बिहार में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी अभी से इसकी तैयारी में जुट गई है। हालांकि सम्राट चौधरी को प्रदशे अध्यक्ष बनाए जाने के बाद नई प्रदेश कार्यकारिणी के चयन में काफी देरी हुई है। दरअसल नए चेहरों को चुनाव करना सम्राट के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इसी पर भाजपा की रणनीति आगे बढ़ेगी।
By Raman ShuklaEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sun, 16 Jul 2023 09:49 PM (IST)
रमण शुक्ला, पटना। अगले वर्ष लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव है। बिहार की सत्ता से बाहर हो चुकी भाजपा के लिए इन दोनों चुनावों में श्रेष्ठ प्रदर्शन की चुनौती होगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ही केंद्रीय नेतृत्व ने सम्राट चौधरी को प्रदेश संगठन की कमान सौंपी थी और अब सम्राट अपनी टीम सजा ली है।प्रदेश पदाधिकारियों के साथ राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों के चयन में इसीलिए इतनी देरी हुई, क्योंकि उन चेहरों पर पार्टी में सर्व-सम्मति बनाई जा रही थी।
जो संगठन में निर्धारित दायित्वों का निर्वहन करते हुए चुनावी मैदान में उतरने वाले भाजपा के रणबांकुरों को जीत दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
पुराने लोगों को भी मिल रही उचित जगह
पुरानी प्रदेश कार्यकारिणी के उन लोगों को नई कार्यकारिणी में भी यथोचित स्थान मिल रहा है, जो संगठन कार्य में दक्ष हैं।हालांकि, नई कार्यकारिणी में 70 प्रतिशत चेहरे नए होंगे। इनका चयन जातीय-सामाजिक समीकरण के साथ मुखरता आदि की कसौटी पर हुआ है।
रणनीति का सख्ती से पालन
पार्टी ने संगठन में जनप्रतिनिधियों को कम से कम स्थान देने की रणनीति का भी सख्ती से पालन करने का लक्ष्य तय किया है। अब संभावना है कि अगले दो से तीन दिनों को अंदर सम्राट अपनी नई टीम की घोषणा कर देंगे।सम्राट को डॉ. संजय जायसवाल के नेतृत्व वाली कार्यकारिणी मिली थी। जायसवाल के नेतृत्व वाली कार्यकारिणी में भी कई नए चेहरे सम्मिलित किए गए थे और कुछ पुराने पदाधिकारियों की पदोन्नति हुई थी।
पदोन्नति का आधार संगठन कार्य में उनका योगदान और अनुभव रहा। वह पैमाना इस बार भी उपयोग किया गया।इसका तात्पर्य यह कतई नहीं कि पदाधिकारियों की सूची से बाहर होने वाले लोगों को पार्टी अक्षम-अयोग्य मान रही। आवश्यकता के अनुसार उनका उपयोग अब अन्यत्र होगा।अभी पार्टी के लिए चुनाव में जीत का लक्ष्य है और इसीलिए उन चेहरों को विशेष रूप से प्रमुखता मिल रही, जो फ्रंट पर आकर मोर्चा लेते हैं।
चूंकि, इस बार मुकाबला उस महागठबंधन से है, जिसमें कल का सहयोगी जदयू भी शामिल है, इसलिए सम्राट को जुझारू और मुखर लोगों की टीम चाहिए।सम्राट स्वयं भी बेबाक राय देते हैं। स्वाभाविक है कि उनके नेतृत्व में ऐसे लोगों को प्रश्रय मिले।
अभी प्रदेश कार्यकारिणी में 111 सदस्य
प्रदेश पदाधिकारियों के साथ अभी की कार्यकारिणी में कुल 111 सदस्य हैं। पदाधिकारियों में प्रदेश संगठन महामंत्री को छोड़कर चार महामंत्री, 12 उपाध्यक्ष और 12 प्रदेश मंत्री हैं। नौ प्रदेश प्रवक्ता हैं।
इसके अलावा क्षेत्रीय संगठन मंत्री हैं। 15 प्रतिशत सदस्य स्थायी आमंत्रित होते हैं। यह तो पार्टी में संविधानिक प्रविधान है। वहीं, दस से लेकर सौ विशेष आमंत्रित सदस्य पूर्व के अध्यक्ष बनाते रहे हैं।महत्वपूर्ण यह कि वर्तमान कार्यकारिणी में वैश्यों का दबदबा है। ऐसे में सम्राट के सामने जातीय संतुलन को साधने की बड़ी चुनौती है।जातीय स्वरूप की चर्चा करें तो वर्तमान कार्यकारिणी में सवर्ण और पिछड़ा वर्ग से 13-13, अति पिछड़ा वर्ग से सात, अनुसूचित जाति से तीन के साथ मुस्लिम समुदाय से एक पदाधिकारी है।
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