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Prashant Kishor: प्रशांत, पार्टी और प्रेसीडेंट... पटना में दिखेगा पीके का दम, दल के साथ रणबाकुरों का भी करेंगे एलान

चुनावी रणनीतिकार से नेता बने जनसुराज संस्थापक प्रशांत किशोर कल वेटनरी कॉलेज में अपना दम दिखाएंगे। दरअसल खुद को गांधी का भक्त बताने वाले प्रशांत किशो दो अक्टूबर को वेटनरी कॉलेज से अपने राजनीतिक दल की उद्घोषणा करेंगे। पार्टी का दावा है कि उनका उद्देश्य बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में लाना है। पार्टी का मानना है कि राजनीति को जिम्मेदार बनाने के लिए जनता की भागीदारी आवश्यक है।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Mohit Tripathi Updated: Tue, 01 Oct 2024 08:18 PM (IST)
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वेटनरी कॉलेज में दल, अध्यक्ष और संचालन समिति की घोषणा करेंगे प्रशांत किशोर।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं। बिहार का मिजाज तो वैसे भी फिरंट रहता है। बारंबार के पुराने प्रयोगों से वह बिदक जाता है तो, नए दावे से मुंह फेर लेने में भी नहीं हिचकता।

इसका प्रमाण पिछले वर्षों में बनते-बिगड़ते रहे राजनीतिक दल हैं। अब बारी जन सुराज की है, जो आज अभियान का चोला उतार राजनीतिक दल की काया में समा जाएगा।

बिहार के लिए इसे एकमात्र विकल्प बता रहे सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) का दावा है कि इसकी रीति-नीति राजनीति को जिम्मेदार बनाने वाली होगी। इसी आधार पर जन सुराज की सफलता और स्थायित्व का दावा है।

2 दशक, दर्जनभर दल; 4 तो कुशवाहा ने ही बना डाली

पिछले दो दशक में बिहार में लगभग एक दर्जन राजनीतिक दल अस्तित्व मेंं आए। इनमें से सर्वाधिक चार पार्टियों का गठन तो अकेले उपेंद्र कुशवाहा ने कर दिया। इसके बाद भी उनकी अपनी राजनीति डगमगाती रही है।

लोकसभा में तीन सदस्य और केंद्र में मंत्री का पद उनकी अब तक की सर्वोत्तम उपलब्धि है। दलों के गठन में उनका मुकाबला एकमात्र पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि कर रहे। अब तक वे तीन दल बना चुके हैं, लेकिन हाथ हासिल कुछ नहीं।

इस मायने में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी होशियार कहे जा सकते हैं। मात्र एक सांसद और चार विधायकों के दम पर केंद्र और राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी का उन्हें स्वर्णिम सुख है।

हम की यह उपलब्धि राजनेताओं को पार्टियों में विघटन, नए दल के गठन और परिवार को प्रश्रय देने के लिए प्रेरित करती है।

पीके के दावे में कितना दम

पीके का दावा है कि ऐसी उपलब्धि व उपाय के लिए जन सुराज मेंं गुंजाइश ही नहीं। यह प्लुरल्स पार्टी जैसे बेतुकों प्रयोगों में भी विश्वास नहीं रखता। अगर यही होता तो, पिछले दो वर्षों से वे पदयात्रा नहीं कर रहे होते, जो विधानसभा चुनाव के बाद भी अनवरत जारी रहेगी।

जन सुराज जनता की इच्छा-अपेक्षा की परिणति है और यह दृष्टि-पत्र (विजन डाक्यूमेंट) से संचालित होगा। यह दृष्टि-पत्र अगले दस वर्षाें में बिहार को विकसित राज्योंं की श्रेणी में लाने वाला होगा।

पहला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से

आधिकारिक दावा है कि एक करोड़ संस्थापक सदस्य मिलकर जन सुराज का गठन कर रहे। गांधी जयंती पर बुधवार को पटना के वेटनरी कॉलेज प्रांगण में नए दल, अध्यक्ष व संचालन समिति की घोषणा के लिए मंच तैयार हो चुका है।

एक वर्ष की पदावधि वाला पहला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से होगा। पार्टी के संदर्भ मेंं किसी भी निर्णय के लिए अधिकृत संचालन समिति मेंं 25 सदस्य होंगे।

दलों का दलदल

  • जनता दल से अलग होकर 2000 में रामविलास ने लोजपा का गठन किया, जो 2021 में दो फांक हो गई। एक धड़े का नेतृत्व चिराग पासवान कर रहे और दूसरे का पशुपति पारस।
  • 2001 में नागमणि ने राजद को तोड़ राजद (लोकतांत्रिक) का गठन किया। 2004 में वह भाजपा में समा गया। 2015 में उनकी बनाई समरस समाज पार्टी 2017 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में जा मिली। 2021 में उन्होंने राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी बनाई। कागज में यह आज भी कायम है।
  • जदयू से अलग होकर उपेंद्र कुशवाहा ने 2007 मेंं राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई। 2009 में वह जदयू में विलीन हो गई। जदयू से दोबारा अलग होकर उन्होंने 2013 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया। वह भी 2021 में जदयू में समा गई। 2023 में जदयू से तीसरी बार अलग होकर कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक जनता दल का गठन किया और उसके बाद राष्ट्रीय लोक मोर्चा का।
  • जदयू से बगावत कर 2015 में जीतन राम मांझी ने हम का गठन किया।
  • राजद से बेदखल होने के बाद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जन अधिकार पार्टी बनाई। इसी वर्ष कांग्रेस में उसका विलय हो चुका है।
  • 2018 में मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी बनाई।
  • 2020 में पुष्पम प्रिया चौधरी ने प्लुरल्स पार्टी का गठन किया था। करारी हार के बाद नेता नजर नहीं आ रहे। अलबत्ता पार्टी बनी हुई है।
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