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RJD का पीछा नहीं छोड़ रहा '4' का फेर, पिछले 15 सालों से Lalu Yadav भी परेशान; आखिर कब...

लगातार दो महीने भीषण गर्मी में एक से दूसरे क्षेत्र में पसीना बहाते रहे बावजूद जनता ने राजद को चार सीटों पर समेट दिया। चार का यह आंकड़ा बीते 15 वर्षों से पार्टी के साथ साए की तरह चल रहा है और पीछा नहीं छोड़ रहा। ये भी चर्चा है कि पार्टी ने प्रत्याशी चयन में सावधानी रखी होती तो इस चुनाव चार के फेर से बाहर जरूरत आ जाते।

By Sunil Raj Edited By: Rajat Mourya Published: Wed, 05 Jun 2024 08:27 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2024 08:32 PM (IST)
RJD का पीछा नहीं छोड़ रहा '4' का फेर, पिछले 15 सालों से Lalu Yadav भी परेशान; आखिर कब...

सुनील राज, पटना। लोकसभा चुनाव 2024 में तमाम कोशिशों के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल उम्मीद के अनुसार सफल नहीं हो पाया। पार्टी को उम्मीद थी कि चुनाव परिणाम में बिहार में उसे कम से कम 12 से 15 सीटें मिलेगी। महंगाई, रोजगार, नौकरी जैसे मुद्दों के साथ मैदान में डटे तेजस्वी ने पार्टी और महागठबंधन की जीत के लिए मेहनत भी खूब की।

लगातार दो महीने भीषण गर्मी में एक से दूसरे क्षेत्र में पसीना बहाते रहे, बावजूद जनता ने राजद को चार सीटों पर समेट दिया। चार का यह आंकड़ा बीते 15 वर्षों से पार्टी के साथ साए की तरह चल रहा है और पीछा नहीं छोड़ रहा।

अगर ये किया होता '4' नंबर के फेस से आ जाते बाहर

पार्टी के अंदर भी इस बात की चर्चा है कि पार्टी ने थोड़ी उदारता दिखाई होती और प्रत्याशी चयन में सावधानी रखी होती तो इस चुनाव चार के फेर से बाहर जरूरत आ जाते। राष्ट्रीय जनता दल का गठन होने के बाद वर्ष 2004 में पहली बार पार्टी ने लोकसभा की 22 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी और लालू प्रसाद किंग मेकर तक बने। उन्हें यूपीए सरकार में रेल जैसा मंत्रालय तक मिला। परंतु राजद का यह स्वर्णिम दौर ज्यादा दिनों नहीं रहा।

2009 का लोकसभा चुनाव आते-आते राजद की जमीन काफी कमजोर हो चुकी थी। राजद और कांग्रेस की दोस्ती भी टूट चुकी थी। 2009 के चुनाव में लालू प्रसाद की राजद और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा। लेकिन 28 सीटों पर लडऩे के बाद भी राजद को सिर्फ चार सीटों पर समर्थन मिल पाया। पार्टी में चार का फेर यहीं से प्रारंभ हुआ।

2014 का लोकसभा चुनाव

इसके अगली बार 2014 में लालू की राजद ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने लकर चुनाव लड़ा। जदयू भी एनडीए से अलग थी। उसने भी अकेले चुनाव लड़ा। मोदी की पहली लहर में हुए इस चुनाव में एक बार फिर राजद महज चार सीटों पर सिमट गया। मधेपुरा, अररिया, भागलपुर और बांका सीटें ही उसकी झोली में आईं। लेकिन 2019 का दौर राजद के लिए और मुश्किल का दौर था।

2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मोदी मैजिक चला और महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने ही अपना खाता खोला। राजद जैसा बड़ा क्षेत्रीय दल शून्य पर सिमट गया। जबकि एनडीए का प्रदर्शन शानदार रहा और उसे बिहार में 39 सीटें मिली। अब संपन्न हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राजद चार के फेर से बाहर नहीं आ पाया।

राजद को इस चुनाव 26 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला। लेकिन अंतिम समय में उसने तीन सीटें वीआइपी को सौंप दी। राजद ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा। लेकिन, यहां भी पार्टी मात्र चार सीट पर ही जीत प्राप्त कर पाई। चार का फेर यहां भी उस पर भारी रहा। हालांकि पार्टी के अंदर सीट बंटवारे में उदारता न दिखाने को लेकर दबी जुबान में चर्चा जोरों पर है।

पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता भी दबी जुबान में कहते हैं कि पार्टी और चार सीट जीत सकती थी। जिन सीटों को लेकर चर्चा है उसमें पहले नंबर पर पूर्णिया है तो इसके बाद के नंबर पर आती हैं वैशाली, सिवान और नवादा की सीटें।

राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं इन सीटों के लिए पार्टी से कई उम्मीदवारों ने दावा किया, लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के आगे किसी का जोर चला नहीं। अगर इन चारों सीटों पर पार्टी ने थोड़ी उदारता दिखाई होती तो पार्टी के सांसद तो आठ होते ही बीते 15 वर्षो से चार का जो फेर लगा है उससे भी पार्टी मुक्त हो जाती।

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