Bihar Politics: बिहार में खेला करेंगे कुशवाहा, वैश्य और निषाद वोटर! कामयाब होगा Lalu का दांव या BJP मारेगी बाजी?
सातवें चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा का चुनावी महासमर खत्म हो चुका है। अब सभी की निगाह 4 जून को आने वाले नतीजों पर है। इस बीच जातीय समीकरण किस ओर झुके हैं इसकी चर्चा तेज हो गई है। तेजस्वी यादव ने इस बार माय के साथ बाप का कार्ड खेला है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव के परिणाम क्या होंगे।
अरुण अशेष, पटना। लोकसभा चुनाव के परिणाम से परख होगी कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की रणनीति आज भी कारगर है या समय के साथ इसके प्रभाव में कमी आई है। राजद ने उम्मीदवारों के चयन में 1991 के सामाजिक आधार को फिर से हासिल करने का प्रयास किया है। इसे जातियों की संख्या के आधार पर हिस्सेदारी के रूप में देख सकते हैं।
गठबंधन के सभी पांच दलों को उनके सामाजिक आधार के अनुसार टिकट देने की सलाह दी गई। कांग्रेस को नौ सीटें मिलीं। इनमें सात सामान्य हैं। इन पर तीन सवर्ण, दो मुस्लिम, दो अनुसूचित जाति, एक अति पिछड़ा और एक कुशवाहा उम्मीदवार बनाए गए। राजद ने अपने कोटे से सिर्फ दो सवर्णों को टिकट दिया। इनमें एक भूमिहार और एक राजपूत हैं।
महागठबंधन के 40 में से 5 उम्मीदवार सवर्ण
महागठबंधन के 40 में से पांच उम्मीदवार सवर्ण हैं। इनमें तीन भूमिहार, एक ब्राह्मण और एक राजपूत हैं। 2019 में इनकी संख्या नौ थी। लक्ष्य यह कि 1991 के लोकसभा चुनाव की तरह अगड़े-पिछड़े के बीच गोलबंदी हो जाएगी।
देखना होगा कि यह लक्ष्य किस हद तक हासिल हो पाया। हां, 2019 की तुलना में माय समीकरण से इतर की कुछ जातियों की उम्मीदवारी में भागीदारी बढ़ा कर अवधारणा बनाने का जो प्रयास किया गया, उसका प्रभाव चुनाव प्रचार के दौरान जन चर्चाओं में देखा गया।
कुशवाहा, वैश्य और निषाद करेंगे खेला?
एक, कुशवाहा इस बार महागठबंधन के साथ हैं। दो, वैश्य वोटर भाजपा से अलग होकर महागठबंधन से जुड़ गए। तीन, विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी के महागठबंधन में आ जाने से निषादों का पूरा वोट स्थानांतरित हो गया।
इसके लिए 2019 की तुलना में महागठबंधन के उम्मीदवारों की सूची में व्यापक बदलाव किया गया। 2019 में दो कुशवाहा और एक दांगी उम्मीदवार थे।
इस बार कुशवाहा उम्मीदवारों की संख्या सात हो गई। पिछली बार के एक के बदले तीन वैश्य उम्मीदवार बनाए गए। निषाद दो थे। एक रह गए। प्रचार ऐसा किया गया कि इन तीनों महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों का पूरा वोट राजग से महागठबंधन में चला गया।
नीतीश या लालू किसकी तरफ जाएंगे मुस्लिम?
मुसलमानों के बारे में यह धारणा बनाई गई कि ये महागठबंधन के पक्ष में एक पैर पर खड़े हो गए। राजग ने 40 में से सिर्फ एक मुसलमान को उम्मीदवार बनाया। जदयू और खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं।
जदयू को उम्मीद है कि भाजपा को भले ही मुसलमानों का वोट नहीं मिला हो। जदयू उम्मीदवारों को कम संख्या में ही सही, इस समुदाय का वोट मिला है। मुख्यमंत्री ने हरेक चुनावी सभा में मुसलमानों का विशेष आह्वान किया। बताया कि उनकी सरकार ने मुसलमानों के लिए कितना काम किया है।
महागठबंधन में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार मुसलमानों की उम्मीदवारी कम (छह की जगह चार) हो गई। सिवान और दरभंगा जैसी मुस्लिम बहुल कही जाने वाली सीटों पर यादव उम्मीदवार दिए गए। मुसलमानों को कम उम्मीदवार बनाने का तर्क यह दिया गया कि इससे भाजपा को हिंदू-मुस्लिम के नाम पर ध्रुवीकरण करने में सफलता नहीं मिलेगी।
गैर माय को साधने में कामयाब होगी राजद?
गैर माय समीकरण के उम्मीदवारों की जीत के बारे में यह आकलन किया गया कि माय समीकरण का वोट एकमुश्त मिलेगा। बस, संबंधित उम्मीदवार की जाति का वोट उनसे जुड़ जाए तो जीत पक्की हो जाएगी।
बक्सर, वैशाली, शिवहर, महाराजगंज, उजियारपुर, नवादा, औरंगाबाद, भागलपुर, सुपौल आदि सीटों पर जीत की कामना इसी समीकरण के आधार पर की गई है।
राजद ने एक प्रयोग सुपौल में किया। यह सामान्य सीट है, लेकिन वहां से अनुसूचित जाति के चंद्रहांस चौपाल को उम्मीदवार बनाया।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन से जुड़े कामेश्वर चौपाल इसी क्षेत्र के हैं। उनके प्रभाव के कारण यह समूह भाजपा या राजग से जुड़ा हुआ माना जाता है।
चौपाल पहले अति पिछड़ी जाति में थे। उन्हें नीतीश सरकार में ही अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया गया। सबसे बड़ी आबादी अति पिछड़ों की मानी जाती है। राजद की तुलना में जदयू ने इस समूह को वरीयता दी।
महागठबंधन की ओर से सबसे अधिक 11 यादव उम्मीदवार उतारे गए। धारणा यह कि यादव बिरादरी के वोटर महागठबंधन के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
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