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11 वर्षों की नौकरी में 23 बार हुआ था राष्ट्रकवि दिनकर का स्थानांतरण

ब्रिटिश हुकूमत को राष्ट्रकवि दिनकर की राष्‍ट्रभक्ति पसंद नहीं थी। यही कारण था कि 11 वर्षों की नौकरी में उनका 23 बार स्थानांतरण किया गया।

By Ravi RanjanEdited By: Updated: Mon, 24 Apr 2017 08:17 PM (IST)
11 वर्षों की नौकरी में 23 बार हुआ था राष्ट्रकवि दिनकर का स्थानांतरण
पटना [चन्द्रशेखर]। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की राष्ट्रभक्ति ब्रिटिश हुकूमत को पसंद नहीं थी। यही कारण था कि 11 वर्षों की नौकरी में उनका 23 बार स्थानांतरण किया गया। इसके बावजूद उन्होंने अंग्रेजी अत्याचार के विरूद्ध लिखना नहीं छोड़ा। आज उनकी पुण्यतिथि है। 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बेगूसराय के सिमरिया गांव में 23 सितंबर,1908 को हुआ था। जब वे दो वर्ष के थे तब उनके पिता रवि सिंह का देहांत हो गया था। मां मनरूप देवी ने ही उनका पालन-पोषण किया। पटना कॉलेज से हिन्दी में स्नातक की डिग्री लेने के बाद 1928 में साइमन कमीशन के भारत आगमन के विरोध में गांधी मैदान में हुए आंदोलन में वे शामिल हुए थे।

वर्ष 1934 में उन्होंने पटना निबंधन कार्यालय में सब रजिस्ट्रार के पद पर सरकारी नौकरी शुरू कर दी। वे पटना निबंधन कार्यालय के पहले भारतीय सब-रजिस्ट्रार थे। 1945 तक उन्होंने यह नौकरी की। 1945 में उन्हें प्रचार निदेशालय में उप निदेशक बना दिया गया। 1947 में देश की आजादी मिलने तक उन्होंने नौकरी की।

छायावाद के प्रणेता व विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार समझे जाने वाले दिनकर ने 1935 में जब 'रेणुका' नामक कविता संग्रह की रचना की तो उनका तबादला पटना निबंधन कार्यालय से बाढ़ कार्यालय कर दिया गया। 1938 में जब कविता संग्रह 'हुंकार' प्रकाशित हुआ तब उनपर ब्रिटिश सरकार विरोधी होने के आरोप लगे।

उनका तबादला नरकटियागंज कर दिया गया। इसके बाद जब-जब उनकी कोई नई पुस्तक प्रकाशित होती, उनका तबादला भी साथ-साथ होता रहता। हर बार उनके ऊपर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ काम करने के आरोप लगाए गए।

1942 के आंदोलन में उनकी नौकरी किसी तरह बच गई परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होते ही ब्रिटिश हुकूमत का शिकंजा कसने लगा। उन्हें नौकरी छोडऩे को बाध्य किया जाने लगा। ब्रिटिश हुकूमत ने उनका तबादला 1945 में प्रचार विभाग में उप निदेशक के पद पर कर दिया।

ब्रिटिश हुकूमत को उनसे बस यही शिकायत रहती थी कि वे हमेशा उसके विरोध में कविताएं लिखते थे जिससे क्रांतिकारी आंदोलन की आग को हवा मिलती थी। तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर को उनका यह तेवर पसंद नहीं आता था और उनका तबादला कर दिया जाता था।

अपने नौकरी के कार्यकाल में ही उन्होंने 'रेणुका', 'हुंकार', 'रसवंती', 'द्वंद्व गीत', 'कुरुक्षेत्र', 'धूपछांह', 'समधनी', 'बापू' आदि महत्वपूर्ण कविता संग्रहों की रचना की थी। दिनकर को उनकी रचना 'उर्वशी' के लिए 1972 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1959 में भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान एवं 1959 में ही 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ था।

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नहीं बदली राष्ट्रकवि के गांव की सूरत
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के पैतृक गांव सिमरिया की सूरत में सुधार नहीं हो पाया है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा उनके गांव का कायाकल्प नहीं किया जा सका है। दावे जरूर हुए हैं। बेगूसराय के सांसद डॉ. भोला ङ्क्षसह द्वारा सिमरिया को आदर्श ग्राम बनाने की घोषणा की गई।

घोषणा के दो वर्ष बाद भी अभी तक सिमरिया के लोग रहन-सहन, पठन-पाठन, स्वास्थ्य, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, 24 घंटे बिजली, सड़क, खेल मैदान सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं की आस लगाए हैं। 

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