Aditya L1 Mission नासा के मिशन की कॉपी नहीं आदित्य एल-1, सूर्य के अक्षय ऊर्जा के स्रोत के राज से उठाएगा पर्दा
Aditya L1 Mission News आदित्य एल-1 नासा के सूर्य मिशन की कॉपी नहीं है। किसी के मन में यदि यह विचार पैदा होता है कि दोनों एक ही मिशन हैं तो उसे त्याग दें। इसकी कई विशेषताएं हैं जो इसे अन्य मिशन से अलग करती हैं। यह मिशन पहली बार सूर्य के प्रकाशमंडल के निकट अल्ट्रावॉयलेट बैंड में स्थापित होगा।
जागरण संवाददाता, पटना। आदित्य एल-1 नासा के सूर्य मिशन की कॉपी नहीं है। अगर किसी के भी मन में ऐसा भ्रम है तो वह इसे त्याग दे। इसरो के इस मिशन की ऐसी कई अहम विशेषताएं हैं, जो अन्य मिशन से इसे बेहद ही अलग करती हैं। ये बातें सोमवार को पटना साइंस कॉलेज के फिजिक्स विभाग में आदित्य एल-1 सपोर्ट सेल के रिसर्च एसोसिएट डॉ. बलवीर सिंह ने कहीं।
डॉ. बलवीर सिंह ने बताया कि यह मिशन पहली बार सूर्य के प्रकाशमंडल के निकट अल्ट्रावॉयलेट बैंड में स्थापित होगा। यह कोरोनल मास इंजेक्शन (CME) के असमंजसपूर्ण रूप से प्रकाशित होने वाले क्षेत्र पर प्रकाश डालेगा। सूर्य में होने वाले मौसमी परिवर्तनों का मुख्य प्रेरक कोरोनल मैग्नेटिक फील्ड का मापन किया जाएगा।
क्यों अन्य मिशन से अलग है आदित्य एल-1
उन्होंने कहा कि यह मिशन सूर्य में फूटने वाली घटनाओं के क्रम व प्रक्रिया, सूर्य की ऊपरी वायुमंडलीय परतों, करोमोस्फेयर व कोरोना की गति के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा से राज उठाने वाला है।
पांच लैंग्रेंज बिंदु में एल-1 सबसे उपयुक्त डॉ. बलवीर सिंह से विद्यार्थियों की जिज्ञासा पर कहा कि एल-1 का मतलब लैंग्रेंज बिंदु एक है। फ्रांसीसी गणितज्ञय जोसेफ लुई लैंग्रेंज के नाम पर अंतरिक्ष में कुछ बिंदुओं का नाम रखा गया है।
लैंग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में वह स्थान है, जहां दो बड़े पिंडों (सूर्य-पृथ्वी) का गुरुत्वाकर्षण बैलेंस होता है। लैंग्रेंज बिंदु किसी अंतरिक्ष यान के लिए पार्किंग स्थल का काम करते हैं। यहां किसी अंतरिक्ष यान को वर्षों तक रखकर परीक्षण किया जा सकता है। पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा को मिलाकर पांच लैंग्रेंज हैं।
एल-3 सूर्य की दूसरी तरफ है, इसलिए वह पृथ्वी विज्ञानी के लिए किसी काम का नहीं है। एल-1 व एल-2 पृथ्वी के पास है। एल-1 पर सैटेलाइट होने से सूर्य को बगैर किसी ग्रहण के लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को सहजता से देखा जा सकता है। इसकी दूरी पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर है।
सात पेलोड में चार रिमोट सेंसिंग युक्त
डा. बलवीर ने कहा कि आदित्य एल-1 में सात पेलोड लगाए गए हैं। पहला पेलोड लैंग्रेंज बिंदु के पार्टिकल्स का अध्ययन करेगा। सात में चार रिमोर्ट सेंसिंग युक्त हैं। तीन यथास्थान रहकर अध्ययन करेंगे। चार पेलोड सीधे सूर्य को देखेंगे तथा तीन लैंग्रेंज बिंदु पर कणों और क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे।
कार्यक्रम का संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार ने किया। विज्ञानी को अंग वस्त्र और स्मृति चिह्न देकर किया सम्मानित। मौके पर प्राध्यापक डॉ. अशोक कुमार झा, डा. संजय कुमार, डॉ. संतोष प्रसाद गुप्ता, डॉ. रोहित सिंह आदि मौजूद थे।
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