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सीताराम दीन की रचनाधर्मिता पर पड़ा कबीर का प्रभाव

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में मनाई गई जयंती

By JagranEdited By: Updated: Wed, 06 Nov 2019 10:46 PM (IST)
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सीताराम दीन की रचनाधर्मिता पर पड़ा कबीर का प्रभाव

पटना। स्मृतिशेष कवि डॉ. सीताराम 'दीन' पर संत कवि सद्गुरु कबीर का गहरा प्रभाव था। वे कबीर साहित्य के विद्वान मर्मज्ञ और बड़े अध्येता थे। यही कारण है कि उनके साहित्य में स्थान-स्थान पर कबीर का स्वर गूंजता दिखाई पड़ता है। ये बातें बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन परिसर में बुधवार को सुनने को मिलीं।

बिहार हिदी साहित्य सम्मेलन की ओर से कवि डॉ. सीताराम की जयंती पर संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें साहित्यकारों ने बढ़-चढ़ कर भाग लेते हुए कवि के व्यक्तित्व पर अपने विचार दिए। पटना विवि के पूर्व कुलपति और साहित्यसेवी डॉ. एसएनपी सिन्हा ने कहा कि कवि ने हिदी भाषा और साहित्य पर खूब काम किया। उनके गीतों का स्वर मानवतावादी है। नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि 'दीन' जितने बड़े कवि थे, उतने ही प्रेम भाव से ओत-प्रोत थे। साहित्य के प्रति उनका प्रेम भाव अनुकरणीय है। कवि की पुत्री डॉ. मंगला रानी ने कहा कि उन्हें पिता के व्यक्तित्व से काफी कुछ सीखने को मिला। सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा कि कवि डॉ. सीताराम एक संघर्षशील ही नहीं दिव्य पुरुष थे। उन्होंने अपने पुरुषार्थ और प्रतिभा से ज्ञान अर्जित किया और प्राध्यापक और साहित्यकार बने। उनका साहित्य सम्मेलन से गहरा संबंध रहा। संगोष्ठी के दौरान कवियों ने अपनी रचनाएं पेश कीं। कवि मृत्युंजय मिश्र 'करूणेश' ने 'बादल है घहराएगा ही, सागर है लहराएगा ही..', डॉ. शंकर प्रसाद ने 'वो क्या बताएगा मंजिल का रास्ता शंकर, जो खुद भटकता फिरे उसकी रहबरी क्या है..', कवि ओम प्रकाश पांडेय ने 'हथेली पर आग लेकर चलो, गद्दारों की गर्दन पर रेती का राग लेकर चलो..', कवि घनश्याम ने 'भूत भय भीरूता को भगा दीजिए, सुप्त निर्भीकता को जगा दीजिए..', डॉ. विजय प्रकाश ने 'कही-अनकही करें बतकही, बैठ बरगदी छांव में, एक बार फिर से मुझे बुला लो अपने गांव में.' जैसी रचनाओं को पेश कर सभी का दिल जीता। काव्य पाठ के दौरान कवि बच्चा ठाकुर, सुनील कुमार दुबे, राजकुमार प्रेमी, डॉ. सुधा सिन्हा, पूनम आनंद आदि ने अपनी रचनाएं पेश कीं। मंच का संचालन योगेंद्र मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।