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ये कैसा न्‍याय! दुष्कर्म-हत्या मामले में पुलिस की गलत जांच ने दिलाई फांसी की सजा, जेल में कटे 8 साल; अब हाईकोर्ट ने किया बरी

Bihar News वर्ष 2015 में सबौर पुलिस ने एक व्यक्ति के खिलाफ दुष्कर्म कर हत्या करने के मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी। 2017 में अपर सत्र न्यायाधीश भागलपुर की अदालत ने अभियुक्त को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। 2018 में पटना हाई कोर्ट ने भी सत्र न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा था। हालांकि अब फैसला बदल लिया गया है।

By Jagran NewsEdited By: Aysha SheikhPublished: Fri, 13 Oct 2023 11:47 AM (IST)Updated: Fri, 13 Oct 2023 01:39 PM (IST)
पटना हाईकोर्ट ने फांसी की सजा प्राप्त व्यक्ति को किया बरी

राज्य ब्यूरो, पटना। पटना हाईकोर्ट ने कथित तौर पर 11 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म कर हत्या करने के अभियुक्त को बरी कर दिया है। इस मामले में सबौर पुलिस द्वारा वर्ष 2015 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

दो फरवरी, 2017 को अपर सत्र न्यायाधीश, भागलपुर की अदालत ने अभियुक्त मुन्ना पांडेय को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। 10 अप्रैल, 2018 को पटना हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के निर्णय को सही पाया और मृत्यु दंड को बरकरार रखा।

सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाई कोर्ट को फिर से भेजा केस

क्रिमिनल अपील संख्या- 1271/2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि सत्र न्यायालय और हाई कोर्ट मूकदर्शक बने रहे और वाद से संबंधित सभी प्रासंगिक जानकारी प्राप्त नहीं की, जो कि मुन्ना पांडेय की बेगुनाही को दर्शाता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि गवाहों ने न्यायालय में अपना स्पष्ट रूप से बयान बदल लिया और मुन्ना पांडेय को पहली बार गवाही के दौरान फंसाया गया।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह केस पटना हाई कोर्ट को प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए फिर से भेजा और धारा 367 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 तथा कानून के तहत अपना फैंसला सुनाने के लिए निर्देशित किया।

पुलिस द्वारा की गई जांच में बताई खामियां

गुरुवार को न्यायाधीश आशुतोष कुमार एवं न्यायाधीश आलोक कुमार पाण्डेय की खंडपीठ ने मुन्ना पांडे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने गवाहों में परस्पर विरोधाभास पाते हुए यह तय किया कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे अपना मामला साबित नहीं किया और यह केस रिकॉर्ड से स्पष्ट था कि मुन्ना पांडे को इस मामले में फंसाया गया है।

अपीलकर्ता के अधिवक्ता अंशुल, हरिणी रघुपति एवं अभिनव अशोक ने दलील दी कि पुलिस द्वारा की गई जांच में गंभीर खामियां थी। अब नौ वर्षों तक गलत तरीके से कैद में रहने के बाद मुन्ना पांडे रिहा हो जाएंगा।

अधिवक्ता अंशुल के साथ साथ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39ए, आपराधिक न्याय केंद्र ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय और पटना उच्च न्यायालय के समक्ष मुन्ना पांडे का प्रतिनिधित्व किया। इस प्रोजेक्ट के तहत उन लोगो की मदद की जाती है, जो स्वयं अधिवक्ता रख कर अपना केस लड़ने में अक्षम होते हैं ।

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