का अब क्या होगा? उथल-पुथल पर BJP की पैनी नजर, Nitish Kumar खुद उठाएंगे सच और अफवाह से पर्दा
Bihar Politics ललन सिंह से नीतीश की नाराजगी के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि वे (ललन सिंह) जदयू-राजद को मिला कर एक दल बनाना चाहते हैं। यह भी कि भले ही नीतीश कुमार किसी पद की इच्छा न रखते हों लेकिन उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि आईएनडीआईए में उन्हें सम्मानजनक स्थान मिलेगा। यह अब तक नहीं मिला।
अरुण अशेष, पटना। बिहार में नए राजनीतिक समीकरण को लेकर कई चचाएं चल रही हैं। विरोधी इन्हें सच मान रहे हैं। महागठबंधन अफवाह बता रहा है। आम लोग भ्रम में हैं। उम्मीद की जा रही है कि सच या अफवाह से उत्पन्न भ्रम का निवारण शुक्रवार (29 दिसंबर) को हो जाएगा। उस दिन नई दिल्ली में जदयू की राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह के अलावा जिला अध्यक्ष, सांसद-विधायक और परिषद-कार्यकारिणी के सदस्य जुट रहे हैं। एजेंडा पार्टी संगठन और लोकसभा चुनाव में पार्टी की भूमिका पर विचार करना है। इस बैठक की घोषणा के साथ ही कई चर्चाएं होने लगी हैं। दो अधिक हैं। एक ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से विदा हो रहे हैं। दो- जदयू एक बार फिर राजग का अंग बनने जा रहा है।
मुख्यमंत्री के करीबी वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी का दावा है कि ऐसा कुछ नहीं है। महागठबंधन एकजुट है, लेकिन वह उतने ही उत्साह से यह दावा नहीं कर रहे हैं कि ललन सिंह आगे भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे। राजनीतिक गलियारे में इन चर्चाओं को तर्कपूर्ण बनाने का प्रयास किया जा रहा है। ललन सिंह से नीतीश की नाराजगी के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि वे (ललन सिंह) जदयू-राजद को मिला कर एक दल बनाना चाहते हैं। यह भी कि भले ही नीतीश कुमार किसी पद की इच्छा न रखते हों, लेकिन उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि आईएनडीआईए में उन्हें सम्मानजनक स्थान मिलेगा। यह अब तक नहीं मिला।
सच यह भी है कि ललन सिंह ने कभी जदयू-राजद को मिलाकर एक दल बनाने की चर्चा सार्वजनिक तौर पर नहीं की। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, जिससे उनके और नीतीश कुमार के बीच मतभेद का प्रदर्शन हो। चार दिन पहले कहा था कि उनके और मुख्यमंत्री के बीच विश्वास का अटूट संबंध है।
राजद से दूरी
इंवेस्टर्स मीट सहित कई महत्वपूर्ण आयोजनों में मुख्यमंत्री की उपस्थिति और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अनुपस्थिति को भी महत्व दिया जा रहा है। तेजस्वी की अनुपस्थिति को लेकर चर्चाएं कुछ अधिक तेज हो गई थीं। बाद में वे कई जगहों पर मुख्यमंत्री के साथ नजर आए। ललन सिंह के पद को लेकर हो रही चर्चाओं से राजद ने खुद को पूरी तरह अलग रखा है।
हां, जमीन के बदले नौकरी मामले में चल रही ईडी की जांच के परिणाम को लेकर भी एक चर्चा है। अगर इस मामले में ईडी की पहल पर न्यायालय का कोई आदेश तेजस्वी की सामान्य राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करने लगे तो नीतीश क्या करेंगे?
बीजेपी क्या चाहती है?
महागठबंधन में हो रही कथित उठापटक में भाजपा के हित का कोण भी देखा जा रहा है। इसके अनुसार भाजपा चाहती है कि लोकसभा के अगले चुनाव में राजद से सीधा मुकाबला हो। यह उसके लिए हितकारी होगा। इस कोण में नीतीश की राजग में वापसी के लिए जगह की खोज हो रही है। आंकलन यह है कि सीधा मुकाबला होने पर राजद विरोधी वोटर राजग के पक्ष में एकमुश्त वोट करेंगे। अगर नीतीश महागठबंधन के साथ रहते हैं तो सीधा मुकाबला संभव नहीं है, क्योंकि राज्य में अच्छी आबादी उन लोगों की है, जिन्हें राजद से परहेज है, लेकिन नीतीश की उपस्थिति भर से महागठबंधन उनके लिए अश्पृश्य नहीं हो जाता है। यह 2015 के विधानसभा चुनाव में हुआ था।
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