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उपेंद्र कुशवाहा के पद का दावेदार कौन? परिषद में JDU की खाली सीट पर नेताओं की लंबी कतार, रेस में ये दिग्गज आगे

जदयू कुशवाहा समाज की ताकत को गंभीरता से लेता है। यही कारण है कि उपेंद्र कुशवाहा के लिए ही पहली बार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के पद को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से अलग किया गया। ऐसे में जदयू बड़ी सावधानी से परिषद में उपेंद्र कुशवाहा का उत्तराधिकारी चुनेगा।

By Arun AsheshEdited By: Aditi ChoudharyUpdated: Tue, 21 Feb 2023 01:44 PM (IST)
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उपेंद्र कुशवाहा के विधान परिषद की सदस्यता छोड़ने की घोषणा के बाद रिक्त पद पर कई नामों की चर्चा

पटना, राज्य ब्यूरो। नई पार्टी के ऐलान के साथ ही जदयू से अपने रास्ते अलग कर चुके उपेंद्र कुशवाहा ने विधान परिषद की सदस्यता छोड़ने की भी घोषणा की है। वे 17 मार्च 2021 को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद के सदस्य मनोनीत हुए थे। दल में रहते तो उनका कार्यकाल 16 मार्च 2027 तक था। संभवत: 24-25 फरवरी तक वे परिषद की सदस्यता से विधिवत त्याग पत्र दे देंगे। रिक्ति की घोषणा होने पर सरकार इसे भरने की प्रक्रिया शुरू करेगी।

चुनाव आयोग की इसमें खास भूमिका नहीं होती है। राज्य कैबिनेट मनोनयन को मंजूरी देती है या इसके लिए मुख्यमंत्री को अधिकृत कर देती है। मुख्यमंत्री की अनुशंसा राज्यपाल को जाती है और मनोनयन हो जाता है। नए मनोनीत सदस्य का कार्यकाल 16 मार्च 2027 तक रहेगा।

प्रदेश जदयू अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, पूर्व मंत्री श्रीभगवान सिंह कुशवाहा, पूर्व सांसद अश्वमेघ देवी, पूर्व विधायक रामसेवक सिंह एवं लंबे समय तक जदयू के पदाधिकारी रहे नंदकिशोर कुशवाहा परिषद में उपेंद्र कुशवाहा के उत्तराधिकारी की कतार में हैं।

उमेश कुशवाहा को सक्रियता के हिसाब से उनका दावा सबसे मजबूत माना जाता है। हालांकि, उमेंश कुशवाहा 2020 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। परिषद के पिछले मनोनयन के समय भी उनके नाम की चर्चा हुई थी। वह उपेंद्र कुशवाहा प्रकरण में भी आक्रामक रहे। मनोनयन का मानक अगर दल से जुड़ाव और निरंतरता को बनाया जाए तो अश्वमेघ देवी, रामसेवक सिंह और नंदकिशोर कुशवाहा के नामों पर विचार किया जा सकता है।

श्रीभगवान सिंह कुशवाहा भी पुराने नेता रहे हैं। हालांकि, उनकी दलीय प्रतिबद्धता खंडित होती रही है। आइपीएफ, जनता दल, राजद, जदयू, लोजपा आदि दलों से भी उनका समय-समय पर जुड़ाव रहा है। फिर भी भोजपुर में उनकी पहचान है।

जदयू कुशवाहा समाज की ताकत को गंभीरता से लेता है। यही कारण है कि उपेंद्र कुशवाहा को बार-बार अवसर दिया गया। पहली बार उनके लिए ही संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के पद को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से अलग किया गया। भाजपा भी कुशवाहा नेता के तौर पर सम्राट चौधरी को बढ़ावा दे रही है। उपेंद्र कुशवाहा की अगली राजनीति का प्रारंभिक संकेत यही है कि वह भाजपा को मजबूत करेंगे। ऐसे में जदयू बड़ी सावधानी से परिषद में उपेंद्र कुशवाहा का उत्तराधिकारी चुनेगा।

सभापति के आते ही देंगे त्यागपत्र

उपेंद्र कुशवाहा के मुताबिक, उन्होंने परिषद से त्यागपत्र देने के लिए सभापति देवेश चंद्र ठाकुर से टेलीफोन पर बातचीत की। सभापति अभी राज्य के बाहर हैं। वे 24 फरवरी को पटना आएंगे। उपेंद्र कुशवाहा उसी दिन या अगले दिन त्यागपत्र दे देंगे। लोकसभा, राज्यसभा, विधान परिषद और विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र के लिए संबंधित सदस्य को अध्यक्ष या सभापति के सामने स्वयं उपस्थित रहना पड़ता है।

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