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Pappu Yadav: 'मेरे नाम में यादव होने से लालू...', पूर्णिया सीट छिनने पर क्या बोले पप्पू? पढ़ें Exclusive Interview

पूर्णिया सीट से चुनावी मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव देश भर में चर्चा का व‍िषय बने हुए हैं। कुछ ही दिनों पहले उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया। उन्हें उम्मीद थी कि महागठबंधन के खाते से पूर्णिया सीट कांग्रेस को मिलेगी और हाथ का दामन थामकर वह अब भविष्य की राजनीति करेंगे। बिहार में ओबीसी चेहरे का पर्याय बनेंगे। लेकिन उनकी उम्मीदों को झटका लगा है।

By Shankar Dayal Mihsra Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sat, 20 Apr 2024 03:57 PM (IST)
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मेरे नाम के आगे यादव लगा है, शायद इससे लालू डरते हैंः पप्पू यादव
शंकर दयाल मिश्रा, भागलपुर। पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव देश भर में चर्चा का व‍िषय बने हुए हैं। कुछ ही दिनों पूर्व उन्होंने अपनी पार्टी (जनाध‍िकार पार्टी) का विलय कांग्रेस में किया। उन्हें उम्मीद थी कि महागठबंधन के खाते से पूर्णिया सीट कांग्रेस को मिलेगी और हाथ का दामन थामकर वह अब भविष्य की राजनीति करेंगे। बिहार में ओबीसी चेहरे का पर्याय बनेंगे। लेकिन, उनकी उम्मीदों को झटका लगा है।

सीट बंटवारे में राजद ने एक दशक बाद पूर्णिया कांग्रेस से छीनकर अपने पाले में ले लिया और यहां से अपना उम्मीदवार दे दिया। शीर्ष स्तर से कांग्रेस ने पप्पू के लिए प्रयास किया, लेकिन अंदरखाने चर्चा है कि लालू यादव अड़ गए। अंतत: पप्पू यादव ने न‍िर्दलीय नामांकन किया।

पप्पू यादव के नामांकन में जैसी भीड़ उमड़ी उससे स्पष्ट हो गया है कि पूर्णिया की धरती पर सियासी महासंग्राम तय है। जदयू सांसद संतोष कुशवाहा, पप्पू यादव और जदयू का ही दामन छोड़कर राजद प्रत्याशी बनने वालीं विधायक बीमा भारती में कौन भारी पड़ेगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन वर्तमान में हमने पप्पू यादव के संदर्भ में उठ रहे कई सवालों के जवाब उनसे जाने।

भागलपुर के समाचार संपादक संदीप कुमार और वरिष्ठ उप संपादक शंकर दयाल मिश्रा ने पूर्णिया और बिहार की राजनीति से जुड़े कई सवाल पप्पू यादव से किए। यह भी पूछा कि पप्पू से किसने दगा किया, कहां चूक हो गई? लालू और प्रदेश कांग्रेस से जुड़े सवालों के जवाब बेलाग पप्पू यादव ने कभी खुलकर तो कभी इशारों में दिए। प्रस्तुत है इस विस्तृत साक्षात्कार के मुख्य अंशः

आप पूर्णिया से निर्दलीय नामांकन कर चुके हैं। एक तरह से यह इंडी गठबंधन को चुनौती है, कांग्रेस को भी?

कांग्रेस मेरे साथ है। कांग्रेस का आशीर्वाद मुझे प्राप्त है। मेरा जीना-मरना सब कांग्रेस के लिए है। मुझे इस बात की समझ है कि मुझे पूर्णिया सीट दिलाने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने बहुत प्रयास किया है। अंत समय तक।

आपने देखा होगा कि कटिहार सीट से तारिक अनवर का नामांकन एक दिन टल गया। बात सोनिया मैडम तक पहुंच गई थी। वहां पर उन्हें लालू या पप्पू को चुनने का विकल्प दिया गया तो स्वभाविक तौर पर लालू की चली। अब मैं इस सीट को जीतकर इंडी गठबंधन की झोली में डाल दूंगा।

आपने कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय क्या सोचकर किया, क्या उद्देश्य पूरा हुआ?

कांग्रेस को लेकर मेरा नजरिया साफ रहा है। अभी के दौर में जहां अधिकतर पार्टियां नीति-सिद्धांत को लेकर दिशाहीन हो चुकी हैं और उनमें व्यक्तिपूजक व्यवस्था हावी है। वहीं कांग्रेस अपने अंदर लोकतंत्र को बचाए है। कह सकते हैं कि कांग्रेस लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता नहीं करती।

मेरी पत्नी (सांसद रंजीत रंजन) कांग्रेस में शुरू से हैं। इस कारण मैं खुद को कांग्रेस परिवार का ही हिस्सा मानता रहा। हालांकि, मेरी राजनीति का अपना रास्ता और अपनी पार्टी थी। इस कारण मेरी कोशिश थी कि अपनी जनाधिकार पार्टी को इंडी गठबंधन का हिस्सा बनाऊं।

मैं पूर्णिया में काम कर रहा था। यहां पर 'प्रणाम पूर्णिया, सलाम पूर्णिया' अभियान चला रहा था। इसी क्रम में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मिलने का संदेश आया। मैं 19 मार्च को पटना में उनसे मिला। तेजस्वी यादव भी साथ थे। लालू जी ने ऑफर दिया कि मैं अपनी पार्टी का राजद में विलय कर दूं। इसके लिए वे मुझे मधेपुरा और सुपौल सीट देने को तैयार थे।

मैंने उनसे कहा भी कि मुझे पूर्णिया से चुनाव लड़ना है। इसको लेकर स्पष्ट हूं। बाकी लालू जी के दोबारा कहने पर मैंने कहा कि अपने परिवार और कांग्रेस परिवार से पूछकर निर्णय लूंगा। 20 अप्रैल को मैं दिल्ली गया।

हवाई अड्डा पर था तो प्रियंका गांधी का मोबाइल पर कॉल आया। उनसे और राहुल जी से बात हुई और परिस्थिति ऐसी बनती गई कि कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया।

क्या आपने स्वत: सोच लिया कि महागठबंधन में पूर्णिया सीट तो कांग्रेस के ही हिस्से में आती रही है इसलिए कांग्रेस से ही बार्गेनिंग करते हैं?

इसमें कोई शक नहीं कि पूर्णिया परंपरागत रूप से कांग्रेस की ही सीट रही है। इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि राजद ने इससे पहले 1998 के चुनाव में अपना प्रत्याशी दिया था, जो करीब 57 हजार वोट ही पा सका।

राजद ने इसके पहले माकपा को समर्थन दिया था, तब उसके प्रत्याशी 35-40 हजार के अंदर ही सिमट गए थे। यहां पर राजद का अपना कोई मजबूत आधार नहीं रहा है।

यहां पर पप्पू यादव का अपना आधार है और कांग्रेस का भी। इसके बावजूद राजद ने यह सीट ले ली। बार्गेनिंग जैसी कोई बात नहीं।

राहुल या प्रियंका ने मुझे पूर्णिया से टिकट देने का आश्वासन नहीं दिया था। हां, कांग्रेस के एक महासचिव स्तर के अधिकारी से बात हुई थी।

स्वभाविक है कि कांग्रेस में विलय की जो सोच थी वह तो पूरी होती नहीं दिख रही। किसने ठगा आपको?

इसका जवाब जनता देगी। जनता इसे समझ रही है कि मुझसे पूर्णिया सीट छीनने की साजिश रची गई। सुपौल सीट भी परंपरागत रूप से कांग्रेस के हिस्से में आती रही है।

वहां से हमारी मैडम (रंजीत रंजन, राज्यसभा सदस्य) दो बार जीती हैं। 2014 में वे सुपौल से चुनकर लोकसभा गईं। 2019 में वे हार गईं।

इस सीट को भी राजद ने कांग्रेस से ले लिया। पूर्णिया की सीट भी ले ली। पूर्णिया अपने बेटे की रक्षा करेगा। मैं अभिमन्यु नहीं जो चक्रव्यूह में फंस जाऊंगा, मैं अर्जुन हूं। जीतकर ही रहूंगा।

आपका इशारा है कि लालू परिवार नहीं चाहता कि आप संसद पहुंचें। आखिर लालू या तेजस्वी को आपसे क्या परेशानी/प्रतिस्पर्धा है? क्या आपसे उन्हें खतरा है?

मुझसे तो उन्हें कोई खतरा नहीं है, लेकिन वे शायद ऐसा समझते हैं। हो सकता है कि मेरे नाम में भी यादव उपनाम होने के कारण ऐसी स्थिति बनी है।

लालू यादव आज भी मेरे लिए पिता समान हैं। उनका पहला बेटा तो मैं ही हूं। वे भी मुझसे प्यार करते हैं, तभी तो राजद में मेरी जनाधिकार पार्टी को शामिल करने का उन्होंने ऑफर भी दिया था।

लगता है कि मेरे कांग्रेस में शामिल होना उन्हें रास नहीं आया, इस कारण मुझसे जुड़ी उन सभी सीटों को कांग्रेस से छीन लिया जो परंपरागत रूप से कांग्रेस की थीं।

कांग्रेस में कोई ओबीसी चेहरा मजबूत होगा तो सहयोगी पार्टियों पर इसका राजनीतिक असर स्वभाविक है। सहयोगी क्षेत्रीय पार्टियां इस कारण चाहेंगी कि उनकी पार्टी में कोई मजबूत ओबीसी चेहरा आए न कि कांग्रेस में।

इंडी गठबंधन में सीट बंटवारे पर क्या कहेंगे? क्या लालू यादव ने किसी रणनीति के तहत टिकट बांटा है?

जिस हिसाब से सीटों का बंटवारा हुआ है और इंडी गठबंधन में बड़े घटक दल की जो भूमिका दिख रही है उससे कई सवाल उठ रहे।

गठबंधन ने जैसे प्रत्याशी उतारे हैं उससे तो लग रहा है कि लड़ाई 2024 की है ही नहीं, जेहन में बस 2025 का विधानसभा चुनाव है।

इसी पूर्णिया की बात करें तो सुरक्षित जीत की जगह जिस प्रत्याशी को राजद ने चुनाव में उतारा है उनका चुनाव कौन लड़ेगा? बीमा भारती के पति अवधेश मंडल जेल में हैं। बिना अवधेश के रुपौली विधानसभा में भी वहां की विधायक बीमा बहुत प्रभावी नहीं होंगी।

जहानाबाद आदि कई सीटों को ऐसे उदाहरण हैं। इससे तो यही लगता है कि राजग खासकर भाजपा को सेफ पैसेज दिया गया है। राजनीतिक गलियारे में लोग दबी जुबान से बोल रहे हैं कि इंडी गठबंधन पर बिहार में ईडी का प्रभाव दिख रहा है।

तेजस्वी बीमा के नामांकन में आए, मतलब यहां जोरदार लड़ाई की तैयारी में है राजद?

आप ही बताइए, बीमा भारती के नामांकन में तेजस्वी यादव हेलीकाप्टर से पहुंचे। अन्य सीटों पर उम्मीदवारों के नामांकन में तो वह नहीं गए। तो क्या यह नहीं समझा जाए कि पूरी ताकत पप्पू को हराने में ही लगा देनी है उनको।

मैं तो उनको हमेशा छोटा भाई मानता रहा हूं, आगे भी मानूंगा। लेकिन लालू यादव और तेजस्वी को मुझसे क्या तकलीफ है, यह समझ में नहीं आ रहा।

लालू यादव ने तेजस्वी के लिए मेरा रास्ता रोकने का ही प्रयास नहीं किया बल्कि भविष्य में जो भी बिहार की राजनीित का चेहरा हो सकते हैं, उसे चुनाव में लड़ने से रोका।

बेगूसराय में कन्हैया कुमार भी इसका उदाहरण हैं। यहां से कन्हैया कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते थे, लेकिन यह सीट उन्होंने वामदल को दे दी।

ऐसे में तो इंडी गठबंधन को ज्यादा सीटें नहीं आएंगी?

आज के परिदृश्य में इंडी गठबंधन को सात से 10 सीटें मिल सकती हैं। टिकट का बंटवारा या सीटों का चयन बेहतर होता तो नतीजा कुछ और होता।

बिहार कांग्रेस के अधिकारियों ने भी आपका पत्ता काटने में भूमिका निभाई?

बिहार या अन्य राज्यों में जैसे ही कांग्रेस मजबूत होने लगेगी वैसे ही क्षेत्रीय पार्टियों का आधार कमजोर पड़ेगा। यह सर्वविदित सत्य है। बिहार कांग्रेस को उभारने के लिए मेरे जैसे जुझारू किस्म के नेताओं की जरूरत है।

अगर कांग्रेस में कोई मजबूत जुझारू चेहरा उभरेगा तो पार्टी को कमजोर बनाए रखकर मठाधीशी कर रहे नेताओं की पोल खुल जाएगी।

आपकी छवि रॉबिनहुड और बाहुबली की रही है। ऐसे में लोग आपको वोट देंगे?

मेरी छवि रॉबिनहुड और बाहुबली वाली रही है, पर मेरा कर्म लोगों की मदद करना है। यह मेरा जन्मजात स्वभाव है। मैं अगर लोगों की मदद नहीं कर पाया तो मर जाऊंगा।

कोरोना काल को याद करें या पटना के बाढ़ की। जब लोग डर से घरों में कैद थे तो मैं अपनी जान पर खेलकर लोगों की मदद कर रहा था।

जब बिहार में बिजली एक-दो घंटे मिलती थी, तब पूर्णिया में 22-23 घंटे बिजली लोगों को मिलती थी। अस्पताल में इलाज मिलता था। डॉक्टरों की फीस तय थी। गरीबों को कोई लूट नहीं सकता था। छवि जो भी रही हो, मैंने कभी किसी से कुछ लिया नहीं, दिया ही है।

मैं रोज जरूरतमंदों को तन-मन-धन से मदद करता हूं। कभी कोई जरूरतमंद मेरे पास से खाली नहीं लौटा है। मैं जात-पात की राजनीति नहीं करता। मेरा घर ही सेवाश्रम है। दिल्ली-पटना-पूर्णिया कहीं भी मरीजों के इलाज से लेकर खाने-रहने की व्यवस्था इसमें की गई है। यह सभी जानते हैं।

आप लाखों रुपये जरूरतमंदों में बांट देते हैं। इतना पैसा आप लाते कहां से हैं?

मैं जमींदार परिवार से हूं। मेरे पास नौ हजार एकड़ जमीन थी, अब सौ एकड़ बची है। कोरोना काल में सात करोड़ रुपये में इंजेक्शन (रेमडेसिविर) खरीदकर मंगाई, बाढ़ में लोगों की मदद की। इसके लिए पूर्णिया में मेरे घर के पीछे की 90 कट्ठा और पास की पांच बीघा बेशकीमती जमीन बेच दी।

लोग अपने बच्चों के लिए संपत्ति अर्जित करते हैं और आप लोगों की मदद अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर कर रहे हैं। आपके स्वजन और बच्चे कुछ नहीं कहते?

मेरे स्वजन ने मेरे स्वभाव को स्वीकार कर लिया है। रही बात बच्चों के लिए संपत्ति अर्जित करने की तो मैं उस कहावत को मानता हूं- जो सपूत तो का धन संचय, जो कपूत तो का धन संचय।

मेरा बेटा दिल्ली विश्वविद्यालय से अपने कॉलेज का टापर है और वहीं से रणजी क्रिकेट खेलता है। बेटी दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज की टॉपर है और बास्केटबाल की अच्छी खिलाड़ी है।

वे सक्षम हैं अपने दम पर अच्छी जिंदगी जीने को। मैडम टोकती हैं, लेकिन वह भी जानती हैं कि जरूरतमंदों की मदद किए बिना मैं रुकूंगा नहीं।

आप लोगों की इतनी मदद करते हैं, पर वही लोग आपको वोट नहीं देते?

मैंने लोगों की मदद यह सोचकर कभी नहीं की कि वे मुझे वोट दें। मैंने मदद करते वक्त क्षेत्र या जाति को आधार नहीं बनाया। अपने इलाके के लोगों के दुख-सुख में खड़ा रहना मेरा स्वभाव है। वैसे यह भी पूरा सच नहीं कि जिसे मैं मदद करता हूं वे भी मुझे वोट नहीं देते।

पूर्णिया की जनता ने तीन बार मुझे निर्दलीय ही चुनाव में जीत देकर संसद भेजा है। इस बार भी मैं कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हूं।

आप 2004 में मधेपुरा के सांसद थे। 2014 में भी वहीं से जीते। 2019 का चुनाव भी वहीं लड़े। आपका घर मधेपुरा लोकसभा में ही है। फिर पूर्णिया क्यों?

मधेपुरा यादव बहुल इलाका है। यादवों के साथ दिक्कत यह है कि यह समाज लालू यादव को भी प्यार करता है और पप्पू यादव को भी। लोकसभा चुनाव में मधेपुरा के लोगों की पसंद लालू यादव हो जाते हैं।

राजद से इतर मेरे चुनाव मैदान में आने के बाद वे द्वंद्व में फंस जाते हैं। ऐसे में राजद का उम्मीदवार भी हार जाता है और मैं भी।

इतना काम करने और लोगों के लिए एक पैर पर खड़ा रहने के बाद वहां से दो बार हारा। 2019 में मधेपुरा से हारने के बाद ही मैंने तय कर लिया था कि आगे की तैयारी पूर्णिया से करूंगा।

पूर्णिया के लोगों ने ही मुझे पहली, दूसरी और तीसरी बार संसद भेजा था, वह भी एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में। मेरे जेल में होने के दौरान जब मेरी मां ने चुनाव लड़ा था तो वे बहुत कम मतों से हारी थीं।

कहने का आशय यह कि पूर्णिया की जनता भरोसा और प्यार मुझे वापस खींच रहा था, इसलिए यहां आ गया। वैसे भी मेरा जन्म पूर्णिया में ही हुआ है, अब तो मरने तक इस जमीन का साथ नहीं छोडूंगा।

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