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BJP के लिए नीतीश क्यों हो गए हैं जरूरी, विधानसभा को लेकर JDU का अब ये है प्लान; नई रणनीति से हलचल बढ़ने की उम्मीद

चुनाव का रिजल्ट आने के बाद राजनीति में कई चीजें बदल गईं हैं। जहां एक तरफ भाजपा को हताशा हासिल हुई है। वहीं दूसरी ओर बिहार के सीएम नीतीश कुमार का आत्मविश्वास बढ़ा है। उन्हें इस बार बिहार में 12 सीटें मिली हैं। वह इस बार किंगमेकर की भूमिका में हैं। रिजल्ट के बाद यह अनुमान है कि नीतीश विधानसभा चुनाव के दौरान बड़े भाई की भूमिका में होंगे।

By Arun Ashesh Edited By: Mukul Kumar Updated: Thu, 06 Jun 2024 01:52 PM (IST)
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बिहार के सीएम नीतीश कुमार। फोटो- जागरण
अरुण अशेष, पटना। Bihar Politics In Hindi 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद नीतीश कुमार की राजनीतिक क्षमता पर कई बार प्रश्न खड़े हुए। राजद के गठबंधन के समय नीतीश (Nitish Kumar) ने इतना तक कह दिया कि अगला विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

उनके फिर से एनडीए में आने के बाद यह अनुमान लगाया गया कि 2025 में भाजपा की अगुआई में विस चुनाव लड़ा जाएगा।

नीतीश और उनके लोग भी इस मुद्दे पर मौन थे। लेकिन, लोकसभा चुनाव का परिणाम आते ही जदयू की ओर से घोषणा कर दी गई कि अगला विधानसभा चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

यह 13 दिसंबर 2022 की बात है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन महागठबंधन विधान मंडल दल की बैठक चल रही थी। उस समय के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की ओर इशारा करते हुए नीतीश ने कहा था-अगले विधानसभा चुनाव में इन्हीं को आगे बढ़ाना है।

नालंदा में नीतीश ने क्या कहा था?

इससे पहले, नालंदा के रहुई में मुख्यमंत्री ने कहा था-हमारे तेजस्वी जी हैं। इनको आगे बढ़ा रहे हैं। इनको और आगे काम करना है।दरअसल, 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के जदयू की हैसियत तीसरे नम्बर के दल की हो गई थी। जदयू की सिर्फ 43 सीटों पर जीत हुई थी। इससे क्षुब्ध नीतीश मुख्यमंत्री नहीं बन रहे थे।

भाजपा के मनुहार पर मुख्यमंत्री बने। लेकिन, जल्द ही भाजपा के कुछ नेता उन पर अपमानजक टिप्पणी करने लगे। नीतीश जो एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में थे, भाजपा के कई नेता उन्हें छोटा भाई बताने लगे। परिणति नीतीश के महागठबंधन के साथ जुड़ने से हुई।लोग नीतीश में सत्ता के प्रति वैराग्य का भाव देखने लगे।

उन्होंने कहा था-मुझे किसी पद की ख्वाहिश नहीं है। इस घोषणा के बाद वह एक बार फिर एनडीए से जुड़े। मुख्यमंत्री बने। तब कहा जाने लगा कि यह नीतीश की आखिरी राजनीतिक पारी है। लेकिन, लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें हासिल करने के बाद एक बार नीतीश फिर किंग मेकर की भूमिका में हैं।

उनका और जदयू का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। जदयू के वरिष्ठ नेता और जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कह दिया कि 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

अपरिहार्य बन गए नीतीश

लोकसभा चुनाव में 12 सीट जीतकर जदयू उत्साह से भरा हुआ है। इसलिए कि केंद्र में नई सरकार के गठन के लिए यह संख्या अपरिहार्य है। हालांकि, जदयू को 2019 की तुलना में उतनी ही सीटें लड़ने पर 3.74 और भाजपा को 3.53 प्रतिशत कम वोट आया। हार-जीत का अंतर भी कम हुआ है।

इसके बावजूद जदयूू ने अपने आधार वोटों को बचा कर रखा। कुछ क्षेत्रों में उसे मुसलमानों का वोट भी मिला। जदयू के प्रति अत्यंत पिछड़ों और महिलाओं का समर्थन भी बना रहा।

कई बार क्षुब्ध हुए नीतीश

नीतीश कुमार की दिली इच्छा थी कि सुशील कुमार मोदी (अब दिवंगत)उनके कैबिनेट में रहें। केंद्रीय नेतृत्व ने इसकी अनुमति नहीं दी। 2019 की जीत के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने कैबिनेट में जदयू को एक से अधिक सीट देने से भी मना कर दिया।

नीतीश जदयू संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह को भी मंत्री बनाना चाहते थे। उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। राज्य कैबिनेट में भी भाजपा ने कई ऐसे चेहरे को रखने के लिए दबाव बनाया, जिसे नीतीश पसंद नहीं करते थे।

बिहार के लिए क्यों है जरूरी

लोकसभा चुनाव में बिहार के भाजपा नेता सक्रिय थे। उनकी खूब सभाएं हुईं। उम्मीदवारों ने और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगा। दूसरी तरफ जदयू राज्य सरकार की उपलब्धियों के आधार पर वोट मांगता रहा।

औरंगाबाद, जमुई और नवादा की सभाओं को छोड़ दें तो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र की अधिसंख्या सभाओं में मंच पर नजर नहीं आए। कारण यह बताया गया कि साझा मंच पर नीतीश राज्य सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करने में अधिक समय ले लेते हैं। प्रधानमंत्री के लिए समय कम पड़ जाता था।

दूसरी परेशानी मुसलमानों को लेकर थी। प्रधानमंत्री के मंच पर भाजपा के नेता हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर ध्रुवीकरण के लायक भाषण करते थे।उसी मंच से नीतीश कहते थे कि आपस में लड़ना नहीं है। वह मुसलमानों के लिए किए गए राज्य सरकार के कार्यों की लंबी सूची रख देते थे।

लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर महागठबंधन की ओर से अगड़ा-पिछड़ा कार्ड खेला गया। विधानसभा चुनाव में यह कार्ड अधिक प्रभावी न हो पाए, इसके लिए भी एनडीए में नीतीश का महत्वपूर्ण बनाए रखना भाजपा के लिए जरूरी हो गया है।

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