Bihar Politics: नीतीश कुमार के बाद कौन? पूर्व IAS मनीष वर्मा की एंट्री से JDU में बढ़ी हलचल, ये है आगे की रणनीति
पूर्व आईएएस मनीष वर्मा जदयू में शामिल हो गए हैं। पार्टी में इनके शामिल होने से कई तरह से सवाल उठने लगे हैं। पिछले काफी समय से यह सवाल सभी के मन में चल रहा है कि नीतीश के बाद कौन होगा? पहले उपेन्द्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह जैसे नेताओं की चर्चा होती रही माना जा रहा था कि यह नंबर दो हो सकते हैं। अब हालात बदल गए हैं।
अरुण अशेष, पटना। Bihar Politics In Hindi हाल के वर्षों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लेकर सबसे अधिक यह प्रश्न पूछा गया कि जदयू में उनके बाद कौन? बीते 10 वर्षों में जदयू में जब किसी का कद और पद बढ़ा, लोग उसे नीतीश नंबर दो मानने लगे।
आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर, उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) जब तक जदयू में रहे, उनके बारे में यही चर्चा होती रही कि यही नंबर दो हैं। समय आने पर दल के सर्वेसर्वा हो जाएंगे। समय ऐसा आया कि ये सब जदयू से अलग हो गए।
मनीष और आरसीपी सिंह में क्या समानता?
हाल में राज्यसभा सदस्य संजय कुमार झा को दल का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तो फिर चर्चा-यही हैं नंबर दो। बुधवार को भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी मनीष वर्मा को जदयू की सदस्यता दिला दी गई। जदयू की सामाजिक संरचना को देखते हुए मनीष को नंबर दो का स्वाभाविक दावेदार माना जा रहा है।मनीष और आरसीपी में समानता यह है कि दोनों भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं और उनका जुड़ाव नालंदा से है। वे जदयू के मूल लव कुश समीकरण का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। राजद के माय की तरह कभी जदयू लव कुश (कुर्मी एवं कुशवाहा) समीकरण पर आश्रित था।
बाद में अति पिछड़ों सहित अन्य सामाजिक समूहों में उसका विस्तार हुआ। कुल मिलाकर गैर-यादव पिछड़ों की गोलबंदी से ही जदयू ऊर्जा मिलती रही है। इसलिए यह तय माना जा रहा है कि गैर-यादव पिछड़े या अति पिछड़े ही जदयू नेतृत्व के दावेदार हैं। अन्य समूहों की सहभागिता जरूरत पर आधारित रहेगी।
इनमें सवर्ण भी हो सकते हैं। संगठन में सवर्ण का मजबूत प्रतिनिधित्व नजर आए, इसके लिए संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष का पद दिया गया है।
यह जरूरी है कि नंबर दो के साथ नीतीश कुमार सहज रहें। जरूरी यह भी है कि ऐसा नेता जदयू की राजनीतिक जरूरतों को समझें। प्रशासन की भी समझ हो। आररसीपी सिंह में यह क्षमता थी।राजनीति में आने के बाद प्रशासनिक सूझबूझ रहने के बावजूद आरसीपी आम राजनेताओं की तरह महत्वाकांक्षा के शिकार हो गए। उन्होंने नीतीश के समानांतर स्वयं को स्थापित करने का दुस्साहस किया। आज किसी पद पर नहीं हैं।
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