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इधर PM Modi बिहार में कर रहे एक के बाद एक धुआंधार रैली, उधर महागठबंधन में अब भी मची सीटों की किचकिच

पीएम मोदी एनडीए के पक्ष में महज एक हफ्ते के भीतर दूसरी जनसभा कर गए। इधर महागठबंधन अब भी प्रत्याशियों के चयन में ही उलझा है। बाहरियों की आवक-आगवानी घरवालों को रास नहीं आ रही है। पहले चरण का चुनाव-प्रचार परवान चढ़ने लगा है लेकिन महागठबंधन के किसी भी बड़े नेता की अबतक कोई बड़ी चुनावी सभा नहीं हुई है।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sun, 07 Apr 2024 11:45 PM (IST)
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महागठबंधन अब भी प्रत्याशियों के चयन में उलझा। (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, पटना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पक्ष में सप्ताह भीतर दूसरी जनसभा कर गए और महागठबंधन अभी प्रत्याशियों के चयन में ही उलझा हुआ है।

चुनावी संभावनाओं के आकलन का आधार नहीं होकर भी यह महागठबंधन में किचकिच का कारण तो बन ही गया है। सीट बंटवारे में देरी के साथ शुरू हुआ अंतर्द्वंद्व अब दल छोड़ने से लेकर क्षुब्ध नेताओं की मुखरता तक पहुंच चुका है।

इसका एकमात्र कारण राजद की दबंगई है, जिसने एकतरफा निर्णय लेते हुए महत्वपूर्ण घटक कांग्रेस को कठिन मैदान में भेज दिया और अब अपने प्रत्याशियों के चयन में मनमानी किए जा रहा है। बाहरियों की यह आवक-आगवानी घरवालों को रास नहीं आ रही है।

दो जनसभा कर चुके हैं PM मोदी

पहले चरण का प्रचार अभियान परवान की ओर बढ़ने लगा है, लेकिन महागठबंधन के किसी बड़े नेता की अब तक कोई चुनावी सभा नहीं हुई। ऐसा तब, जबकि तीन दिन के बाद ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर बिहार में जनसभा कर गए हैं।

जमुई में मोदी की पहली जनसभा चार अप्रैल को हुई थी और सात अप्रैल को दूसरी नवादा में। गया और औरंगाबाद के साथ इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में पहले चरण के तहत 19 अप्रैल को मतदान होना है। औरंगाबाद कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है।

अभय कुशवाहा के आने से राजद में रार

सीट बंटवारे के पहले ही लालू ने वहां अभय कुशवाहा को राजद का सिंबल दे दिया। पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार मन मसोस कर रह गए। वहां महागठबंधन का प्रचार अभियान एकाकी होकर रह गया है।

सिंबल लेने से एक दिन पहले जदयू छोड़कर आए अभय कुशवाहा से तालमेल बिठाने में राजद के स्थानीय कार्यकर्ता बहुत सहज नहीं और निखिल कुमार के चौबारे में पसरे सन्नाटे के बाद कांग्रेस-जनों के लिए भी करने-धरने को कुछ बचा नहीं।

फायदा उठाने की फिराक में भाजपा

भाजपा तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थी। वहां उसके प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह अपनी चौथी जीत के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं। राजद के पास गंवाने को कुछ नहीं। अलबत्ता वह सफल हुआ तो औरंगाबाद में उसकी पहली जीत होगी।

RJD का दबदबा चाहते हैं लालू यादव

विपक्षी एकता की पहल के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय मानी गई होती तो आज बिहार में महागठबंधन कुछ और हैसियत में होता। ऐसा राजद के कारण नहीं हुआ, क्योंकि उसे महागठबंधन में अपना दबदबा चाहिए था। नीतीश ने अलग राह ली तो यह इत्मीनान हुआ कि अब सीट बंटवारे में कोई पेच नहीं रहा, लेकिन लालू प्रसाद के रहते राजनीति बिना पेच के हो ही नहीं सकती।

महागठबंधन में सीट शेयरिंग में क्यों हुई देरी?

राजद की दबंगई ऐसी कि पहले चरण के नामांकन की तिथि निकल जाने के बाद सीटों का बंटवारा हुआ। उसके बाद प्रत्याशियों के जोहे-जोड़े जाने की ऐसी कवायद शुरू हुई कि दल के लोगों के दावे दरकिनार होने लगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव इस पर राजद में अपना विरोध प्रकट कर चुके हैं तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. अनिल शर्मा कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ हो गए हैं।

नवादा में उलझा पेच

औरंगाबाद के पड़ोसी गया में कोई असहज स्थिति नहीं, क्योंकि उस सीट पर राजद की दावेदारी स्वाभाविक थी। हालांकि, उससे सटे नवादा में पेच उलझ गया है। जेल में बंद पूर्व सांसद राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव मोल-तोल की शिकायत के साथ वहां डटे हुए हैं।

राजद प्रत्याशी श्रवण कुशवाहा आधार मतों को एकजुट रखने के लिए जूझ रहे। सवर्ण मतों के आधार पर कांग्रेस भी इस सीट की इच्छा रखती थी। अब जिला-स्तरीय कार्यकर्ता बुझे मन से राजद के साथ हैं।

जमुई का क्या है हाल?

राजद के कुछ दिलजले जमुई में भी हैं। उसकी प्रत्याशी अर्चना रविदास के लिए पहला चुनावी अनुभव है। गनीमत यह कि अर्चना को दलीय नेतृत्व से पर्याप्त दिशा-निर्देश मिल रहा।

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