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कोसी विकास परियोजना को लेकर आया नया अपडेट, अब मार्च 2025 तक पूरा करना होगा काम

कोसी बेसिन विकास परियोजना के दूसरे चरण को पूरा करने की समय-सीमा मार्च 2025 तक बढ़ा दी गई है। विश्व बैंक की सहमति से यह निर्णय लिया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य कोसी बेसिन में बाढ़ के जोखिम को कम करना और संरचनात्मक कार्यों के माध्यम से बाढ़ के दुष्प्रभावों को कम करना है। परियोजना की कुल लागत 1965 करोड़ रुपये है।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 25 Aug 2024 07:39 PM (IST)
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

राज्य ब्यूरो, पटना। कोसी बेसिन विकास परियोजना के दूसरे चरण का काम अगले वर्ष मार्च तक पूरा हो जाएगा। विश्व बैंक की सहमति से सरकार ने काम पूरा करने की नई समय-सीमा का निर्धारण किया है। पहले यह काम इस वर्ष जून तक पूरा करने का लक्ष्य था।

राज्य सरकार ने अगले वर्ष जून तक समय-विस्तार का आग्रह किया था, लेकिन विश्व बैंक से मार्च तक ही अनुमति मिली। कारण यह कि परियोजना के तहत अभी तीसरे चरण का काम भी होना है। उल्लेखनीय है कि यह परियोजना तीन चरणों में पूरी होनी है।

वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी के बाद इस परियोजना की परिकल्पना हुई थी। 2010 के सितंबर में पहले चरण का काम शुरू हुआ, जो 2018 में पूरा हुआ। उसके बाद दूसरे चरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। बहरहाल नौ माह की देरी से दूसरे चरण का काम मार्च, 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य है।

उल्लेखनीय है कि दूसरा चरण मार्च, 2023 में ही पूरा हो जाना था, लेकिन आधे-अधूरे काम के कारण इसे जून, 2024 तक आगे बढ़ाया गया गया था। इस तरह अवधि विस्तार की यह दूसरी बारी है और आगे मोहलत की संभावना नहीं। दूसरे चरण में अभी लगभग 85 प्रतिशत काम पूरा हो पाया है।

21 प्रखंडों को प्रत्यक्ष लाभ

इस परियोजना से सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिला के 21 प्रखंडों को प्रत्यक्ष लाभ होना है। जल संसाधन विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग, पशु व मत्स्य संसाधन विभाग और राज्य पुल निर्माण निगम द्वारा परियोजना के तहत संरचनात्मक कार्य कराए जा रहे हैं।

लागत में 101 करोड़ की वृद्धि

विश्व बैंक और बिहार सरकार द्वारा इस परियोजना पर क्रमश: 67 और 33 प्रतिशत राशि खर्च की जा रही। पहले इसकी लागत 1854 करोड़ रुपये अनुमानित थी। देरी के कारण लागत राशि राशि बढ़कर 1911 करोड़ हुई और अब यह 1965 करोड़ हो चुकी है।

परियोजना का लक्ष्य

  • कोसी बेसिन में बाढ़ जोखिम क्षमता में बढ़ोतरी
  • संरचनात्मक कार्य से बाढ़ के दुष्प्रभाव में कमी
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