बिहार में दुर्गा पूजा की शुरुआत की रोचक है कहानी, पटना के बंगाली अखाड़े में अनोखी परंपराएं
Shardiya Navratri 2022 दुर्गा पूजा की मौजूदा परंपरा की बिहार में शुरुआत की कहानी रोचक है। यह परंपरा बिहार में बंगाल से आई। बंगाल के लोगों ने ही बिहार में विशाल पंडाल और भव्य मूर्तियां स्थापित करने की परंपरा शुरू की थी।
पटना, जागरण टीम। Durga Puja in Bihar 2022: बिहार में दुर्गा पूजा के मौजूदा स्वरूप के पीछे बंगाली लोग रहे हैं। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल के बाद अगर कहीं दुर्गा पूजा धूमधाम से होती है, तो वह दो-तीन राज्य बिहार, झारखंड और असम ही हैं। इसके पीछे कारण यह है कि ये इलाके बंगाल से काफी नजदीक हैं और इनका आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव रहा है। क्या आपको पता है कि बिहार में दुर्गा पूजा की संस्कृति को बढ़ाने में रेलवे का सबसे अहम रोल रहा? इस स्टोरी में हम आपको पटना के बंगाली अखाड़े के बारे में भी बताएंगे।
रेलवे स्टेशनों से हुुुई पंडाल बनाने की शुरुआत
दरअसल, बिहार और असम में रेल के विकास के बाद काफी संख्या बंगाली इन क्षेत्रों के रेलवे स्टेशनों पर तैनात किए गए। यह बात ब्रिटिश राज की है। इसलिए खासकर, बिहार और झारखंड के तमाम शहरों में दुर्गा पूजा में विशाल पंडाल बनाने और मूर्तियां स्थापित करने की परंपरा रेलवे स्टेशनों और रेलवे कालोनियों से शुरू हुई। स्थानीय लोगों को यह संस्कृति भा गई और बिहार में दुर्गा पूजा का भव्य स्वरूप रच-बस गया। इसकी तस्दीक बड़े रेलवे स्टेशन वाले शहरों के बुजुर्ग करते हैं। धीरे-धीरे इसका विस्तार छोटे शहरों और गांवों तक हुुुआ।
129 साल से बंगाली अखाड़े में हो रही दुर्गा पूजा
पटना के लंगरटोली स्थित सूर्योदयान पूजा सेलिब्रेशन कमेटी बंगाली अखाड़ा पिछले 129 सालों से दुर्गा पूजा का आयोजन करते आ रही है। इस बार यहां दुर्गा पूजा का 130वां वर्ष हो रहा है। कमेटी के प्रधान पुरोहित अशोक कुमार घोषाल बताते हैं कि पूजा की शुरुआत बिहार साव लेन शरद कुमार के घर से 1893 में हुई थी। उस जगह को टुनटुन सिंह का बगीचा कहा जाता था। उस समय दो से तीन फीट की मूर्ति ही स्थापित होती थी और छोटे स्तर पर सामान्य ढंग से पूजा होती थी। दो वर्षों तक यानी 1893 से 1895 तक वहां पर पूजा हुई।
पंडाल से लेकर प्रतिमा तक में बंगाली शैली
इस बार पंडाल की ऊंचाई 35 फीट और चौड़ाई 50 फीट होगी। पंडाल का निर्माण पटना के कारीगर कर रहे हैं। पंश्चिम बंगाल के निमाई पाल की टीम मां की प्रतिमा बना रहे हैं। प्रतिमा में मां की शक्ति रूप दिखाई देगी। यहां पर बंगाली ढाक पंडाल की शोभा बढ़ाएगी। पूजा कमेटी में अध्यक्ष नीशीत कुमार बोस, जेनरल सेक्रेट्री गौतम बनर्जी, कोषाअध्यक्ष सुदीप ब्रह्मचर्य समेत कई लोग शामिल है।
विनोद बिहारी मजूमदार ने दान में दिया था बंगाली अखाड़ा
1896 में वकील बिहारी मजूमदार ने पूजा कमिटी को बंगाली अखाड़ा का जमीन दे दिया। उस समय से दुर्गा पूजा का आयोजन बंगाली अखाड़ा में हो रहा है। विनोद बिहारी मजूमदार पटना हाईकोट के वकील थे। और पूजा कमिटी के संस्थापक सदस्य भी थे। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए बंगाली अखाड़ा में गुप्त बैठक हुआ करती थी। शुरुआत के दिनों में बंगाली अखाड़ा में शेड के नीचे दुर्गा पूजा का आयोजन छोटे पैमाने पर हुआ करती थी।
वर्धमान से आते थे ढाक बजाने वाले
ढाक वाले वर्धमान से ढ़ाक बजाने आया करते थे। बंगाली अखाड़ा में अखाड़ा चलता था इसलिए शक्ति की पूजा के लिए यहां दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाने लगा। इस अखाड़े में राष्ट्रीय वेटलिफ्टिंंग, बाडी बिल्डिंग और पावर लिफ्टिंंग की प्रतियोगिता भी हो चुकी है। आखिरी बार यहां पर 1969 राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। यह पटना का दूसरा सबसे पुराना पूजा कमेटी है।
चार पीढ़ियों से एक ही परिवार करा रहा पूजा
सूर्योदयान पूजा सेलिब्रेशन कमेटी बंगाली अखाड़ा के प्रधान पुरोहित अशोक कुमार घोषाल बताते हैं कि यहां पर सबसे पहले मेरे पूजा कमेटी की स्थापना के बाद से मेरे परदादा ग्रीश चंद्र विधारत्न पूजा कराते थे। उनके निधन के बाद दादा श्यामा प्रसाद घोषाल पूजा कराने लगे। दादाजी के बाद मेरे पिताजी सतीश चंद्र घोषाल इस कमेटी के लिए पूजा किए।
नवरात्र में छोड़ देते हैं मांस-मछली खाना
पिताजी के बाद अब मैं इस कमेटी के लिए 1990 से लगातार पूजा करते आ रहा हूं। नवरात्र में हमलोग मांस-मछली नहीं खाते हैं। षष्ठी से हमारे यहां कलश स्थापना होती है। कलश स्थापना के दिन से ही मैं उपवास पर चला जाता हूं। दिनभर पानी और फल और शाम में आटे की रोटी खाता हूं। बंगाली पूजा विधान के अनुसार शाम में पूजारी चावल का ग्रहण नहीं करते हैं।