Sharda Sinha: मुंगेर के इसी घर में बिहार की स्वर कोकिला ने बिताए 4 साल, निधन की खबर से पसरा मातम
शारदा सिन्हा का मुंगेर की धरती से भी गहरा नाता रहा है। उन्होंने साल 1990 से 1994 के बीच लगभग 4 साल का समय मुंगेर में बिताया। वो पति और बच्चों के साथ मुंगेर में एक किराए के मकान में रहती थीं। इस दौरान आस-पास रहने वालों लोगों के साथ भी उनके रिश्ते काफी अच्छे थे। शारदा सिन्हा के निधन की खबर सुनने के बाद लोग गमगीन हैं।
कामेश, मुंगेर। पद्मश्री, पद्मविभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का योग नगरी (मुंगेर) से भी गहरा लगाव रहा है। दिवंगत लोक गायिका लगभग तीन से चार वर्ष तक बेलन बाजार स्थित बंगाली टोला में पति और दोनों बच्चों के साथ रवि सिंह के मकान में रहीं। उस वक्त दोनों बच्चे छोटे थे। उनके पति डॉ. ब्रिज भूषण सिन्हा जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसई) पद पर थे। तब शारदा सिन्हा अपनी गायिकी से उतनी फेमस नहीं हुई थी, लेकिन उनका संगीत से गहरा लगाव था।
घर में करती थीं भजन
संगीत से गहरा लगाव होने के कारण वह जिस किराए के मकान में रहती थीं, वही भक्ति भजन किया करती थीं। वहीं मोहल्ले की महिलाएं भी उनके भजन सुनकर वहां पहुंच जाती थीं।पड़ोस के रामउदय कुमार, संजय चौधरी और अजय कुमार ने बताया कि वह बहुत ही सरल स्वभाव की थीं। साथ ही उनका संगीत से गहरा लगाव था। वह लोगों के घरों में आयोजित समारोह में शामिल होती थीं। मोहल्ले के लोगों से उनक काफी लगाव था। पति 1990 से 1994 के बीच मुंगेर में थे। बाद में डॉ ब्रिज भूषण सिन्हा शिक्षा विभाग में रिजनल डिप्टी डायरेक्टर के पद से रिटायर हो गए।
आखिरी बार 24 साल पहले यहां आईं
शारदा सिन्हा अपने पति और दोनों बच्चों के साथ रवि सिंह के मकान में नीचे तल्ले पर रहती थीं। मुंगेर से उनके पति के स्थानांतरण हो जाने के बाद भी वह लोगों से मिलने के लिए कभी-कभी मोहल्ले में पहुंचती थी। लगभग साढ़े तीन वर्षों में मुंगेर रहने के दौरान बनी अपनी महिला मित्रों से मिलने के लिए वह आती रहती थीम। पड़ोसी रामउदय बताते हैं कि वह आखिरी बार वर्ष 2000 में मुंगेर आईं थीं। शारदा सिन्हा के निधन की खबर मिलने के बाद यहां रहने वाले लोग गमगीन हैं।
आस्था से गहरा रिश्ता, सहेलियों के साथ जाती थीं मंदिर
यहां रहने के दौरान साथ रहने वाली सहेली नीलम सिंह व प्रेमलता चौधरी बतातीं हैं कि वह काफी मृदुल भाषी स्वभाव की थीं। मां दुर्गा और माता चंडिका स्थान पर परम आस्था थी। वह सहेलियों के साथ दुर्गा मंदिर व चंडिका स्थान जाती थीं। वहां भी बिना माइक के ही माता का गीत भजन करतीं थीं। तब उनकी आवाज सुनने के लिए मंदिर परिसर में भीड़ उमड़ जाती थी।
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