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Bihar Politics: 'लाठी उठावन तेल पिलावन' वाले Lalu Yadav ने बनाई नई स्ट्रेटजी, अब क्या करेंगे Nitish Kumar?

राजनीति के अपने सुनहरे दौर में अचानक मुसीबत में फंसे लालू यादव ने संकट से निपटने के लिए RJD की नींव डाली थी। जिस दौर में लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी बनाई उस वक्त वे बिहार के मुख्यमंत्री होने के साथ ही जनता दल अध्यक्ष भी थे लेकिन करीब ढ़ाई दशक के बाद आज बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की कमान करीब-करीब तेजस्वी यादव के हाथों में आ चुकी है।

By Sunil Raj Edited By: Rajat Mourya Updated: Fri, 15 Mar 2024 02:29 PM (IST)
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'लाठी उठावन तेल पिलावन' वाले Lalu Yadav ने बनाई नई स्ट्रेटजी, अब क्या करेंगे Nitish Kumar?
राज्य ब्यूरो, पटना। राजद के वर्तमान पर बात करने से पूर्व इसके पुराने इतिहास को जानना जरूरी है। बात करीब 27 वर्ष पुरानी है। पूरे देश में चारा घोटाले की चर्चा जोर पकड़ रही थी। लालू प्रसाद तब बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन पर दबाव था कि वे बिहार के मुख्यमंत्री का पद छोड़े साथ ही जनता दल अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी। लालू प्रसाद मुख्यमंत्री का पद तो छोड़ने के लिए तैयार हो गए, लेकिन वे जनता दल के अध्यक्ष बने रहना चाहते थे।

उस दौर का यूनाईटेड फ्रंट इसके लिए तैयार नहीं था। नतीजा पांच जुलाई को लालू प्रसाद ने नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का गठन कर दिया। 25 जुलाई 1997 को उन्होंने एक और दांव चला और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद यह कहा जाने लगा कि राष्ट्रीय जनता दल का भविष्य राजनीति में लंबा नहीं होगा, लेकिन 1997 में पार्टी गठन के एक साल बाद ही वर्ष 1998 में लोकसभा के चुनाव हुए।

मार्च 1998 के चुनाव में राजद ने 17 लोकसभा सीटें जीतीं

मार्च 1998 के राष्ट्रीय चुनावों में राजद ने बिहार में 17 लोकसभा सीटें जीतीं। वोट हासिल करने के मामले में भी राजद का प्रदर्शन शानदार रहा और उसे 26.6 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। हालांकि, साल भर बाद ही फिर से लोकसभा चुनाव की नौबत आन पड़ी। अक्टूबर 1999 के चुनावों में राजद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। इस बार लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को बिहार में जोरदार झटका लगा। राजद सिर्फ सात लोकसभा सीट जीत सका। यहां तक कि लालू यादव भी चुनाव हार गए।

रेल मंत्री बने लालू यादव 

हालांकि, वोट प्रतिशत को देखें तो राजद के खाते में 28.29 प्रतिशत वोट आए। यानी वोट प्रतिशत बढने के बाद भी सीटों का बड़ा नुकसान राजद को हुआ, लेकिन राजद ने खराब प्रदर्शन के बाद भी हौसला नहीं छोड़ा। 2004 के लोकसभा चुनावों में राजद का प्रदर्शन शानदार रहा और उसे लोकसभा की 24 सीटें मिली। उसी के बाद केंद्र में 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) वाली सरकार में लालू यादव रेल मंत्री भी बनने में सफल रहे। 2004 के चुनाव में राजद का वोट प्रतिशत 30.67 था। राजद का सर्वाधिक वोट प्रतिशत था।

पांच साल बाद 2009 के आम चुनाव में सीट साझाकरण न बनने की वजह से राजद ने यूपीए से गठबंधन तोड़ लिया। राजद ने रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ओर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ नया गठबंधन बना लिया, लेकिन चौथा मोर्चा वाले इस गठबंधन में राजद का प्रदर्शन काफी खराब रहा। राजद को बिहार में सिर्फ चार सीटें ही मिली। वोट प्रतिशत भी तकरीबन पांच प्रतिशत कम हो गया। 2009 में राजद का वोट प्रतिशत करीब 25.86 प्रतिशत था। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद एक बार फिर यूनाईटेड प्रोग्रेसिव एलायंस में आ गया और कांग्रेस से साथ मिलकर चुनाव लड़ा।

बिहार की 40 लोकसभा सीटों में राजद 27, कांग्रेस 12 और राकांपा ने एक सीट पर मिलकर चुनाव लड़ा। परंतु इस चुनाव भी राजद को बड़ा झटका लगा। 27 सीटों पर लड़कर भी राजद सिर्फ चार सीटें ही जीत पाया। इस बार भी वोट प्रतिशत पांच प्रतिशत कम हो गया। अपने गठन से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजद का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। 2019 के चुनाव में राजद शून्य पर बोल्ड हो गया। वोट प्रतिशत भी घटकर 15.36 हो गया। यह पहला चुनाव था जब पार्टी के गठन के बाद राजद को लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिली।

अब I.N.D.I.A के साथ

अब पार्टी एक बार फिर आइएनडीआइए गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है। सीट बंटवारे पर हालांकि पेंच है लेकिन राजद 28 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। राजद के लिए चुनौती है बिहार में भाजपा और जदयू के किले को ध्वस्त करना। राजग गठबंधन का पिछला प्रदर्शन बताता है कि राजद के लिए राह आसान नहीं होने वाली, क्योंकि लालू प्रसाद उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां वे बहुत कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं, लेकिन उनके उत्तराधिकारी बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव में बड़ी लकीर खींचने को लेकर प्रतिबद्ध है।

यही वजह है कि 'लाठी उठावन तेल पिलावन' वाली पार्टी अपने तेवर बदल कर जहां जाति समीकरण को साधने में जुटी है। वही उसने अपने एजेंडे में 17 साल बनाम 17 महीने को शामिल किया है। पार्टी लगातार यह बताने की कोशिश में है कि उसकी प्राथमिकी युवाओं के लिए रोजगार, नौकरी के साथ ही लोगों की कमाई, दवाई और पढ़ाई, सिंचाई जैसे मसले हैं।

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