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खौफ का दूसरा नाम पांडव गिरोह, 27 साल पहले पांच लड़कों ने शुरू की थी मसौढ़ी और मगध में आतंक की कहानी

बिहार में मसौढ़ी और मगध क्षेत्र के लिए आतंक रहे पांडव गिरोह के सरगना व बिहार पुलिस के 50 हजार रुपये के इनामी संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद एसटीएफ ने राहत की सांस ली। संजय सिंह का 27 वर्षों का आपराधिक इतिहास रहा है। नीमा गांव के पांच युवकों ने मिल कर नक्सलियों से लोहा लेने को पांडव सेना का गठन किया था।

By Prashant KumarEdited By: Mohit TripathiUpdated: Wed, 20 Dec 2023 10:30 PM (IST)
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खौफ का दूसरा नाम था पांडव गिरोह। (सांकेतिक फोटो)

जागरण संवाददाता, पटना/जहानाबाद। राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी और मगध क्षेत्र के लिए आतंक रहे पांडव गिरोह के सरगना व बिहार पुलिस के 50 हजार रुपये के इनामी संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद एसटीएफ (विशेष कार्य बल) ने राहत की सांस ली। संजय सिंह का 27 वर्षों का आपराधिक इतिहास रहा है।

नीमा गांव के पांच युवकों संजय सिंह, चित्तरंजन शर्मा, बबलू सिंह, अशोक सिंह और विपिन शर्मा ने मिल कर नक्सलियों से लोहा लेने को पांडव सेना का गठन किया था।

नक्सलियों से लोहा लेते-लेते यह सेना एक गिरोह में तब्दील हो गई, जिसके बाद रंगदारी, हत्या और अपहरण की घटनाओं को ताबड़तोड़ अंजाम दिया जाने लगा। गिरोह ने दर्जन भर से ज्यादा लोगों की हत्या की।

इन हत्याओं के बाद कमजोर पड़ गया गिरोह

गिरोह की दहशत बिहार व झारखंड तक थी। वर्ष 2003 में बबलू सिंह और अशोक सिंह की झारखंड के गढ़वा में हत्या के बाद गिरोह कमजोर पड़ गया। पांडव सेना के विपिन सिंह की मौत गांव में ही एक ट्रैक्टर दुर्घटना में हो गई। वर्ष 2004 तक गिरोह में केवल संजय सिंह और चितरंजन शर्मा ही बचे थे।

2004 में ही झारखंड के हजारीबाग में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय के पोते सह अधिवक्ता प्रशांत सहाय की हत्या कर दी गई थी। इसी हत्याकांड के बाद गिरोह में फूट पड़ गई थी। संजय को शक था कि चितरंजन शर्मा ने पुलिस को उसका नाम बताया था।

समय बदला, वर्ष 2010 में चित्तरंजन शर्मा अरवल से भाजपा के टिकट पर विधायक चुन लिए गए। संजय भी पालीगंज से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, परंतु हार गया। इसके बाद वह भूमिगत हो गया। इस कारण गैंगवार पर कई वर्षों तक विराम रहा।

डॉक्टरों के बीच था नाम का खौफ

गिरोह में दो फाड़ होने के बाद संजय कंकड़बाग के चिकित्सकों से रंगदारी वसूलने लगा। डाक्टरों में उसकी दहशत इस कदर थी कि उसका नाम लेते ही मरीज को अस्पताल में भर्ती कर लिया जाता था। उसका इलाज मुफ्त में किया जाता। उसकी पत्नी प्रतिमा सिंह को भी पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है।

वह सेंट्रल एक्साइज इंस्पेक्टर थी। बताया जाता है कि जब पुलिस के पास स्वचालित हथियार नहीं आए थे, तब से संजय के पास इनका जखीरा था। उसकी पत्नी पर्स में पिस्टल लेकर चलती थी। वारदात के बाद वह पत्नी को हथियार देकर दूसरी दिशा में भाग निकलता था।

संजय पर हमले के बाद शुरू हुआ था गैंगवार

पांडव सेना के सरगना संजय सिंह पर 26 अप्रैल 2020 को नदमा स्टेशन के समीप गोलीबारी की गई थी। तीन गोली मारी गई थी, जिसमें वह जख्मी हो गया था। इसके बाद ही गैंगवार का सिलसिला शुरू हुआ। प्रतिशोध में दो साल बाद 26 अप्रैल 2022 को जहानाबाद में चित्तरंजन शर्मा के चाचा अभिराम शर्मा और मसौढ़ी में भतीजे दिनेश शर्मा की हत्या कर दी गई।

दोहरे हत्याकांड के प्रतिशोध में एक माह बाद 27 मई को नीमा गांव के सुधीर कुमार की हत्या कर दी गई। सुधीर सरगना संजय सिंह का करीबी था। इस हत्याकांड का बदला लेने को घटना के चौथे ही दिन 31 मई 2022 को पटना के पत्रकारनगर में चित्तरंजन के दो भाई गौतम शर्मा व शंभू शर्मा की हत्या कर दी गई थी। पिछले दो दशक में पांडव सेना से जुड़े कई लोगों की हत्या हो चुकी है।

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