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मां के दूध की तरह है भाषा और साहित्य : मृदुला सिन्हा

बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के 37वें महाधिवेशन के दूसरे दिन रविवार को गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने कहा कि भाषा साहित्य तो मां के दूध के समान है, जो स्वत: विकसित होता है।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Mon, 04 Apr 2016 05:12 PM (IST)
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पटना। जीवन एक बार फिर भारतीयता की ओर लौट रहा है। आज कदम से कदम बढ़ाने और संग-संग चलने की आवश्यकता है। हम जो खोते जा रहे हैं, उसको पुन: प्राप्त करेंगे। भाषा साहित्य तो मां के दूध के समान है, जो स्वत: विकसित होता है। ये बातें बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के 37वें महाधिवेशन के दूसरे दिन रविवार को गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने कही। वे 'हिंदी साहित्य में महिलाओं की सहभागिता' विषय पर बोल रही थीं।

अब परिवार विमर्श की जरूरत

उन्होंने कहा की साहित्य सृजन में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। महिलाएं पुरुषों को विषय देती है, सहयोग देती है तब जाकर पुरुष एक अच्छे साहित्य का सृजन करते हैं। डॉ. मृदुला सिन्हा ने कहा कि अब साहित्य में स्त्री विमर्श के बजाय परिवार विमर्श पर चर्चा आवश्यक है, जिससे परिवार में टूट पैदा न हो।

महाधिवेशन के चौथे सत्र में हिंदी साहित्य में महिलाओं की सहभागिता पर डॉ. मंगला रानी ने कहा की महिलाओं ने साहित्य को जो आधार दिया है उसे नकारा नहीं जा सकता है। आज महिलाएं नए तेवर में आई हैं, लेकिन विश्व में आज महिलाओं का शोषण बड़ी समस्या है।

गांधी युग के बाद स्वच्छंद हुईं महिलाएं

मगध विश्विद्यालय की हिंदी विभाग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. भूपेंद्र कलसी ने कहा कि महिलाओं ने तो वेदों में ऋचाएं भी लिखी हैं। बिहार में भी पहले से सहित्य सृजन होता रहा है लेकिन महात्मा गांधी के आगमन के बाद महिलाएं घरों से बाहर निकली और स्वछन्द होकर लेखन कार्य में जुट गई। इस विषय पर कोलकाता की डॉ. तनुजा मजूमदार ने कहा कि हिंदी साहित्य में लेखन सिर्फ स्त्री के मुद्दों तक ही सीमित नहीं रहा वहीं डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा की महिलाओं ने उपन्यास-कविता के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। इस सत्र का संचालन गीतकार डॉ शांति जैन ने किया।

अंग्रेज गए, अंग्रेजी रह गई

'राजभाषा हिंदी के समक्ष चुनौतियां और बिहार' विषय पर बोलते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि भारत में आज भी तंत्र और उसकी भाषा अंग्रेजी ही रह गई है, जबकि भारतीय जनजीवन में हिंदी गौण है। डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा केवल शोक प्रस्ताव करने से नहीं होगा बल्कि संकोच छोडऩा ही होगा।

पांच पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने मौके पर पांच पुस्तकों का लोकार्पण भी किया। इसमें डॉ. संगीता मल्लिक और डॉ. ओ पी पांडेय द्वारा सम्पादित महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा, डॉ शहनाज फातमी के उपन्यास चांद, रविघोष के काव्य संग्रह सालवती, हेमंत दास हेम की कविता संग्रह तुम आओ चहकते हुए और डॉ. सुनील कुमार की पुस्तक महात्मा गांधी के प्रारम्भ से शामिल है। त्रैमासिक पत्रिका का भी लोकार्पण किया गया।

सम्मानित हुए 49 साहित्यकार

हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से 50 साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों को सम्मानित किया गया। इसमें गोवर्धन प्रसाद सदय, डॉ. शिववंश पांडेय, डॉ. रामधारी सिंह दिवाकर ,सुरेन्द्र स्निग्ध, हृषिकेश सुलभ, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह, डॉ. नीलिमा सिन्हा ,डॉ. ध्रुव कुमार, डॉ. सुमेधा पाठक, डॉ. विनोद कुमार मंगलम, डॉ. नवल किशोर प्रसाद श्रीवास्तव, डॉ. भावना शेखर,अशोक महेश्वरी आदि हैं।