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Gramin Bank IPO: बिहार में ग्रामीण बैंकों का होगा विलय, अपने शेयर को खुले बाजार में बेचेगी केंद्र सरकार

ग्रामीण बैंकों की सेहत में सुधार के लिए शेयर धारकों द्वारा समय-समय पर पूंजी दी जाती रही है। हालांकि 2015 में केंद्र सरकार ने आगे पूंजी देने के बजाय ग्रामीण बैंकों को बाजार से पूंजी जुटाने का निर्देश दिया। इसके लिए ग्रामीण बैंक कानून-1976 में संशोधन कर केंद्र सरकार ने अपने 50 प्रतिशत में से 34 प्रतिशत शेयर आईपीओ के माध्यम से बेचने का प्रविधान किया।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Rajat Mourya Updated: Wed, 06 Nov 2024 08:37 PM (IST)
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बिहार में ग्रामीण बैंकों का होगा विलय, अपने शेयर को खुले बाजार में बेचेगी केंद्र सरकार
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। ग्रामीण बैंकों के विलय का एक बड़ा उद्देश्य आईपीओ जारी करना है। राशि जुटाने के लिए इन बैंकों मेंं केंद्र सरकार के शेयर की खुले बाजार में आईपीओ के जरिये बिक्री होगी। बिहार के दोनों ग्रामीण बैंकों (उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक) का विलय हो जाने के बाद आईपीओ आएगा। प्राप्त होने वाली राशि से नव-गठित ग्रामीण बैंक का कायाकल्प होगा।

वर्ष 1975 में ग्रामीण बैंक की स्थापना हुई थी और 2005 तक इनकी संख्या 196 थी। उनमें से अधिसंख्य घाटे में थे। समाधान सुझाने के लिए केंद्र सरकार ने व्यास समिति का गठन किया था। समिति के सुझाव पर तीन चरणों में ग्रामीण बैंकों का आपस में विलय हुआ। उसके बावजूद इनकी संख्या 43 रह गई है।

अब इन बैंकों के विलय के लिए राज्य सरकार और प्रायोजक व्यावसायिक बैंकों से वित्त मंत्रालय ने 15 नवंबर तक सहमति मांगी है। चौथे चरण के अंतर्गत विलय के बाद ग्रामीण बैंकों की संख्या मात्र 28 रह जाएगी। उल्लेखनीय है कि प्रारंभ में देश में 196 तथा बिहार में 22 ग्रामीण बैंक कार्यरत थे।

ग्रामीण बैंकों की सेहत में सुधार के लिए शेयर धारकों द्वारा समय-समय पर पूंजी दी जाती रही है। हालांकि, 2015 में केंद्र सरकार ने आगे पूंजी देने के बजाय ग्रामीण बैंकों को बाजार से पूंजी जुटाने का निर्देश दिया। इसके लिए ग्रामीण बैंक कानून-1976 में संशोधन कर केंद्र सरकार ने अपने 50 प्रतिशत में से 34 प्रतिशत शेयर आईपीओ के माध्यम से बेचने का प्रविधान किया।

हालांकि, छोटा आधार होने के कारण कोई भी ग्रामीण बैंक आईपीओ जारी नहीं कर सका। फलस्वरूप, ग्रामीण बैंक विलय प्रक्रिया के चौथे चरण में एक राज्य-एक ग्रामीण बैंक की परिकल्पना के तहत विलय की पहल चल रही है। इसके अंतर्गत बिहार के दोनों ग्रामीण बैंकों का विलय होना है। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण बैंकों में केंद्र सरकार 50 प्रतिशत, प्रायोजक बैंक 35 प्रतिशत और संबंधित राज्य सरकार 15 प्रतिशत अंशधारक होती है।

प्रायोजक बैंक में विलय भी एक विकल्प:

बैंकिंग व्यवसाय से जुड़े कई विशेषज्ञों का तर्क है कि एक-दूसरे में विलय कर देने मात्र से ग्रामीण बैंकों की समस्या दूर नहीं हो जानी है। इससे उनका नेटवर्क बड़ा हो जाएगा और उनकी पूंजी बड़ी हो जाएगी, लेकिन सम्मिलित रूप में देनदारी और घाटे का बोझ भी बढ़ेगा। ऐसे में ग्रामीण बैंकों का उनके प्रायोजक व्यावसायिक बैंक में विलय बेहतर विकल्प हो सकता है। उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक का प्रायोजक सेंट्रल बैंक है और दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक का पंजाब नेशनल बैंक।

ग्रामीण बैंक और प्रायोजक बैंक की कार्यप्रणाली में अब कोई अंतर नहीं रह गया है। व्यावसायिक बैंक ग्रामीण साख में भी बहुमूल्य योगदान कर रहे हैं। ग्रामीण बैंक आपस में विलय के बाद भी ग्रामीण साख की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते। इसलिए ग्रामीण बैंक का उनके प्रायोजक बैंक में विलय मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर विकल्प है। - डीएन त्रिवेदी, राष्ट्रीय संयोजक, यूनाइटेड फोरम ऑफ ग्रामीण बैंक यूनियन्स

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