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चित्रगुप्त पूजा पर विशेष: कंम्यूटर युग में भी कलम-दवात से कायम है रिश्ता

भगवान चित्रगुप्त की पूजा आज कंप्यूटर युग में भी उसी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है, जिस आस्था के साथ इसे कलम दवात के जमाने में की जाती थी।

By Ravi RanjanEdited By: Updated: Sat, 21 Oct 2017 10:50 PM (IST)
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चित्रगुप्त पूजा पर विशेष: कंम्यूटर युग में भी कलम-दवात से कायम है रिश्ता

पटना [जेएनएन]। यमलोक में मृत्युलोक वासियों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा आज कंप्यूटर युग में भी उसी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है, जिस आस्था के साथ इसे कलम दवात के जमाने में की जाती थी। आज जमाने के साथ भले ही लेखन की परंपरा बदल गई है, लेकिन वह आस्था कंप्यूटर युग में आज भी पूर्ववत बरकरार है।

कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाने वाली इस पूजा में कायस्थ समाज के लोग आज भी कलम दवात की पूजा करते हैं। खास बात यह कि इस दिन वे कलम को लेखनी के लिए स्पर्श तक नहीं करते हैं। हालांकि, बदलते जमाने में पूरे दिन कलम स्पर्श नहीं करने की मान्यता गौण हो गई है। मोतिहारी के रहने वाले जीवन बीमा निगम में काम करने वाले कौशल किशोर कहते हैं कि अब कंप्यूटर व कंपोजिंग का जमाना है। ऐसे में कलम न छूने की परंपरा का निर्वहन करने में काम अब आड़े नहीं आता।

पूजा में ही काम आती है दवात

एक समय था जब दवात की स्याही में कलम डुबोकर लिखने की परंपरा थी। तब दुकानदार को अपना लेखा जोखा रखना होता था या बच्चों को अपनी पढ़ाई करनी होती थी, उसी का उपयोग होता था। अब तो दवात की अहमियत केवल पूजा तक ही सिमट कर रह गई है। अब वह दिन कहां जब बच्चे दवात में कलम डुबोकर कापियों को अपनी लेखनी से भरा करते थे।

कैसे आया बदलाव

कंडा की कलम और दवात से शुरू परंपरा आज लीड व प्वाइंटर वाले पेन तक पहुंच गई है। कलम दवात के बाद पहले फाउंनटेन पेन (स्याही भरकर लिखने वाली नीब वाली कलम) का जमाना आया। फिर लीड व प्वांटर वाले पेन आए, यूज-थ्रो और फिर जेल पेन का जमाना आया और अब तो ब्रांडेड पेन भी आ गए हैं। इन सबसे अलग लेखनी की परंपरा ने कंप्यूटर के की-बोर्ड को भी अपना लिया।

क्या कहते हैं समाज के लोग

पटना के डॉ. अमिताभ कहते हैं कि जमाने के साथ लेखन की परंपरा आज भले ही बदल गई हो, लेकिन, आज भी पूजा को लेकर आस्था की डोर तनिक भी कमजोर नहीं हुई है। कलम दवात के आराध्य देव की पूजा उस समय भी उसी आस्था के साथ की जाती थी, जितनी आस्था के साथ आज की जाती है।

अमेरिका में एक निजी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट रितम प्रिया का कहना है कि हम परेदश में हों या अपने देश में, भगवान चित्रगुप्‍त की पूजा आस्‍था और विश्‍वास के साथ करते हैं। विदेश में भी परंपराओं का निर्वहन करते हैं।

भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कैसे


प्राचीन ग्रंथों के आधार पर कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के मुख्य से ब्रह्माण, बाहु से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पाव शुद्र की उत्पति हुई तथा इनके वर्ण के आधार पर कार्य संपादित होते रहे। ब्रह्म जी की आज्ञा से धर्मराज जी सबका कार्य देखते रहे।

काफी परेशानी के बाद ब्रह्मा जी 10 हजार वर्ष तक महाविष्णु जी का ध्यान लगाएं, जब ध्यान टूटा तो उनके सामने एक दिव्य पुरूष हाथ में कलम-दवात, छुरी तथा पीतांबर वस्त्र खड़े थे। यहीं अवतारी पुरूष भगवान चित्रगुप्त है।

विशेष पूजा में क्या है

चूंकि कायस्थ लोग भगवान चित्रगुप्त के वंशज है। चित्रगुप्त जी सभी जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं तथा कर्मो के आधार पर दण्ड की व्यवस्था करते है। इसलिए कलम, दावात की पूजा विशेष तौर पर की जाती है। लेखनी ही जीविकोपार्जन का मुख्य साधन रहा है। इसी मंत्र को लिखकर भगवान के प्रति समर्पित करते है।