केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पटना एम्स के निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण पाल को पद से हटा दिया है। उन पर अपने बेटे डॉ. औरो प्रकाश के दाखिले में अनियमितता का आरोप है। डॉ. पाल ने अपने बेटे को नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट के आधार पर पीजी कोर्स में दाखिला दिलाया था जबकि वह इसके पात्र नहीं थे। इस मामले की जांच के बाद उन्हें हटाने का फैसला लिया गया।
जागरण संवाददाता, पटना। गोरखपुर एम्स के प्रभारी निदेशक रहते हुए नॉन क्रीमी लेयर के फर्जी प्रमाणपत्र पर पुत्र डॉ. औरो प्रकाश का परास्नातक पाठ्यक्रम में नामांकन कराने के मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पटना एम्स (Patna AIIMS) के निदेशक सह सीईओ डॉ. गोपाल कृष्ण पाल (Dr. Gopal Krishna Pal) को पद से हटा दिया है। उन्हें तुरंत मंत्रालय में रिपोर्ट करने को कहा गया है।
गोरखपुर के प्रभारी निदेशक पद से उन्हें कार्यकाल पूरा होने के चार दिन पूर्व ही हटाया जा चुका है। नए निदेशक की नियुक्ति या तीन माह तक के लिए देवघर एम्स के निदेशक डॉ. सौरभ वार्ष्णेय को पटना एम्स का प्रभारी निदेशक बनाया गया है। बताते चलें कि डॉ. सौरभ वार्ष्णेय पूर्व में दिसंबर 2021 से जुलाई 2022 तक यहां के प्रभारी निदेशक रह चुके हैं। पूर्णकालिक निदेशक के नहीं होने से तमाम विकास कार्य रुक जाने पर डॉ. जीके पाल की नियुक्ति की गई थी।
स्वास्थ्य मंत्रालय का पत्र जारी होने के बाद से डॉ. जीके पाल से फोन पर बात नहीं हो सकी।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अवर सचिव अरुण कुमार बिश्वास द्वारा सोमवार को जारी पत्र में कहा गया कि जब डा. गोपाल कृष्ण पाल एम्स गोरखपुर के अतिरिक्त प्रभार में थे, तब उन्होंने पुत्र डॉ. औरो प्रकाश पाल का दाखिला माइक्रोबायोलाजी विभाग में पीजी पाठ्यक्रम में नामांकन कराया था।
दानापुर अनुमंडल से अगस्त माह में जारी नॉन क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र पर उनका नामांकन हुआ था, जबकि डॉ. पाल इसके पात्र नहीं थे। चार सितंबर को गोरखपुर एम्स में सर्जरी के विभागाध्यक्ष ने इसकी शिकायत की थी। हालांकि, इस बीच उनके पुत्र ने जुर्माने की राशि भरते हुए अपना नामांकन रद करा लिया था, लेकिन अनियमितता की शिकायत पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने तीन सदस्यीय जांच टीम बना सात दिन में रिपोर्ट सौंपने को कहा था। 27 सितंबर को जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
7 अक्टूबर को स्वास्थ्य मंत्रालय ने डा. जीके पाल से शोकाज कर रिपोर्ट में दोषी साबित होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की जाए की बाबत तीन दिन में जवाब मांगा। 10 अक्टूबर को डॉ. जीके पाल ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए अपना गोपनीय जवाब मंत्रालय को भेज दिया। इसके बाद से ही उन्हें पटना एम्स के निदेशक पद से हटाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे। आखिरकार 5 नवंबर को स्वास्थ्य मंत्री की सहमति से मंत्रालय ने उन्हें हटाने का आदेश जारी कर दिया।
एम्स पटना के निदेशक के बाद डीन के पुत्र पर गाज तय
एम्स पटना का निदेशक बने डॉ. जीके पाल को अभी दो वर्ष तीन माह ही हुए थे, लेकिन इस बीच हुई नियुक्तियों में कई अनियमितताओं की शिकायत मंत्रालय पहुंच चुकी है। गैर क्रीमी लेयर ओबीसी प्रमाणपत्र पर अपने पुत्र के पीजी नामांकन मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण मांगे जाने के बाद उन्होंने इसी आधार पर फिजियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर बने अपने एक डीन के पुत्र के खिलाफ सात सदस्यीय आंतरिक समिति गठित की थी।
रिपोर्ट सौंपने की निर्धारित तिथि दो बार बढ़ाने के बाद आखिर सामुदायिक एंव पारिवारिक चिकित्सा के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. संजय पांडेय की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट निदेशक को सौंप दी। इसमें सहायक प्रोफेसर डॉ. कुमार सिद्धार्थ को नियुक्ति के लिए अनिधकृत रूप से गैर-क्रीमी लेयर (एनसीएल) ओबीसी प्रमाणपत्र प्रयोग करने का दोषी पाया गया है। गत वर्ष दिसंबर में जब इस प्रमाणपत्र का प्रयोग किया गया तब वे इसके लाभार्थी नहीं थे।
हालांकि, अब जब निदेशक डॉ. जीके पाल खुद पद से हटा दिए गए हैं तो वे इस पर कार्रवाई नहीं कर पाएंगे। एम्स पटना के वरिष्ठ डाक्टरों के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जांच रिपोर्ट व अन्य दस्तावेज मंगवाए हैं। आगे की कार्रवाई स्वास्थ्य मंत्रालय के स्तर से होगी।
इस्तीफा देने पर भी नहीं मिली मुसीबत से मुक्ति:
एम्स पटना में गत वर्ष हुई नियुक्तियों गैर क्रीमी लेयर ओबीसी प्रमाणपत्र का कई लोगों ने दुरुपयोग किया, लेकिन निदेशक व एक डीन के पुत्र का मामला सबसे अधिक चर्चा में रहा। निदेशक के पुत्र की तर्ज पर जांच समिति गठित होने के बाद डॉ. कुमार सिद्धार्थ ने भी 24 अक्टूबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, 7 अक्टूबर को गठित आंतरिक जांच समिति के निर्धारित समय 15 अक्टूबर तक रिपोर्ट नहीं देने के कारण एम्स पटना के अध्यक्ष डा. सुब्रत सिन्हा जो नियुक्ति व अनुशासनात्मक पदाधिकारी होते हैं ने इसे स्वीकार नहीं किया।
इस बीच सात सदस्यीय जांच समिति में दोफाड़ हो गए, एक का कहना था कि डॉ. सिद्धार्थ का तर्क कि 40 वर्ष की उम्र तक उनके पिता जो आइजीआइएमएस थे वह क्लास वन पदाधिकारी नहीं थे, इसलिए वे गैर क्रीमीलेयर ओबीसी का लाभ पाने के हकदार हैं को स्वीकार कर लिया जाए। वहीं कुछ सदस्य इसके विरोध में थे। ऐसे में पहली बार 25 तो दूसरी बार 4 नवंबर तक जांच की समयावधि बढ़ाई गई थी। जांच टीम के रिपोर्ट सौंपने के दिन ही मंत्रालय ने एम्स पटना के निदेशक डॉ. जीके पाल को हटाते हुए डॉ. कुमार सिद्धार्थ के मामले की दोनो जांच रिपोर्ट मंगवाई हैं।
नए निदेशक के लिए मुसीबत बनेंगी आरटीआई:
एम्स पटना के अधिकारियों के अनुसार डॉ. जीके पाल के समय में हुई डॉक्टरों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियों के बारे में कई लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी है। इन जानकारियों के सामने आने के बाद नियुक्तियों में हुईं कई अनियमितताएं सामने आ सकती हैं, जिनसे निपटना प्रभारी निदेशक के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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