माता सीता ने यहां की थी छठ पूजा, इसलिए नाम पड़ा 'सीताकुंड', आज भी अर्घ्य देने से समस्त कष्टों से मिलती है मुक्ति
Banka News आज हम आपको ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पहली बार माता सीता ने छठ पूजा की थी। यही वजह है कि बौंसी प्रखंड के ऐतिहासिक मंदार पर्वत पर स्थित कुंड का नाम सीताकुंड हो गया। इतिहासकार बताते हैं कि यहां भगवान भास्कर को नमन कर माता सीता ने अर्घ्य दान दिया था। तब से इस कुंड का महत्व धार्मिक हो गया है।
By Jagran NewsEdited By: Aysha SheikhUpdated: Fri, 17 Nov 2023 01:27 PM (IST)
कुंदन सिंह, बाराहाट (बांका)। बौंसी प्रखंड के ऐतिहासिक मंदार पर्वत पर अवस्थित सीताकुंड आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि पहली बार माता सीता ने यहीं पर छठ पूजा की थी।
इसी कारण कुंड का नाम सीताकुंड हो गया। छठ पर्व में आज भी यहां बड़ी संख्या में लोग भागवान सूर्य को अर्घ्य देने आते हैं। इस वर्ष इस पवित्र कुंड की साफ-सफाई स्थानीय लोगों ने वन विभाग के सहयोग से की है।
इतिहासकार ने बताया इतिहास
मंदार पर शोध करने वाले इतिहासकार मनोज मिश्रा बताते हैं कि वन भ्रमण के दौरान प्रभु श्री राम और माता सीता मंदार आई थीं। यहां भगवान भास्कर को नमन कर अर्घ्य दान दिया था। तब से इस कुंड का महत्व धार्मिक हो गया है।यहां छठ करने के लिए बांका के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड के गोड्डा जिले से भी श्रद्धालु आते हैं। पूर्व जिप उपाध्यक्ष अर्चना सिंह कहती हैं कि यहां आकर छठ पूजा करने वाले लोग अपने आपको धन्य समझते हैं।सीताकुंड की एक खासियत यह भी है कि इसमें सालों भर जल भरा रहता है। समुंद्र मंथन का गवाह रहे मंदार पर्वत पर अवस्थित सीता कुंड का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।
मान्यता है कि यहां पर अर्घ्य देने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। पद्मश्री चित्तू टुड्डू ने भी अपने गीतों में श्रीराम-सीता के मंदार आगमन का उल्लेख किया है। इस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेक्षणकर्ता फ्रांसिस बुकानन (1807 से 1814) ने भी मंदार तीर्थ को भगवान राम से जोड़ा है।
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