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    पटना में गंगा की मिट्टी और नेचुरल रंग से बन रहीं मां दुर्गा की प्रतिमा, बंगाल से आता है शृंगार का सामान

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 11:38 AM (IST)

    पटना में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं। कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमाओं को बनाने में जुटे हैं और पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग कर रहे हैं। गंगा की मिट्टी और पानी वाले रंगों से मूर्तियां बनाई जा रही हैं। कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और मौसम की अनिश्चितता के बावजूद कारीगर अपनी कला और परंपरा के प्रति समर्पित हैं।

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    मिट्टी-पुआल में ढल रही आस्था की देवी मां दुर्गा

    जागरण संवाददाता, पटना। त्योहारों के मौसम की शुरुआत हो चुकी है और इसी के साथ मां दुर्गा की आराधना की तैयारियां भी जोर पकड़ने लगी हैं। पटना की गलियों, कुर्जी मोड़, चूड़ी बाजार, डाकबंगला और बंगाली अखाड़ा। हर जगह कारीगर अपनी कला से मां दुर्गा को साकार रूप देने में जुट गए हैं।

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    कहीं बांस का ढांचा खड़ा किया जा रहा है, तो कहीं भूसा और कपड़े से उसे मजबूती दी जा रही है। कई जगह मूर्तियों पर पहली परत की मिट्टी चढ़ चुकी है और मां के नयन-नक्श, हाथ-पांव आकार लेने लगे हैं। यह प्रक्रिया कला का परिचय देती है। वही धैर्य, निष्ठा और कठिन परिश्रम की मिसाल भी है।

    गंगा की मिट्टी, पानी वाले रंग का होता उपयोग

    बंगाली अखाड़ा स्थित मूर्तिकार संदीप पाल, जो अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, बताते हैं, प्रतिमा का निर्माण अपने आप में साधना है।

    हम पूरी तरह पर्यावरण के प्रति सजग रहते हैं। गंगा जी और खेतों से लाई गई शुद्ध मिट्टी, सरकंडा, पटवा और भूसा ही प्रयोग होता है। पटवा पानी में आसानी से गल जाता है।

    रंगों में भी हम पानी आधारित रंग इस्तेमाल करते हैं, ताकि पूजा के बाद विसर्जन से नदी को कोई नुकसान न पहुंचे। तेल-आधारित पेंट के बजाय पानी के रंग सुरक्षित होते हैं।

    यहां तक कि टिकाऊपन के लिए चाय का पाउडर और इमली के बीज तक का उपयोग किया जाता है। बताते हैं कि इस बार मां का मुकुट और शृंगार का सारा सामान बंगाल से मंगवाया गया है। सबसे ऊंची प्रतिमा 10 फीट की तैयार हो रही है, जिसकी कीमत लगभग 80 हजार रुपये होगी।

    कच्चे माल की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं। पुआल 500 रुपये का 40 किलो, पानी वाला रंग एक हजार रुपये किलो, और सफेद पाउडर रंग की बोरी 500 रुपये तक पहुंच गई है।

    वे कहते हैं, सबसे कठिन काम पुआल बांधना होता है। यदि ढांचे पर पुआल ठीक से न बंधा तो पूरी प्रतिमा का आकार बिगड़ सकता है। एक प्रतिमा को तैयार करने में लगभग 15 दिन लगते हैं।

    वहीं, चूड़ी बाजार के पास प्रतिमा निर्माण में लगे संजीव कुमार बताते हैं कि इस साल मौसम की अनिश्चितता ने काम पर असर डाला है। गंगा का पानी बढ़ने से मिट्टी निकालने में दिक्कत हुई।

    पिछले साल हमने 25 प्रतिमाएं बनाई थीं, लेकिन इस बार सिर्फ 18 का आर्डर मिला है। सबसे बड़ी प्रतिमा कदम कुआं में बनेगी, जो 15 फीट ऊंची होगी और जिसकी कीमत 80 हजार रुपये है।

    शृंगार और रंग का सामान बंगाल से आ रहा

    पंचमुखी प्रतिमा बोरिंग कैनाल रोड पर 14 फीट की तैयार की जा रही है। इन प्रतिमाओं के लिए शृंगार और रंग का सामान हमेशा की तरह बंगाल से आता है।

    संजीव बताते हैं कि वे परंपरा से कोई समझौता नहीं करते। मिट्टी, भूसा और कपड़े की परतें, फिर रंग, फिर आंख और नयन-नक्श। मौसम अच्छा न होने पर भी हम धैर्य रखते हैं।

    पेंट को टिकाऊ बनाने के लिए इमली का बीज इस्तेमाल करते हैं। यह हमारी पुरानी परंपरा है। इसका हम हर स्थिति में पालन करते हैं और हम कभी केमिकल का उपयोग नहीं करते। यह पर्यावरण के लिए भी बहेतर है।

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