Move to Jagran APP

रामनवमी पर विशेष: तब बैलगाड़ी से चंदे की ईंट लेकर बनाया गया था महावीर मंदिर

पटना के महावीर मंदिर में रामनवमी धूमधाम से मनाई जा रही है। लेकिन, कम लोगों को ही इस मंदिर का इतिहास पता है। नजर डालते हैं मंदिर के आरंभिक दौर पर।

By Amit AlokEdited By: Updated: Sun, 25 Mar 2018 06:27 PM (IST)
रामनवमी पर विशेष: तब बैलगाड़ी से चंदे की ईंट लेकर बनाया गया था महावीर मंदिर
style="text-align: justify;">पटना [अमित आलोक]। बिहार में रविवार को श्रीरामनवमी की धूम है। खासकर पटना के महावीर मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। लेकिन, एक दौर वह भी था जब महावीर मंदिर न तो इतना प्रसिद्ध था, न भव्य। पटना जंक्शन के सामने एक विशाल पीपड़ का पेड़ हुआ करता था, जिसके पास 'बिहार मिष्टान भंडार' था। वहीं रेलवे की जमीन पर बजरंगबली की जोड़ा प्रतिमा स्थापित की गई और पूजा शुरू हो गई।
स्टेशन जाने के लिए उस समय रास्ता कच्चा था जिसपर बैलगाड़ी चला करती थी। इसी रास्ते से गुजरने वाली बैलगाड़ी से चंदे में एक-एक ईंट एकत्र कर महावीर मंदिर बनाया गया था। रामनवमी के दिन यहा श्रद्धालु ढोलक-झाल लेकर लोग चैता गाते थे।
लेकिन, मंदिर का अस्तित्‍व इसके बहुत पहले से है। बताया जाता है कि इसे 1730 में स्वामी बालानंद ने स्थापित किया था। साल 1900 तक यह मंदिर रामानंद संप्रदाय के अधीन था। इसपर 1948 तक इसपर गोसाईं संन्यासियों का कब्जा रहा। आगे 1948 में पटना हाइकोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित कर दिया। मंदिर का वर्तमान स्‍वरूप 1983 से 1985 के बीच आया। इसमें आचार्य किशोर कुणाल के प्रयास उल्‍लेखनीय हैं।
पटना के पुराने लोग बताते हैं कि पटना जंक्शन के सामने बजरंगबली की मूर्ति की पूजा करने मीठापुर निवासी झूलन पंडित आते थे। वर्तमान महावीर मंदिर के पीछे अंग्रेजों का मुस्लिम कैंटीन था। मंदिर के पास लोहे का गेट था जो शाम के बाद बंद हो जाता था, ताकि स्टेशन की ओर कोई न जा सके। उस समय रात में ट्रेन भी नहीं चलती थी।
मंदिर के सामने बांकीपुर जेल था जहां आज की बुद्ध स्मृति पार्क है। मंदिर से पूरब चिरैयाटांड कुम्हारटोली के पास चंदवा पोखर था, जहां आसपास के गांव गोरियाटोली, पृथ्वीपुर, लोहानीपुर के लोग स्नान करते थे। यहां स्नान करने के बाद कई लोग महावीर मंदिर में पूजा करने जाते थे।
1930 में खुली लड्डू की दुकान
1930 के आसपास मीठापुर के महादेव लाल ने महावीर मंदिर के पास बेसन के लड्डू की दुकान खोली थी। इसके पहले यहां पेड़े की दुकान थी। उस समय न तो फूल-माला की दुकानें होती थीं और न ही प्रसाद की। ज्यादातर महिलाएं घर में बने पकवान लाकर मंदिर में पूजा करती थीं।
मंदिर में गाते थे चैता
रामनवमी के अवसर पर लोग घरों में उपवास रखते थे। महिलाएं पूजा के लिए पकवान बनाती थीं। हर घर से महावीरी पताका लेकर लोग मंदिर जाते थे। वहां ध्वजा गाड़ते थे। अब सब कुछ बदल गया है। गांव के साथियों के साथ रामनवमी के दिन महावीर मंदिर में चैता गाया जाता था।
शोभायात्रा में शामिल होते थे नौजवान
रामनवमी के दिन शोभा यात्रा की परंपरा भी पुरानी है। इसमें बड़ी संख्या में नौजवान शामिल होते थे। आज की तरह तब साधन नहीं थे, लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं दिखती थी।
यहां रखा राम सेतु का पत्थर, हनुमान जी की युग्‍म मूर्तियां स्‍थापित
इस मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है और मंदिर के गर्भगृह में भगवान हनुमान की मूर्तियां हैं। मंदिर में सभी देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यहां की एक खास बात यह है कि यहां रामसेतु का पत्थर कांच के बर्तन में रखा है। इसका वजन 15 किलो है और यह पानी में तैरता रहता है।
यह मंदिर अन्‍य हनुमान मंदिरों से अलग है, क्योंकि यहां बजरंगबली की युग्म मूर्तियां एक साथ हैं। एक मूर्ति परित्राणाय साधूनाम् अर्थात अच्छे लोगों के कारज पूर्ण करने वाली है और दूसरी मूर्ति- विनाशाय च दुष्कृताम्बु, अर्थात बुरे लोगों की बुराई दूर करने वाली है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।