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फिर खुलेगा चैप्टर, वशिष्ठ बाबू की अंगुलियों पर नाचेंगे गणित के आंकड़े

आइंस्टीन को चुनौती देने वाले गणित के जादूगर वशिष्ठ नारायण सिंह उर्फ वशिष्ठ बाबू स्वस्थ हो रहे हैं। नोटबुक हो चाहे घर की दीवार, उनकी अंगुलियां फिर से चलने लगी हैं। ये सुखद संकेत है।

By Akshay PandeyEdited By: Updated: Thu, 29 Nov 2018 04:42 PM (IST)
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फिर खुलेगा चैप्टर, वशिष्ठ बाबू की अंगुलियों पर नाचेंगे गणित के आंकड़े
श्रवण कुमार, पटना : महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की अंगुलियों के बीच नाचती कलम कुछ न कुछ लिखती रहती है। मेज पर पड़े अखबार, नोटबुक और कमरे की दीवारों पर अंकों और शब्दों में लिखे वाक्य इस बात का सुबूत देते हैं। कभी रामचरित मानस की आधी-अधूरी चौपाई, तो कभी श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक के अंश भी पन्नों या दीवारों पर अंकित कर दे रहे हैं वशिष्ठ बाबू। ये सुखद संकेत है, गणित की दुनिया के सुपरस्टार वशिष्ठ नारायण सिंह की सामान्य हो रही जिंदगी का। कभी वशिष्ठ बाबू का डंका नासा तक था, लाखों प्रशंसक थे मगर आज दुनिया भूल सी चुकी है उन्हें। वशिष्ठ बाबू पूरी तरह स्वस्थ्य तो नहीं, पर रिस्पांस कर रहे हैं। यह सब कुछ संभव हो सका है नोबा के आर्थिक सहयोग और परिवार वालों की अनवरत सेवा से। नोबा- यानि नेतरहाट ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन। वशिष्ठ बाबू खुद नेतरहाट के विद्यार्थी रह चुके हैं।

कैलीफोर्निया विवि ने माना लोहा

वशिष्ठ नारायण सिंह तब दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए थे, जब 1969 में इन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर शोध किया था। नेतरहाट और फिर उसके बाद पटना विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज में स्कूली व महाविद्यालयी शिक्षा हुई। अपनी प्रतिभा और गणितीय ज्ञान का लोहा दुनिया भर में मनवाने वाले वशिष्ठ बाबू को काल के चक्र ने कुछ ऐसा घेरा कि ये न सिर्फ गुमनाम हुए, बल्कि गुम हो गए। 1993 में जब मिले, तब लगा सब कुछ खत्म हो चुका है। दीन-हीन और मानसिक रूप से बीमार। गणित के इस पुरोधा के ऐसे हालात जब अखबारों की सुर्खियां बने तो सरकार जागी।

नहीं पहचान पाई वीकीपीडिया

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस बंगलुरु में इलाज के लिए इन्हें भर्ती कराया गया। 2002 तक इलाज चला। इसके बाद दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ हयूमन बिहेवियर एंड एलायड साइंस में इनका इलाज चला। जब मानसिक स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ, तब धीरे-धीरे सरकार ने भी इलाज से हाथ खींच लिए। ऐसा लगा कि गणित का ये सितारा डूब गया। वीकीपीडिया ने भी उनके जीवन वृत में यह लिखकर...अभी वे अपने गांव बसंतपुर में उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रहेÓ चैप्टर क्लोज कर दिया।

ना डूबा था और ना ही टूटा

यहां के बाद वशिष्ठ बाबू की जिन्दगी का जो अध्याय लिखा जा रहा है, वह बेहद ही गुपचुप और चमक-दमक से दूर। उस स्कूल के पुराने छात्रों का समूह इनके साथ खड़ा हुआ, जहां कभी वशिष्ठ पढ़ा करते थे। हालत सुधरने लगी। 2013 से ही नेतरहाट ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन हर माह बीस हजार रुपये दवा व अन्य खर्चे के लिए दे रही है। छोटे भाई अयोध्या प्रसाद, भतीजे मुकेश और राकेश की देखरेख से वशिष्ठ नारायण सामान्य जीवन की ओर लौट रहे हैं। 76 साल की उम्र के बुजुर्ग की तरह ही सामान्य जिन्दगी जी रहे हैं।

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