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SC/ST Reservation: कितने भुइयां-मुसहर IAS-IPS अफसर हैं? जीतन राम मांझी का कोटे में कोटा को लेकर सवाल

आरक्षण के अंदर आरक्षण से जुड़े मामले को लेकर अब जीतन राम मांझी ने प्रतिक्रिया दी है। मांझी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह 10 साल पहले ही आ जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यह कहां तक उचित है कि जो आगे बढ़ गए उन्हीं को आगे बढ़ाया जाए। मांझी ने इशारों ही इशारों में चिराग पासवान से भी तीखा सवाल पूछा लिया।

By Rajat Kumar Edited By: Rajat Mourya Updated: Mon, 05 Aug 2024 07:58 PM (IST)
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जीतन राम मांझी ने कोटे में कोटा को लेकर तीखा सवाल पूछा है। (फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, पटना। आरक्षण के अंदर आरक्षण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम के संस्थापक एवं केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि ये फैसला 10 साल पहले आना चाहिए था। पिछले 76 साल से अनुसूचित जाति (एससी) आरक्षण का चार ही जातियों ने फायदा उठाया है। यह कहां तक उचित है कि जो आगे बढ़ गए, उन्हीं को आगे बढ़ाया जाए।

आरक्षण के निर्णय पर चिराग पासवान के विरोध जताए जाने के सवाल पर मांझी ने कहा कि यह अपना-अपना विचार है। आप बताइए कि भुइयां, मुसहर, मेहतर जैसी पिछड़ी जाति के कितने आईएएस-आईपीएस अफसर हैं? कितने चीफ इंजीनियर हैं? जो चार जातियां आज क्षोभ व्यक्त कर रही हैं, उनका तो सब है।

'पुनर्विचार और समीक्षा में फर्क होता है'

उन्होंने कहा कि आरक्षण से जुड़े फैसले का चुनौती देने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने 76 वर्ष तक इसका लाभ लिया है। बाबा भीम राव अंबेडकर ने भी दस साल पर इसकी समीक्षा का विचार दिया था। पुनर्विचार और समीक्षा में फर्क होता है। समीक्षा इसलिए ताकि यह पता चल सके कि दस साल में हमने क्या खोया और क्या पाया। अंबेडकर साहब की मान्यता है कि सबसे नीचे होने का मानदंड साक्षरता है।

'भुइयां, मेहतर, नट जैसी जातियों की साक्षरता दर बहुत नीचे'

उन्होंने कहा कि एससी की साक्षरता दर 30 प्रतिशत है। उसमें भी भुइयां, मेहतर, नट जैसी जातियों की साक्षरता दर बहुत नीचे है। जिसकी साक्षरता सात या आठ प्रतिशत है, उसको तो आगे बढ़ाना ही चाहिए।

मांझी ने कहा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में साल 2011-12 में ही यह व्यवस्था कर दी थी कि अनुसूचित जातियों में दलित और महादलित होंगे। उस वर्गीकरण को भी कुछ लोगों ने कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे कोर्ट ने अमान्य कर दिया था। उसी चीज को सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा है।

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