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Patna AIIMS Director: हटाए गए एम्स पटना के निदेशक डॉ. जीके पाल के कैट से भी नहीं मिली राहत

एम्स पटना के पूर्व निदेशक डॉ. जीके पाल को कैट से राहत नहीं मिली। मामला गैर क्रीमी लेयर ओबीसी प्रमाणपत्र पर बेटे को गोरखपुर एम्स में पीजी नामांकन कराने से जुड़ा हुआ है। इस मामले में डॉ पाल के बेटे का नामांकन रद्द हो चुका है। वहीं उनसे गोरखपुर एम्स का प्रभार छीनने के बाद एम्स पटना से हटा कर मंत्रालय से सम्बद्ध कर दिया गया है।

By Pawan Mishra Edited By: Divya Agnihotri Updated: Sat, 16 Nov 2024 10:45 AM (IST)
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पटना एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. जीके पाल (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता, पटना। एम्स पटना के निदेशक सह सीईओ व गोरखपुर एम्स के प्रभारी डॉ. जीके पाल को कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल)से कोई राहत नहीं मिली। डॉ. जीके पाल ने अपने बेटे डॉ. औरो प्रकाश पाल को गैर क्रीमी लेयर ओबीसी प्रमाणपत्र पर गोरखपुर एम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम में नामांकन कराया था। मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहले उनसे गोरखपुर एम्स का प्रभार छीना और बाद में एम्स पटना से हटा कर मंत्रालय से सम्बद्ध कर दिया।

कैट की दो सदस्यीय बेंच ने सुनाया फैसला

इस मामले में डॉ. जीके पाल ने एम्स को स्वायत्तशासी निकाय बताते हुए उसके कर्मचारियों के सरकारी नहीं होने व नियुक्ति पत्र की शर्तों के उल्लंघन मामले में न्याय की गुहार लगाई थी। कैट की दो सदस्यीय बेंच जिसमें न्यायाधीश राजवीर सिंह वर्मा व प्रशासनिक विशेष कुमार राजेश चंद्र सदस्य थे, इस मामले की सुनवाई की। दोनों सदस्यों ने यह कहते हुए याचिका अस्वीकृत कर दी कि यह पूरी तरह से प्रशासनिक आदेश है।

जांच के बाद लिया गया निर्णय

स्वास्थ्य मंत्रालय ने शिकायत की एक समिति से जांच कराई व रिपोर्ट भेजकर निदेशक का पक्ष मिलने के बाद निर्णय लिया। ऐसे में न तो यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है और न ही सेवा शर्तों के अनुसार न्यूनतम तीन वर्ष तक नहीं हटाने का। अब सात जनवरी 2025 को हाईकोर्ट में न्यायाधीश एचपी सिंह इसकी सुनवाई करेंगे। अग्रिम नोटिस स्वीकार कर ली गई है और चार सप्ताह में निजी प्रतिवादी को नोटिस का जवाब दाखिल करना है।

अंतरिम राहत की मांग

डॉ. गोपाल कृष्ण पाल ने कैट से अंतरिम राहत की मांग करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को उनका पद वापस करने का आदेश देने की मांग की थी। उनके अधिवक्ता ने कहा कि उनकी नियुक्ति तीन वर्ष, जिसे पांच वर्ष तक या अधिकतम आयु तक बढ़ाए जाने की बात थी। आवेदक को इसकी अनुमति नहीं देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय से सम्बद्ध कर दिया गया जो कि उसका उल्लंघन है। उन्हें पद से हटाया जाना दंडात्मक प्रकृति का है।

बेटे की गलती पर पिता को सजा क्यों?

एक अज्ञात शिकायत कि उन्होंने प्रभारी निदेशक रहते हुए गैर क्रीमी लेयर ओबीसी प्रमाणपत्र पर बेटे को एम्स गोरखपुर में भर्ती कराया। नामांकन की अनुमति समिति ने दी थी और प्रमाणपत्र जांच के बाद उनके पुत्र ने नामांकन रद्द करा और जुर्माना राशि भर दी थी। मान लिया जाए कि उनका बेटा गलत प्रमाणपत्र का लाभ लेने का दोषी है भी तो उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी एम्स के कर्मचारी सरकारी नौकर नहीं हैं, इसलिए उन पर मलाईदार प्रमाणपत्र लागू करने का नियम मान्य नहीं है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में रिपोर्ट करें डॉ. जीके पाल

वहीं, एम्स प्रबंधन के अधिवक्ता ने कहा कि यह न तो समयूपर्व स्थानांतरण का मामला है और न ही निष्कासन का। डॉ. जीके पाल को सिर्फ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में रिपोर्ट करने को कहा गया है। यह निर्णय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के अनुमोदन से सक्षम प्राधिकारी ने लिया है और इसमें कोई विधिक त्रुटि नहीं है। मंत्री के अनुमोदन पर शासन के हित में यह आदेश दिया गया।

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