सिवान जिले के ऐतिहासिक महेंद्रनाथ मंदिर को पर्यटन मानचित्र पर लाने का नहीं हुआ प्रयास
Siwan News सिवान जिले के सिसवन प्रखंड के मेहंदार गांव स्थित ऐतिहासिक महेंद्रनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने कई राज्यों से श्रद्वालु आते हैं लेकिन इसे पर्यटन के मानचित्र पर लाने का प्रयास अबतक फेल रहा है। इस मंदिर का विकास अब तक नहीं हुआ।
सिवान/सिसवन, जागरण टीम। सिवान जिले के सिसवन प्रखंड के मेहंदार गांव स्थित ऐतिहासिक महेंद्रनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने कई राज्यों से श्रद्वालु आते हैं, लेकिन इसे पर्यटन के मानचित्र पर लाने का प्रयास अबतक फेल रहा है। इस मंदिर का विकास अब तक नहीं हुआ। साथ ही इसके लिए किसी ने आवाज भी नहीं उठाई। विकास के नाम पर कई योजनाओं को धरातल पर उतारने में लंबा समय लग गया। कहने के लिए पर्यटन के क्षेत्र में उसके मानचित्र पर इस मंदिर को लाने की घोषणाएं तो की जाती है। लेकिन, घाेषणाएं सिर्फ छलावा साबित होती है। बाद में कोई भी जनप्रतिनिधि इस बात के लिए प्रयास नहीं करता है कि आखिर योजनाओं को पूरा कराने के लिए क्या प्रयास किया गया। आखिर इसके विकास के लिए क्या काम किया गया। क्यो नहीं इसे पर्यटन के मानचित्र पर इसे लाया गया। इसके लिए राज्य सरकार या केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए क्या प्रयास किया गया। अगर ध्यान आकृष्ट कराने के बाद भी इसे पर्यटन के मानचित्र पर नहीं लाया जा सका तो इसके लिए सड़क से लेकर सदन तक क्यो नहीं आवाज उठाई गई। इसके लिए किसी ने भी सदन में आवाज नहीं उठाई और इसके विकास के मामले को मंदिर के भाग्य पर छोड़ दिया गया।
कमलदह की सफाई खर्च हो चुके हैं करीब पांच करोड़, फिर भी नहीं बदली सूरत
महेन्द्रनाथ मंदिर में सबसे बड़ी समस्या पवित्र कमलदाह सरोवर की सफाई को लेकर है। इस सरोवर की सफाई कराने के लिए प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किया गया था। लेकिन यह पूरी तरह फेल साबित हुआ। जबकि सफाई के नाम पर पांच करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च हुई थी। यह पोखरा लगभग ढाई सौ बीघा में फैला हुआ है। इस पोखरे की दुर्दशा यह है कि इसमें पर्याप्त पानी भी नहीं है। जबकि 15 साल पहले तक इस सरोवर में इस तरह पानी होता था कि इसमें कमल का फूल भी खिलता था, साइबेरियन पक्षी भी आते थे। श्रद्वालु इसमें स्नान करने के बाद इस सरोवर से जल भरकर बाबा भोलेनाथ पर जलाभिषेक भी करते थे। सरोवर में नावें भी चलती थी। लेकिन अब न पहले की तरह साफाई है न पहले की तरह पानी। पांच साल पहले तक तो हालत यह हो गया था कि इसमें पानी सूख गई थी और जलाभिषेक के लिए मशीन से पानी चला कर सरोवर के घाट के पास पानी का जमाव किया जाता था। इस मंदिर में दो बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ चुके है और करोड़ों की लागत से कई योजनाओं का शिलान्यास कर चुके है।जिसमें 2 फरवरी 2013 को बिहार स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड के द्वारा बाबा महेंद्रानाथ मंदिर के पोखर का सौंदर्ययीकरण एवं विकास कार्य के लिए 1264.90 लाख रूपये तथा 15 अक्टूबर 2010 को मेहंदार जलापूर्ति योजना के लिए 22.878 लाख रूपये शामिल है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां जो भी विकास कार्य हुए हैं उसमें ज्यादातर शिवभक्तों के द्वारा कराए गए हैं।सरकार के द्वारा जो भी कार्य कराएं गए हैं उनमें सभी आधा अधुरे है।कई सरकारी कार्यों के उद्घाटन का शिलापट्ट तक गायब कर दिया गया। सरोवर की खुदाई का काम भी शामिल था। इसे मनरेगा से खुदाई कराई गई। इस पर करोड़ों रूपये खर्च किए गए। लेकिन खुदाई के दौरान कई तरह का विवाद हो गया।इस वजह से सरोवर की सफाई पूरी नहीं हाे सकी और पहले से भी ज्यादा बदहाल हो गया। अब सरोवर को स्नान करने लायक बनाया गया है। लेकिन वह सरकारी खर्च से नहीं, बल्कि श्रमदान से। श्रमदान से सरोवर की सफाई की गई।
श्रद्धालुओं को नहीं मिलती किसी तरह की सुविधा
मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्वालुओं को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।पर्यटन विभाग से महेन्द्रनाथ मंदिर परिसर स्थित कमलदाह सरोवर कि सफाई तक नहीं हो पाई। हालांकि कई विकास कार्य भी कराए गए है। इसमें कमलदाह सरोवर के चारों तरफ से परिक्रमा पथ का निर्माण शामिल है। इससे सरोवर का परिक्रमा करना आसान हो गया है। मंदिर के पास विवाह भवन, यज्ञ मंडप, पंचायत सरकार भवन, महिला घाट, मंदिर के बाहर फर्श का निर्माण समेत अन्य विकास कार्य कराया गया है। अभी भी मंदिर आने वाले श्रद्वालु शुद्व पेयजल के लिए भटकते हैं।
रात में ठहरनेवाले श्रद्वालुओं के लिए नहीं है इंतजाम
दूसरे राज्यों या दूसरे जिले से आने वाले श्रद्वालुओं को रात में ठहरने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है। इससे दूर- दाराज से श्रद्वालु रात में अगर आ जाते है। ताकि वे सुबह में पूजा अर्चना कर सके उन्हे मंदिर परिसर में ही रात गुजारनी पड़ती है। श्रद्वालुओं के लिए सुरक्षित ठहराव के लिए मंदिर प्रबंध समिति या सरकारी स्तर पर कमरों को निर्माण नहीं कराया गया है। ताकि दूर- दाराज से आने वाले श्रद्वालु सस्ते दर पर कमरों को बुक कर उसमें सुरक्षित रह सके। इसके लिए भी किसी ने प्रयास नहीं किया। मंदिर परिसर की सभी दुकानें रात में बंद हो जाती है। इसलिए रात में मंदिर परिसर में ठहरने वाले श्रद्वालुओं को भोजन के लिए भी चिंता सताने लगती है।