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Bihar Special: 'बिहारी होना हिचक नहीं...' 'खाकी द बिहार चैप्टर' के चंदन ने कहा- किरदार के लिए बन बैठा ट्रक चालक

वेब सीरीज खाकी द बिहार चैप्टर को दर्शकों ने खूब प्‍यार दिया है। इसमें चंदन महतो का किरदार निभाने वाले अभिनेता अविनाश तिवारी ने बुधवार को दैनिक जागरण से बात करते हुए अपने कई अनुभव साझा किए। उन्‍होंने कहा कि शेखपुरा के अपराधी की कहानी जीवंत करने के लिए उन्‍हें कई दिनों तक ट्रक चालक का जीवन जीना पड़ा। इसके लिए उन्‍हें खूब मेहनत करनी पड़ी।

By Akshay Pandey Edited By: Arijita Sen Updated: Thu, 15 Feb 2024 11:22 AM (IST)
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वेब सीरीज 'खाकी द बिहार चैप्टर' के अभिनेता अविनाश।

जागरण संवाददाता, पटना। वेब सीरीज ' खाकी द बिहार चैप्टर' का किरदार चंदन महतो भले नकारात्मक था, पर फिल्मी पर्दे पर वह ऐसा सुर्ख हुआ कि सुगंधित हो सिने प्रेमियों के मन में बैठ गया। शेखपुरा के अपराधी की कहानी जीवंत करने के लिए गोपालगंज के अविनाश तिवारी ने कई दिन ट्रक चालक का जीवन जिया। धूप में खुद को तपाया, तब खाकी चमकी।

बिहारी होना गर्व की बात: अविनाश

पर्दे पर जयराम जी की बोलकर बंदूक उठाने वाले अविनाश ने बुधवार को दैनिक जागरण कार्यालय में बातचीत के दौरान कहा कि बिहारवासी जहां हैं, बेहतर कर रहे हैं। बिहारी होना हिचक नहीं, गर्व का एहसास है।

खाकी के गीत ठोक देंगे कट्टा कपार में, आइए न बिहार में का संदर्भ देते हुए अविनाश कहते हैं, लोग मुझसे पूछने लगे थे कि क्या यही बिहार है? वह कहते हैं कि राज्य से बाहर वालों के जहन में आज से 25 वर्ष पहले वाला राज्य ही बसा है। क्योंकि मैं बिहार से हूं, इसलिए चंदन को पेश करने में थोड़ी आसानी हुई। बावजूद इसके किरदार के साथ न्याय करने के लिए खूब पसीना बहाया।

चंदन ने जुटी भी प्रशंसकों की भीड़

वेब सीरीज को मिली प्रतिक्रिया पर अविनाश कहते हैं, दर्शकों तक पहुंचने के बाद जब बिहार आया तो पता चला कि खाकी क्या थी। चंदन ने भीड़ जुटा दी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इसे खूब पसंद किया गया।

चंदन प्रेरणादायक किरदार नहीं, पर सिनेमा एक पक्ष की कहानी कहता है। फिल्म का काम चर्चा शुरू करना है। यह श्रोताओं पर है कि वह किस निष्कर्ष तक पहुंचते हैं। सिनेमा में कहानी कहने और सुनने दोनों पक्ष की जिम्मेदारी होनी चाहिए।

कलाकार की चाहत भी रखती है मायने

बातचीत में अविनाश खुद को ऊर्जा देने वाली पक्तियां भी साझा कीं। कहा, तुम हीरे हो, तो होगे, चमकोगे तभी जब रोशनी तुमपर पड़ेगी।

फिल्म  ' लैला मजनू' को केंद्र में रख वह कहते हैं, इस विधा के 20 वर्ष के अनुभव में मुझे 15 साल लग गए इस मुकाम पर पहुंचने में कि मैं अपने नाम से फिल्म रिलीज करवा सकूं।

वह कहते हैं कि कलाकार के लिए यह जरूरी है कि वह क्या चाहता है। उसके क्या सपने हैं। वह किस स्थान पर खुद को देखता है। जो वह चाहता है, उसके काबिल है या नहीं। इन सबके साथ ऊपर वाले का आशीष भी जरूरी है।

जब अमिताभ के सामने जागा अंदर का बिहारी

टीवी सीरीज युद्ध के दौरान अमिताभ बच्चन के सिर में अविनाश की कोहनी लग गई थी। उस घटना की चर्चा करते हुए वह कहते हैं, उस समय तो लगा जैसे मेरी जान ही निकल गई हो। मुझे लगने लगा था कि अब तो करियर खत्म हो गया, फिर अंदर का बिहारी जागा। मैं अमिताभ सर के पास पहुंचा और माफी मांगते हुए फिर से रिहर्सल के लिए कहा। यह सुनते ही अमिताभ निर्देशक से बोले, कहां से लाए हो इसे? लेकिन उन्होंने बड़प्पन दिखाया और दोबारा तैयार हो गए।

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