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6 सीट पर 25 साल से एक ट्रेंड : हर चुनाव में नए दल को मौका, ललन सिंह और पप्पू यादव की पत्नी का एक जैसा रहा हाल

Lok Sabha Election 2024 बिहार की यह छह लोकसभा सीटें बेहद खास हैं। खास बात यह है कि इन सभी सीटों पर 25 साल से ट्रेंड कायम है। आकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि हर चुनाव में इन सीटों पर नए दल को मौका मिलता है। ललन सिंह से लेकर पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन तक का यहां एक जैसा हाल रहा है।

By Rajat Kumar Edited By: Mukul Kumar Updated: Wed, 17 Apr 2024 02:38 PM (IST)
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पप्पू यादव और ललन सिंह। फोटो- जागरण
कुमार रजत, पटना। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने कहा था कि लोकतंत्र में सत्ता की रोटी पलटती रहनी चाहिए। बिहार में लोकसभा की आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां जनता यह काम बखूबी कर रही है।

मुंगेर, सीतामढ़ी, सुपौल, जहानाबाद, झंझारपुर और बांका की लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले 25 या उससे भी अधिक सालों से हर चुनाव में नए दल को विजयश्री मिल रही है।

एक बार जिस दल को मौका दे दिया, उसे अगले चुनाव में दोबारा मौका नहीं मिलता। अगर लगातार दूसरी बार जनता ने किसी सांसद को मौका दिया भी तो पार्टी बदल गई।

मुंगेर से 1989 से लगातार विजयी दल बदल रहे हैं। जनता दल के टिकट पर धनराज सिंह ने 89 में कांग्रेस से यह सीट छीनी। अगले चुनाव 1991 में भाकपा के ब्रह्मानंद मंडल जीते, अगले चुनाव में उन्हें दोबारा मौका मिला मगर समता पार्टी से। इसके बाद तो सांसद और दल दोनों बदलते रहे।

1998 में राजद के विजय कुमार यादव, 99 में जदयू से ब्रह्मानंद मंडल, 2004 में जयप्रकाश नारायण यादव, 2009 में जदयू से ललन सिंह, 2014 में लोजपा से वीणा देवी और 2019 में वापस जदयू से ललन सिंह सांसद बने। लगातार दूसरी बार मौका किसी दल को नहीं मिला।

झंझारपुर सीट पर 98 में राजद से सुरेंद्र प्रसाद यादव जीते

झंझारपुर सीट पर 98 में राजद से सुरेंद्र प्रसाद यादव, 99 में जदयू और 2004 में राजद से देवेंद्र प्रसाद यादव, 2009 में जदयू से मंगनी लाल मंडल, 2014 में भाजपा से बीरेंद्र कुमार चौधरी और 2019 में रामप्रीत मंडल जीतकर सांसद बने। इस बीच देवेंद्र प्रसाद को लगातार दो बार मौका तो मिला मगर अलग-अलग दलों से।

बांका सीट पर 1998 और 1999 में दिग्विजय सिंह सांसद रहे, मगर पहले समता पार्टी तो दूसरी बार जदयू से। इसके बाद 2004 में राजद के गिरधारी यादव को जीत मिली।

2009 में पहले दिग्विजय सिंह और बाद में उनके निधन वा पत्नी पुतुल कुमारी ने निर्दलीय चुनाव जीता। वहीं 2014 में राजद के जयप्रकाश नारायण यादव तो 2019 में जदयू के गिरधारी यादव को जीत मिली।

जहानाबाद सीट पर छह लोकसभा चुनावों से पार्टी और सांसद का चेहरा दोनों बदल रहा है। 98 में राजद के सुरेंद्र प्रसाद यादव, 99 में जदयू से अरुण कुमार, 2004 में राजद से गणेश प्रसाद सिंह, 2009 में जदयू से जगदीश शर्मा, 2014 में रालोसपा से अरुण कुमार और 2019 में जदयू से चंदेश्वर प्रसाद सांसद चुने गए।

सीतामढ़ी में जदयू-राजद को ही मौका 

सीतामढ़ी सीट पर पिछले छह लोकसभा चुनावों से बदल-बदल कर राजद और जदयू उम्मीदवारों को मौका मिला रहा है। 98 में राजद से सीताराम यादव, 99 में जदयू से नवकिशोर राय, 2004 में राजद से सीताराम यादव, 2009 में जदयू से अर्जुन राय, 2014 में रालोसपा से रामकुमार शर्मा और 2019 में जदयू से सुनील कुमार पिंटू को सांसद चुना गया।

सुपौल में पिछली तीन बार से तीन दलों को मौका मिला है। वर्ष 2009 में जदयू के विश्वमोहन कुमार, 2014 में कांग्रेस की रंजीत रंजन और 2019 में जदयू के दिलेश्वर कामत यहां से सांसद चुने गए।

इसके पहले यह सीट सहरसा के नाम से थी। इस दौरान 84 से 96 तक जनता दल का कब्जा रहा। 98 में राजद के अनूप लाल यादव, 99 में जदयू के दिनेश चंद्र यादव और 2004 में लोजपा के टिकट पर रंजीत रंजन सासंद रहीं।

छह सीटों पर जदयू सांसद, इस बार जीते तो टूटेगा ट्रेंड

यह संयोग है कि इस ट्रेंड की सभी छह सीटें जदयू के खाते में हैं। इस बार जदयू ने पांच सीटों से विजयी सांसदों को ही दोबारा मौका दिया है। सिर्फ सीतामढ़ी में चेहरा बदला है।

यहां सुनील कुमार पिंटू की जगह देवेश चंद्र ठाकुर को टिकट दिया गया है। अगर जदयू छह सीटों पर इस बार भी जीत दर्ज करती है, तो पार्टी बदलने का ट्रेंड टूट जाएगा।

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