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उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के सहारे बड़ा हो रहा राजग का कुनबा, क्या बदलते समीकरण से चुनाव पर पड़ेगा असर?

अचानक विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) से भी भाजपा की नजदीकी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि वह भी देर सवेर राजग से जुड़ेगी। लोजपा के दोनों गुट (चिराग और पारस के नेतृत्व वाले) पहले से राजग में सम्मिलित हैं।

By Arun AsheshEdited By: Yogesh SahuUpdated: Thu, 23 Feb 2023 12:15 AM (IST)
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उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के सहारे बड़ा हो रहा राजग का कुनबा, बदलते समीकरण से चुनाव पर पड़ेगा असर?

राज्य ब्यूरो, पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलग होने के कारण बिहार में अकेली पड़ी भाजपा अब कुनबा बढ़ाने में लग गई है।

नीतीश अलग हुए तो जदयू के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) भी भाजपा से अलग हो गया।

पिछले वर्ष 10 अगस्त को यह बदलाव हुआ, लेकिन छह महीने के भीतर ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कुनबे को बढ़ने में लगा है।

जदयू से अलग होकर उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक जनता दल का गठन किया। औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन कुशवाहा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर बता दिया कि वे राजग के साथ रहेंगे।

अचानक विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) से भी भाजपा की नजदीकी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि वह भी देर सवेर राजग से जुड़ेगी।

लोजपा के दोनों गुट (चिराग और पारस के नेतृत्व वाले) पहले से राजग में सम्मिलित हैं। कुल मिलाकर आज की तस्वीर यह है कि बिहार में राजग 2014 के स्वरूप में आ रहा है।

भाजपा, लोजपा, राष्ट्रीय लोक जनता दल और वीआइपी। उस समय वीआइपी बनी नहीं थी, लेकिन इसके नेता मुकेश सहनी भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे।

2015 के विधानसभा चुनाव के समय हम भी राजग का अंग बन गया। बाद में वह महागठबंधन में गया। वापस राजग में लौटा। अभी महागठबंधन में है।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 29.4, लोजपा को 6.5 और रालोसपा को 3.1 प्रतिशत वोट मिले थे। राजग को 40 में से 31 सीटें मिली थीं।

लोकसभा चुनाव में कारगर यह समीकरण 2015 के विधानसभा चुनाव में सफल नहीं हो पाया। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजग के सभी घटक दलों के वोट कम हुए।

महागठबंधन में जदयू के सम्मिलित होने से राजग को भारी नुकसान हुआ। वर्तमान समीकरण के आधार पर 2024 के चुनाव में राजग की शानदार सफलता की संभावना नहीं है।

जदयू फिलहाल महागठबंधन के साथ है। राज्य के चुनावों में जदयू 16 से 23 प्रतिशत वोट प्राप्त करता रहा है। यह वोट सहयोगी दलों को हस्तांतरित भी होता है, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव का मुद्दा अलग होता है। मतदाताओं की प्रवृत्ति भी बदलती है।

भाजपा का मनोबल बढ़ रहा

बदल रहे समीकरण से चुनाव पर कितना असर पड़ेगा, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जदयू के अलग होने के बाद अकेलापन झेल रही भाजपा का मनोबल बढ़ ही रहा है।

वीआइपी के संस्थापक मुकेश सहनी को केंद्र सरकार ने वाई प्लस सुरक्षा की सुविधा सोमवार को दे दी है। इसे भाजपा के साथ दोस्ती का संकेत माना जा रहा है।

हम भी महागठबंधन में सहज महसूस नहीं कर रहा है। भाजपा को आशा है कि थोड़ा प्रयास-परिश्रम करने पर जीतनराम मांझी भी साथ आ जाएंगे।

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