रूठते-मनाते 25 सालों से चल रहा RJD-कांग्रेस का साथ, कभी बनी तो कभी बिगड़ी बात; ऐसा रहा उतार-चढ़ाव भरा अब तक का सफर
Bihar Politics राजनीतिक दलों में प्रतिद्वंदिता के किस्से तो आम हैं लेकिन इनके बीच दोस्ती के भी अलग मायने होते हैं। आमतौर पर यह दोस्ती फायदे-नुकसान को देखते हुए होती है तो कई बार चुनावी मजबूरियां भी होती हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और राष्ट्रीय कांग्रेस की दोस्ती भी ऐसी ही दोस्ती है। रूठते-मनाते इनका रिश्ता 25 सालों से चल रहा है।
सुनील राज, पटना। राजनीतिक दलों में दोस्ती के अपने ही मायने-मतलब होते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह दोस्ती फायदे-नुकसान को तौल लेने के बाद ही होती है। कई बार चुनावी मजबूरियां भी दोस्ती के लिए मजबूर कर देती हैं। इससे फायदा तो जरूर होता है, लेकिन फायदा हर बार हो यह जरूरी नहीं।
25 सालों से चल रहा रूठने-मनाने का सिलसिला
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और राष्ट्रीय कांग्रेस की दोस्ती भी ऐसी ही दोस्ती है। दोनों दल अपने राजनीति में अपने नफे के लिए बीते 25 सालों से साथ चल रहे हैं। इन 25 वर्षो में इन दोनों दलों ने अब पांच लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़े।
तीन बार विधानसभा चुनाव साथ लड़े, मगर चुनावों में विशेषकर लोकसभा चुनाव में बहुत फायदा नहीं मिला। हालांकि बीते 25 सालों में चार चुनाव में दोनों दल मामूली बात पर अलग भी हुए। लेकिन, इसके बाद भी आशा के अनुरूप सफलता नहीं प्राप्त कर पाए।
इस बार भी साथ-साथ चुनावी मैदान में दोनों दल
इस बार दोनों दल एक बार फिर साथ-साथ चुनाव मैदान में हैं। काफी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस राजद से नौ सीटें प्राप्त करने में सफल रही है। कांग्रेस के मुकाबले राजद 23 सीटों पर मैदान में है।
इन दो दलों की दोस्ती की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। 1989 भागलपुर दंगों के बाद कांग्रेस, राजद के मुस्लिम कार्ड में ऐसी फंसी की 1990 का चुनाव वह बुरी तरह हारी। बिहार की सत्ता में कांग्रेस का दौर यहां से समाप्त हुआ और लालू प्रसाद का दौर शुरू हो गया।
1998 में कांग्रेस ने राजद की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ
1995 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस बुरी तरह पराजित रही। एकीकृत बिहार (तब झारखंड बिहार का हिस्सा था) की 324 सीटों पर कांग्रेस ने किस्मत आजमाई, परंतु जीत उसे 29 सीटों पर ही मिली। जबकि राजद ने 167 सीटें जीती। कांग्रेस ने भांप लिया था कि बिहार में उसका दौर समाप्त हो चुका है।
लिहाजा 1998 में उसने राजद की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और दोनों दलों ने पहली बार 1998 में मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा। लोकसभा की 54 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने आठ सीटों पर लड़कर चार पर जीत हासिल की। राजद 17 सीटें जीतने में सफल रहा।अगले ही साल फिर लोकसभा चुनाव की नौबत आ गई और इस बार कांग्रेस ने दो और राजद ने सात लोकसभा सीटों पर जीत प्राप्त की। 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीते दो चुनाव में हुए घाटे को देखते हुए अकेले चुनाव लड़ा।
विधानसभा के उन चुनावों में कांग्रेस के खाते में 23 जीत आई तो राजद के खाते में 124 जीत। परंतु बहुमत के आंकड़े से राजद दूर रहा। लिहाजा नीतीश कुमार सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। लेकिन, नीतीश कुमार को हटाने के लिए कांग्रेस राजद के साथ वापस आ गई और राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बन गई।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।