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जयंती विशेष: जमींदारी प्रथा को खत्‍म करने वाले प्रथम मुख्‍यमंत्री थे श्रीबाबू

श्रीबाबू के कार्यकाल में बिहार की प्रति व्यक्ति आय तब पूरे राष्ट्र की तुलना में दूसरे स्थान पर थी। पारंपरिक दकियानुसी कृषि तंत्र को विकासोन्मुख, वैज्ञानिक एवं ठोस आधार प्रदान किया।

By Ravi RanjanEdited By: Updated: Sat, 21 Oct 2017 10:51 PM (IST)
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जयंती विशेष: जमींदारी प्रथा को खत्‍म करने वाले प्रथम मुख्‍यमंत्री थे श्रीबाबू

पटना [रवि रंजन]।  बिहार केसरी और आजाद भारत में सूबे के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की आज 130 वीं जयंती है। 'श्रीबाबू' के नाम से ख्याति प्राप्त श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर, 1887 को बिहार के मुंगेर ज़िले में हुआ था। लोगा आज भी उन्‍हें समाजिक न्‍याय के पुरोधा और आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में याद करते हैं।

श्रीबाबू अद्भुत कर्मठता उत्कृष्ट वाग्मिता, निःस्पृह लोक सेवा, प्रखर राजनीतिक सूझ-बूझ, अनुकरणीय त्याग, प्रकांड पांडित्य, गंभीर अध्ययनशीलता, अनुशासन, न्यायप्रियता, स्वाभिमानी देशभक्ति, प्रशासनिक दृढंता, दुर्जेय आत्मविश्वास, निष्पक्षता, धर्म निरपेक्षता एवं सर्वजनवरेण्य नेतृत्व के मूर्तिमान प्रतीक थे।

आजादी के 70 साल बाद भी हमारा देश समाज जातीय बंधन से नहीं निकल सका है। ऐसे में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बिहार केसरी डॉ श्री कृष्ण सिंह के विचारों की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। श्रीबाबू की देश की आजादी के साथ-साथ आजादी के बाद भी राज्य के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

वे जाति-पाति के बंधनों के शुरू से ही खिलाफ थे। उनके प्रयास से ही देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर में दलित जातियों को प्रवेश दिलाया गया था। बिहार में यदि जमींदारी प्रथा उन्‍मूलन की बात की जाये, तो इसके पीछे श्रीबाबू का ही हाथ है।

भारत की आजादी में श्रीबाबू की भूमिका

श्रीकृष्ण सिंह बचपन से ही काफी मेधावी थे। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.ए. और क़ानून की डिग्री ली फिर अपने गृह नगर मुंगेर में ही वकालत की शुरूआत की। वे छात्र जीवन से क्रांतिकारी श्रीअरविंद के आलेखों तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के उद्गारों से अत्यंत प्रभावित थे। महात्मा गांधी से उनकी पहली मुलाकात 1911 में हुई और उनके विचारों से प्रेरित होकर ये उनके अनुयायी बन गए।

असहयोग आंदोलन के दौरान ही उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर काफी चलती वकालत छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक काम में लगाया। आंदोलन के दौरान ही वो साइमन कमीशन के बहिष्कार और नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर गिरफ्तार करने के बाद जेल भी भेजे गए थे।

गर्म कड़ाही को पकड़ लिया था मुट्ठियों से

नमक सत्याग्रह के समय गाँधी जी ने आगाह किया था कि मुट्ठी टूट जाय पर खुले नहीं। 1930 में श्रीबाबू जब गढ़पुरा में नमक बनाने लगे तब पुलिस ने नमक के कड़ाह को चूल्हे पर से उतारने का भरपूर प्रयास किया। किन्तु श्रीबाबू ने तप्त कराह की डंटियों को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ ली और उबलते पानी पर अपनी छाती सटा दी थी।

असहनीय ताप से उनके हाथ और छाती में फफोले पड़ गये थे लेकिन मुँह से आह तक नहीं निकली। यह एक सच्चे सत्याग्रही के अदम्य साहस का परिचायक था। राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है कि जब पुलिस के जवान उन्हें बलपूर्वक खींच कर हटाने लगे तो जवानों की आँखों से आँसू निकल रहे थे। इसी मार्मिक दृश्य से अभिभूत होकर राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा हैः

    ”यह विस्मय बड़ा प्रबल है,

    बल को बलहीन रिझाते।

    मरनेवाले हंसते हैं,

    आँसू है वधिक बहाते।”

उनके साहस एवं समर्पण से प्रभावित हो गाँधीजी ने 1940 में उन्हें बिहार का प्रथम सत्यग्राही घोषित किया था।

श्रीकृष्‍ण सिंह का राजनीतिक सफर

श्रीकृष्ण सिंह साल 1937 में केन्द्रीय असेम्बली और बिहार असेम्बली के भी सदस्य चुने गए थे। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए गांधीजी ने उन्हें बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल में भी बंद रहे।

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरत बाद का मर्मस्पर्शी वक्तव्य

“आजाद होने के बाद हमें जो करना है वह निर्माणात्मक है। पहले हमें जोश पैदा करना था और वह काम बड़ा आसान था। आज हमें देश के करोड़ो लोगों के नजदीक पहुँच कर उनके हृदय तथा मस्तिष्क को छूना है ताकि उनके भीतर देश के निर्माण में योग देने वाली जो शक्ति कुंठित होकर बैठी है, वह जीवन को सुंदर बनाने के लिए काम करने की उत्कट इच्छा के रूप में प्रवाहित हो सकें।”

राष्ट्रकवि दिनकर ने भी इन्हीं भावनाओ को अपनी कविता में समावेश किया हैः


    “भग्न मंदिर बन रहा है, स्वेद का बल दो,

    रश्मियाँ अपनी निचोड़ो, ज्योति उज्ज्वल दो।”

श्रीबाबू के समय में बिहार को सर्वश्रेष्ठ प्रशासित राज्य घोषित किया गया था

पटना विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ़ लॉ की उपाधि से सम्मानित श्रीबाबू को अगर सामाजिक न्याय और सुधार का पुरोधा माना जाता है तो आधुनिक बिहार निर्माता भी। दुनिया में उस दौरान सबसे बड़े एडमिनिस्ट्रेशन एक्सपर्ट माने जाने वाले शख्स एपेल्वी को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खासकर राज्य सरकार के कार्यकलापों का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए बुलाया था। श्री एपेल्वी ने तब बिहार को सर्वश्रेष्ठ प्रशासित राज्य घोषित किया था।

श्रीबाबू ने बिहार को समाजिक और आर्थिक विकास के रास्‍ते पर आगे बढ़ाया


श्रीकृष्‍ण सिंह भारत के प्रथम मुख्यमंत्री थे जिन्होंने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया। दलितों को बैद्यनाथधाम मंदिर में प्रवेश दिलवाकर उन्होंने सामाजिक सशक्तीकरण की दिशा में सकारात्मक पहल का प्रमाण दिया। दरिद्रता, अशिक्षा, रूढिवादिता, कुपोषण एवं संकीर्णता आदि से ग्रसित समाज को हर क्षेत्र में विकास की रोशनी दिखाई। वे अल्पसंख्यक के हितों के प्रबल पोषक तथा पहरेदार थे।

वहीं उनके कार्यकाल में बिहार में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनइरिंग उद्योग, हैवी इंजीनीयरिंग कॉरपोरेशन, भारत का सबसे बड़ा बोकारो इस्पात प्लांट, देश का पहला खाद कारखाना सिंदरी में, बरौनी रिफाइनरी, बरौनी थर्मल पॉवर प्लांट, पतरातू थर्मल पॉवर प्लांट, मैथन हाइडेल पावर स्टेशन एवं कई अन्य नदी घाटी परियोजनाएं स्थापित किया गया।