जयंती पर विशेष: पंडित राजकुमार शुक्ल के कहने पर बिहार आए थे बापू
बिहार के चंपारण में गांधीजी ने अपने अहिंसक आंदोलन का आगाज किया। चंपारण के राजकुमार शुक्ल के कहने पर गांधीजी चंपारण आए थे। शुक्ल की जयंती पर जानिए उनके बारे में ये खास बातें।
By Amit AlokEdited By: Updated: Thu, 23 Aug 2018 05:54 PM (IST)
पटना [जेएनएन]। चंपारण सत्याग्रह के प्रणेता और सत्याग्रह के लिए जमीन तैयार करने वाले पंडित राजकुमार शुक्ल का चंपारण सत्याग्रह में अहम योगदान रहा। पंडित शुक्ल का जन्म 23 अगस्त 1875 को बिहार के पश्चिम चंपारण बेतिया जिले के चनपटिया के सतवरिया गांव के कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। भोजपुरी भाषा की कैथी लिपि के जानकर पंडित राजकुमार शुक्ल चंपारण में तिनकठिया प्रथा को लेकर काफी व्यथित थे। जिसका हल खोजने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया।
आंदोलन में सक्रिय रहे शुक्ल
पंडित शुक्ल ने वर्ष 1908 में दशहरा मेले के समय लौरिया, पिपरहिया, लौकरिया, जोगापट्टी, लोहिआरिया कुडिय़ा कोठी आदि गांवों में किसानों को संगठित कर बैठक की। बैठक का असर हुआ कि आसपास के इलाकों में नील की खेती को बंद कर दिया गया। जिसके बाद अंग्रेजों ने किसानों पर मुकदमा दायर कर जेल में बंद कर दिया। किसानों पर चलाए गए मुकदमों की पैरवी करने के लिए राजकुमार शुक्ल बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पटना एवं कोलकाता आदि शहरों में जाकर वकीलों से मिलते और किसानों को न्याय दिलाने का प्रयास करते रहे।
चंपारण आंदोलन को अखबार में दिलाई जगह
चंपारण में किसानों के शोषण से जुड़े समाचार तत्कालीन 'बिहारी' अखबार में प्रकाशित होते थे। बाद मे अखबार के संपादक महेश्वर बाबू को भी बर्खास्त करने के साथ अखबार को बंद कर दिया गया। कुछ समय बाद शुक्ल ने कानपुर से प्रकाशित 'प्रताप' साप्ताहिक अखबार में नौ नवंबर 1913 को किसानों की समस्या प्रमुखता से छापा गया। जिसके संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे।
राजकुमार शुक्ल ने कानपुर जाकर प्रताप अखबार के दफ्तर में जाकर विद्यार्थी से मुलाकात की और खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने का निवेदन किया। प्रताप ने वर्ष 1914-1916 तक कुल 12 अंकों में चंपारण से संबंधित खबरें छापी। शुक्ल का बार-बार कानपुर आना और गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलना और किसानों का दर्द सुनाना आदि घटनाओं को देखते हुए विद्यार्थी ने महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका से भारत आने की बात बताई। इसे सुनकर शुक्ल काफी खुश हुए। शुक्ल के जीवन का एक मात्र लक्ष्य महात्मा गांधी को चंपारण लाना था। इसके लिए वह दिन-रात जुट थे।
शुक्ल की महात्मा गांधी से हुई मुलाकात
10 अप्रैल 1914 को बांकीपुर में बिहार प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन और 13 अप्रैल 1915 को छपरा में हुए कांग्रेस सम्मेलन में पंडित शुक्ल ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सम्मेलन में पंडित शुक्ल ने चंपारण के किसानों की स्थिति और अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी प्रमुखता से रखी। शुक्ल लखनऊ कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे। 26 - 30 दिसंबर 1916 को लखनऊ में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में पहुंचने के बाद शुक्ल ने महात्मा गांधी से मिलकर चंपारण के किसानों के दर्द को साझा किया और गांधी को चंपारण आने के लिए अनुरोध किया। शुक्ल के बार-बार आग्रह करने के बाद गांधी ने चंपारण आने का आश्वासन दिया।
आंदोलन के लिए शुक्ल ने की थी जमीन तैयार
कोलकाता में पंडित राजकुमार शुक्ल से मुलाकात के बाद गांधी शुक्ल के साथ 10 अप्रैल 1917 को बांकीपुर पहुंचे और फिर मुजफ्फरपुर होते हुए 15 अप्रैल को 1917 को चंपारण की धरती पर कदम रखा। गांधी चंपारण पहुंच कर न्यायालय में उपस्थित होकर बयान दिया जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गांधी के आंदोलन के लिए शुक्ल ने जमीन तैयार की। जिसके बाद गांधी को अपेक्षित सफलता मिली।
बाद में गांधी विश्व के बड़े नेता बनकर उभरे। गांधी को चंपारण लाने और सत्याग्रह आंदोलन को सफल बनाने में पंडित शुक्ल की अहम भूमिका रही। आंदोलन में अपनी जमीन-जायदाद सबकुछ न्यौछावर करने वाले शुक्ल के बाकी के दिन गरीबी में बीता और अपना काम पूरा करने के बाद शुक्ल 20 मई 1929 को दुनिया छोड़ विदा हो गए। लोगों ने चंदा एकट्ठा कर शुक्ल का अंतिम संस्कार किया। शुक्ल की बेटी देवपति ने उन्हे मुखाग्नि दी। शुक्ल के निधन के बाद अंग्र्रेज अधिकारी निलहे एम्मन का दिल भी पिघल गया था।
आंदोलन में सक्रिय रहे शुक्ल
पंडित शुक्ल ने वर्ष 1908 में दशहरा मेले के समय लौरिया, पिपरहिया, लौकरिया, जोगापट्टी, लोहिआरिया कुडिय़ा कोठी आदि गांवों में किसानों को संगठित कर बैठक की। बैठक का असर हुआ कि आसपास के इलाकों में नील की खेती को बंद कर दिया गया। जिसके बाद अंग्रेजों ने किसानों पर मुकदमा दायर कर जेल में बंद कर दिया। किसानों पर चलाए गए मुकदमों की पैरवी करने के लिए राजकुमार शुक्ल बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पटना एवं कोलकाता आदि शहरों में जाकर वकीलों से मिलते और किसानों को न्याय दिलाने का प्रयास करते रहे।
चंपारण आंदोलन को अखबार में दिलाई जगह
चंपारण में किसानों के शोषण से जुड़े समाचार तत्कालीन 'बिहारी' अखबार में प्रकाशित होते थे। बाद मे अखबार के संपादक महेश्वर बाबू को भी बर्खास्त करने के साथ अखबार को बंद कर दिया गया। कुछ समय बाद शुक्ल ने कानपुर से प्रकाशित 'प्रताप' साप्ताहिक अखबार में नौ नवंबर 1913 को किसानों की समस्या प्रमुखता से छापा गया। जिसके संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे।
राजकुमार शुक्ल ने कानपुर जाकर प्रताप अखबार के दफ्तर में जाकर विद्यार्थी से मुलाकात की और खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करने का निवेदन किया। प्रताप ने वर्ष 1914-1916 तक कुल 12 अंकों में चंपारण से संबंधित खबरें छापी। शुक्ल का बार-बार कानपुर आना और गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलना और किसानों का दर्द सुनाना आदि घटनाओं को देखते हुए विद्यार्थी ने महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका से भारत आने की बात बताई। इसे सुनकर शुक्ल काफी खुश हुए। शुक्ल के जीवन का एक मात्र लक्ष्य महात्मा गांधी को चंपारण लाना था। इसके लिए वह दिन-रात जुट थे।
शुक्ल की महात्मा गांधी से हुई मुलाकात
10 अप्रैल 1914 को बांकीपुर में बिहार प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन और 13 अप्रैल 1915 को छपरा में हुए कांग्रेस सम्मेलन में पंडित शुक्ल ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सम्मेलन में पंडित शुक्ल ने चंपारण के किसानों की स्थिति और अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी प्रमुखता से रखी। शुक्ल लखनऊ कांग्रेस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे। 26 - 30 दिसंबर 1916 को लखनऊ में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में पहुंचने के बाद शुक्ल ने महात्मा गांधी से मिलकर चंपारण के किसानों के दर्द को साझा किया और गांधी को चंपारण आने के लिए अनुरोध किया। शुक्ल के बार-बार आग्रह करने के बाद गांधी ने चंपारण आने का आश्वासन दिया।
आंदोलन के लिए शुक्ल ने की थी जमीन तैयार
कोलकाता में पंडित राजकुमार शुक्ल से मुलाकात के बाद गांधी शुक्ल के साथ 10 अप्रैल 1917 को बांकीपुर पहुंचे और फिर मुजफ्फरपुर होते हुए 15 अप्रैल को 1917 को चंपारण की धरती पर कदम रखा। गांधी चंपारण पहुंच कर न्यायालय में उपस्थित होकर बयान दिया जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गांधी के आंदोलन के लिए शुक्ल ने जमीन तैयार की। जिसके बाद गांधी को अपेक्षित सफलता मिली।
बाद में गांधी विश्व के बड़े नेता बनकर उभरे। गांधी को चंपारण लाने और सत्याग्रह आंदोलन को सफल बनाने में पंडित शुक्ल की अहम भूमिका रही। आंदोलन में अपनी जमीन-जायदाद सबकुछ न्यौछावर करने वाले शुक्ल के बाकी के दिन गरीबी में बीता और अपना काम पूरा करने के बाद शुक्ल 20 मई 1929 को दुनिया छोड़ विदा हो गए। लोगों ने चंदा एकट्ठा कर शुक्ल का अंतिम संस्कार किया। शुक्ल की बेटी देवपति ने उन्हे मुखाग्नि दी। शुक्ल के निधन के बाद अंग्र्रेज अधिकारी निलहे एम्मन का दिल भी पिघल गया था।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।