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Lok Sabha Election : शर्त बहुत साफ है... लोकसभा चुनाव ने बढ़ाई धुकधुकी, विधायकों को इस बात का सता रहा डर

Bihar Politics In Hindi अब तक पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं। अब छठे चरण के मतदान की बारी है। ऐसे में रिजल्ट से पहले विधायकों की धड़कन बढ़ती जा रही है। चाहे पक्ष हो या विपक्ष दोनों ने चुनाव को अपने पाले में लाने के लिए विधायकों को जिम्मेदारी दी है। लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार हारते हैं तो विधायकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

By Arun Ashesh Edited By: Mukul Kumar Updated: Wed, 22 May 2024 02:14 PM (IST)
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर
अरुण अशेष, पटना। Bihar Politics News चुनाव लोकसभा के लिए हो रहा है। विधायकों की धड़कन बढ़ी हुई है। लोस चुनाव के परिणाम के आधार पर ही उनके टिकट का भविष्य निर्भर है। अगले साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा का चुनाव प्रस्तावित है।

राजग और महागठबंधन के दलों के नेतृत्व ने अपने विधायकों के अलावा विधानसभा चुनाव में पराजित उम्मीदवारों को भी वोट बटोरने के अभियान में लगा दिया है। शर्त बहुत साफ है-आपके विधानसभा क्षेत्र में अगर लोकसभा उम्मीदवार की हार हुई तो यह बेटिकट करने का आधार बन सकता है।

2019 और 2020 के क्रमश: लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम में बहुत अंतर आ गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 17 सीट जीती थी। विधानसभा की 96 सीटों पर बढ़त मिली थी। जदयू को 92 और लोजपा को 35 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी।

जदयू (JDU) के 16 और एकीकृत लोक जनशक्ति पार्टी के छह उम्मीदवार सांसद बन गए थे। वहीं, साल भर बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की 74, जदयू की 43 और लोजपा की सिर्फ एक सीट पर जीत हुई थी। दूसरी तरफ 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस को क्रमश: नौ और पांच विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी।

राजद (RJD) का खाता नहीं खुला था। कांग्रेस एक सीट जीत पाई थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के पक्ष में बाजी पलट गई। राजद 75, कांग्रेस 19 और वाम दल 16 सीट हासिल कर सरकार बनाने से थोड़ी दूर रह गए थे।

महागठबंधन के विधायकों पर अधिक दबाव

Bihar News राजग के विधायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की उपलब्धियों के दम पर भले ही राहत की सांस ले रहे हों, महागठबंधन के विधायकों पर लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए भारी दबाव है।

2020 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर महागठबंधन की अपेक्षा लोकसभा में 18-20 सीट जीतने की है। तीन को छोड़ दें तो 37 लोकसभा क्षेत्रों की संरचना छह-छह विधानसभा क्षेत्रों से पूरी होती है। तीन लोकसभा क्षेत्रों में विधानसभा की सात-सात सीटें हैं।

विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ने की हालत में बेटिकट होने की अलिखित चेतावनी राजग के विधायकों को भी दी गई है।

इन पर है दोहरा दबाव

राजद के आठ, हम, कांग्रेस और भाकपा माले के एक-एक विधायक दोहरे दबाव में हैं। ये सब लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। एक दबाव जीत के लिए है। दूसरा दबाव यह कि कम से कम अपने विधानसभा क्षेत्र में अच्छी बढ़त मिले।

इनमें जदयू की विधायक रहीं बीमा भारती भी शामिल हैं, जो राजद टिकट पर पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ीं। वह उसी संसदीय क्षेत्र के रुपौली विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गई थीं। हारती हैं तो उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव लड़ना होगा।

भाकपा माले के संदीप सौरभ पालीगंज के विधायक हैं। वह नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। राजद के विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव (जहानाबाद), आलोक मेहता(उजियापुर), कुमार सर्वजीत (गया), ललित कुमार यादव (दरभंगा), चंद्रहांस चौपाल (सुपौल), मो. शाहनवाज आलम(अररिया), अवध बिहारी चौधरी (सिवान), सुधाकर सिंह (बक्सर) लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा के विधायक जीतनराम मांझी गया और कांग्रेस विधायक अजित शर्मा भागलपुर से उम्मीदवार हैं। जीत गए तो वाह वाह, हार गए तो सबसे पहले इन सबको अपने विधानसभा क्षेत्र में पड़े वोटों का हिसाब देना होगा।

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