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पटनाः लावारिस मरीजों की उम्मीद हैं विवेक

ऐसी कोई कॉल आते ही विवेक बिना देरी किये मदद के लिए पहुंच भी जाते हैं। विवेक बताते हैं कि इस काम में स्थानीय पुलिस की भी सहायता लेते हैं और मरीज को पीमसीएच में भर्ती करवा देते हैं।

By Gaurav TiwariEdited By: Updated: Tue, 25 Sep 2018 07:51 AM (IST)

जागरण संवाददाता, पटना। राजधानी के अस्पतालों में हर रोज 10 से 20 लावारिस मरीज अपनों के इंतजार में आंखें बिछाए बैठे रहते हैं। इन मरीजों को ना कोई खाना खिलाने वाला है और ना ही कोई इनकी देखभाल करने वाला है। ऐसे ही मरीजों की उम्मीद हैं विवेक कुमार। शहर की सड़कों पर जब भी कोई लावारिस मरीज दिखाई देता है, आसपास के लोग सबसे पहले 28 साल के नौजवान विवेक को याद करते हैं। फोन करके लोग उन्हें बताते हैं कि रोड पर एक लाचार व्यक्ति दिख रहा है। मदद के लिए जल्दी से जल्दी आएं। ऐसी कोई कॉल आते ही विवेक बिना देरी किये मदद के लिए पहुंच भी जाते हैं। विवेक बताते हैं कि इस काम में स्थानीय पुलिस की भी सहायता लेते हैं और मरीज को पीमसीएच में भर्ती करवा देते हैं।

दवा और इलाज के लिए देते हैं पैसे
विवेक बताते हैं कि मरीजों को भर्ती करवाने से लेकर उनकी दवा तक का खर्च वह अपनी कमाई से उठाते हैं। इमरजेंसी में भर्ती के समय अस्पताल से कुछ दवाएं तो दी जाती हैं, पर बाद में इलाज के मंहगे होने पर या दवा का दाम ज्यादा होने पर मरीज का सारा खर्च खुद उठाते हैं। विवेक बताते हैं कि इस नेक काम में मदद के लिए उनके साथ उनके दोस्तों की टोली भी रहती है, जो अपने कमाई से 100 से लेकर हजार रुपए तक रोज देते हैं, जिससे उन गरीब और लाचार मरीजों का अच्छे से इलाज करवाया जा सके।

50 से ज्यादा मरीजों को पहुंचा चुके है घर
विवेक का कहना है कि लावारिस मरीजों का भी कोई ना कोई परिवार होता है, पर अपनी किसी परेशानी या बीमारी के कारण उन्हें कुछ याद नहीं रहता है। इस बीमारी का भी इलाज है और अभी तक उन्होंने 50 से भी ज्यादा मरीजों को ठीक करवा कर उन्हें उनके परिवार वालों से मिलवा दिया है।

अस्पताल प्रशासन से मिलती है मदद
विवेक बताते हैं कि मरीजों को भर्ती करने से लेकर लगातार उनसे मिलने और उनका हाल-चाल जानने में अस्पताल प्रशासन भी मदद करता है। विवेक के काम को देखते हुए अस्पताल प्रशासन ने इमरजेंसी में जाने के लिए उन्हें पास की सुविधा दे रखी है।

काम के साथ समाजसेवा करने में आता है मजा
प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले विवेक बताते हैं कि उन्हें अगर कोई भी परेशान या लाचार मरीज दिखता है तो वो उसकी मदद के लिए आगे आते हैं। अपने 24 घंटे में वो सुबह एक-दो घंटा और शाम का समय सिर्फ मरीजों और पीडि़त लोगों की मदद के लिए ही रखते हैं।

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