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Know your Patna City: पटना सिटी के अजब गजब गलियों की है अलग पहचान, जानें रोचक इतिहास

Historical Patna City ऐतिहासिक पौराणिक और धार्मिक स्थलों को दामन में समेटे पटना सिटी में स्थापित हैं अजब-गजब नाम की गलियां। प्रत्येक गलियों का एक अपना सुनहरा इतिहास है। यहां सिखों के दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने वर्ष 1666 के पौष सुदी को जन्मे।

By Prashant KumarEdited By: Updated: Tue, 01 Dec 2020 03:35 PM (IST)
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बड़ा रोचक रहा है पटना सिटी की गलियों का इतिहास। जागरण आर्काइव।
पटना, अनिल कुमार ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक स्थलों को दामन में समेटे पटना सिटी में स्थापित हैं अजब-गजब नाम की गलियां। प्रत्येक गलियों का एक अपना सुनहरा इतिहास है। यहां सिखों के दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने वर्ष 1666 के पौष सुदी को जन्मे। त्याग, बलिदान व सेवा की अनूठी मिशाल पेश करनेवाले दशमेश गुरु ने धर्म की रक्षा के लिए पूरे परिवार को न्योछावर कर दिया। दशमेश गुरु की जन्मस्थली होने के कारण प्रतिदिन देश-विदेश से सैकड़ों लोग यहां आते हैं और सिटी की संकीर्ण गलियों के अजब-गजब गलियों का नाम सुनकर कौतुहलवश उसका इतिहास जानने का प्रयास करते हैं।

आइए सिटी की चार अजब-गजब गलियों के इतिहास में चलते हैं

कचौड़ी गली: गली के प्रतिष्ठित व्यवसायी शशिशेखर रस्तोगी बताते हैं कि अंग्रेजों के समय यहां कचहरी लगती थी। उस कचहरी में स्थानीय स्तर पर नागरिकों के समस्याओं का निष्पादन तथा न्याय दिलाया जाता था। अंग्रेज के समय इस गली का नाम कचहरी गली हुआ करता था। कालांतर में इस गली के मोड़ पर कचौड़ी- घुघनी और जलेबी की दुकानें लगने लगी। सुबह से ही नाश्ता करनेवालों की भीड़ जमा होने लगी। बदलते समय में कचहरी गली का नाम कचौड़ी गली में परिवर्तित हो गया। इस गली के मोड़ पर पटना सिटी की प्रर्सिद्ध मिठाई खुरचन बिकती है।

मिरचाई गली: गली के प्रतिष्ठित कारोबारी दीपू बागला बताते हैं कि काफी दशक पूर्व यहां मिर्च का हाट लगता था। नाव द्वारा गंगा मार्ग से मिरचाई गली में दूर-दूर से मिर्च लाकर कारोबार किया जाता था। गली में निर्मित दर्जनों गोदाम में मिर्च रखा जाता था। बदलते समय में गली में मिर्च का कारोबार समाप्त हो गया लेकिन पहचान आज भी मिरचाई गली के ही रूप में है।

फुलौरी गली: अशोक राजपथ से संकीर्ण मार्ग होकर अंदर जाने पर मिलता है फुलौरी गली। गली में रहनेवाले दूरदर्शन के वरीय पदाधिकारी राजकुमार नाहर बताते हैं कि पांच-छह दशक पूर्व यहां फुलवारी हुआ करती थी। यहां फूलों की क्यारियां देखने को काफी दूर से लोग आते थे। समय के साथ आबादी बढ़ती गई और फुलवारी उजड़ते गए। धीरे-धीरे इसकी पहचान फुलवारी गली की जगह फुलौरी गली में परिवर्तित हो गया।

लंगूर गली: गली में रहनेवाले बुजुर्ग सरदार अमर सिंह बताते हैं कि सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली होने के कारण यहां दोनों वक्त जरूरतमंदों को लंगर खिलाया जाता था। लंगरों का बचा भोजन खाने के लिए लंगूरों का झुंड जमा रहता था। इस कारण लोग इसे लंगूर गली के नाम से भी पुकारने लगे। आज यह गली लंगर गली की जगह लंगूर गली के नाम से प्रसिद्ध है।

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