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Sharda Sinha: शारदा सिन्हा ने 7 साल पहले ससुराल में गाया था ये गीत, अब सोशल मीडिया पर तेजी से हो रहा वायरल

Sharda Sinha Death News बिहार की स्वर कोकिला कही जाने वाली भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा अब इस दुनिया में नहीं रहीं। उनके बेटे ने सिन्हा के ही आधिकारिक फेसबुक पेज पर एक पोस्ट के माध्यम से यह जानकारी प्रशंसकों के साथ साझा की। बता दें कि इसके बाद से ही शारदा सिन्हा को लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनका एक गीत वायरल भी हो रहा है।

By Vidya sagar Edited By: Yogesh Sahu Updated: Wed, 06 Nov 2024 01:04 AM (IST)
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भोजपुरी लोकगीत गायिका शारदा सिन्हा को लोग दे रहे श्रद्धांजलि।
विद्या सागर, पटना। सात वर्ष पूर्व अपने ससुराल में स्वर कोकिला शारदा सिन्हा ने अपने गीत से लोगों को भाव विभोर किया था। मौका था बेगूसराय जिले के मंझौली में 18 मई 2017 को आयोजित जय मंगला काबर महोत्सव का।

ससुराल में अतिथि के रूप में पहुंची शारदा सिन्हा ने मंच पर मौजूद तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद के सम्मान में मैथिली के प्रसिद्ध कवि विद्यापति की जय जय भैरव असुर-भयाउनि गीत से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

मंच से उन्होंने पांच मिनट की प्रस्तुति दी थी। अपने सुरीले स्वर में जब उन्होंने जय-जय भैरव असुर-भयाउनि, पसुपति-भामिनि माया, सहज सुमति बर दिअहे गोसाउनि अनुगति गति तुअ पाया, बासर-रैनि सबासन सोभित चरन, चंद्रमनि चूड़ा, कतओक दैत्य मारि मुंह मेलल, कतन उगिलि करु कूड़ा गाया था।

कार्यक्रम में उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। मंलगवार को उनके निधन की सूचना के बाद उनके इस गीत का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर तेजी से प्रसारित हो रहा है।

बता दें कि शरदा सिन्हा की शादी बेगूसराय जिले के मटिहानी प्रखंड के सिहमा गांव में वर्ष 1965 में ब्रजकिशोर सिन्हा से हुई थी।

इंटरनेट मीडिया पर याद कर रहे लोग

  • एम्स में अंतिम सांस लेने की सूचना के बाद से ही पद्म भूषण से सम्मानित शरदा सिन्हा से जुड़ी स्मृतियां लोग इंटरनेट मीडिया पर साझा कर रहे हैं।
  • उनके पैतृक गांव से लेकर ससुराल तक के लोग अपनी संवेदना के साथ उनके गीतों को शेयर कर ही रहे हैं, जहां कार्यक्रम में उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी, वहां के लोग भी उनसे जुड़ी स्मृतियों को साझा कर शब्दांजलि दे रहे हैं।

छठ का स्वर अनंत में विलीन हो गया...

लाल दमकती बिंदिया, सिंदूर भरी मांग, चश्मे के पीछे चमकती मुस्कुराती बड़ी बड़ी अंखियां, माटी की खनक, मिजाज की ठसक, गरिमा और मातृत्व से लबालब आत्मीय मुस्कान.. फोन पर "कहो मालिनी, कैसी हो" आह.. अब कभी यह छलकता स्वर सुनने को नहीं मिलेगा। जिस युग में स्त्रियों का बाहर निकलना भी एक बड़ी बात थी, आपने कला जगत में स्त्रियों की उपस्थिति को सम्मान दिलाया, सबको सिखाया कि कलाकार यदि चाहे, तो अपनी कला के दम पर अपनी माटी अपनी बोली अपने अंचल अपनी संस्कृति का पर्याय बन सकता है। भारतीय संस्कृति, और भोजपुरी को शारदा सिन्हा दीदी ने जो उत्कर्ष और गरिमा प्रदान की उसका आकलन कर पाना असम्भव है। आप जहां रहेंगी, शारदा सी सबकी प्रार्थनाओं में रहेगी। अनंत की यात्रा के लिए आपका प्रस्थान शांतिमय हो। विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। - मालिनी अवस्थी

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