..तो सुर लगा पटना का, वाद्ययंत्रों की सबसे पुरानी दुकान दास एंड कंपनी
पटना का संगीत से रिश्ता पुराना है। राजधानी पटना का सबसे पुराना दुकान दास एंड कंपनी है जहां संगीत के उपकरण मिलते है।
By JagranEdited By: Updated: Sat, 09 Jun 2018 01:36 PM (IST)
पटना [प्रभात रंजन]। पटना का संगीत से रिश्ता पुराना है। इस रिश्ते का एक महत्वपूर्ण तार जुड़ता है मुरादपुर स्थित दास एंड कंपनी से। लगभग सौ साल पुरानी यह दुकान खुद में इतिहास है। शारदा सिन्हा से लेकर शांतनु राय तक हर बड़े-छोटे कलाकार का इस दुकान से रिश्ता रहा है।
अशोक राजपथ पर पीएमसीएच के ठीक सामने राजधानी की वाद्ययंत्रों की सबसे पुरानी दास एंड कंपनी है। दुकान में घुसते ही नजर वाद्ययंत्रों पर लिखी किताबों पर पड़ती है। काउंटर पर प्रवीर कुमार दास बैठे हैं। वे बताते हैं कि उनके दादा मानिक चंद दास ने पटना में पहली वाद्य यंत्र की दुकान आजादी के पहले सन् 1920 में खोली थी। दादा मानिक चंद संगीत के बड़े शौकीन थे। प्रेम ऐसा कि घंटों बैठकर हारमोनियम पर रियाज करते थे। इसी क्रम में उन्होंने हारमोनियम बजाने के साथ-साथ उसकी मरम्मत का काम भी आरंभ किया। उस जमाने में पटना में न तो कोई संगीत उपकरणों की दुकान थी और न ही उपकरणों को बनाने वाले। ऐसे में कलाकारों को काफी परेशानी होती थी। मानिक चंद दास ने इस समस्या को गंभीरता से देखते हुए पहली दुकान की नींव बिहारी साव लेन के नुक्कड़ पर खपरैल के मकान में डाली। समय के साथ शहर का माहौल बदला और दुकानों का भी कायाकल्प हुआ। खपरैल के मकान से शुरू हुई दुकान आज ईंट से बने दो मंजिले भवन में तब्दील हो चुकी है। संगीतज्ञ रामचतुर मल्लिक, रामाशीष पाठक, श्याम दास मिश्र, प्रो. सीएल दास, रीता दास, शांतनु राय, सत्येंद्र संगीत आदि कलाकारों ने यही के वाद्ययंत्रों से संगीत की दुनिया में नाम कमाया। दुकान के साथ वाद्य यंत्रों का था कारखाना मानिक चंद दास के पोते प्रवीर दास की मानें तो दादा जी ने पहले वाद्य यंत्रों की दुकान खोली थी। कुछ साल बाद खरीदारों की भीड़ बढ़ने लगी तो उन्होंने वाद्य-यंत्रों के लिए छोटे से कारखाना का निर्माण किया। जहां पर हारमोनियम, तबला, ढोलक, नाल आदि यंत्रों का निर्माण होता था। इसे बनाने के लिए कोलकाता से विशेष रूप से कलाकार आकर काम करते थे। साजों का निर्माण कार्य संपन्न होने के बाद मानिकचंद ट्यूनिंग का काम स्वयं करते थे क्योंकि उनका मानना था कि कोई भी वाद्य यंत्र कितना भी बेहतर बना हो लेकिन उससे निकलने वाली ध्वनि ठीक नहीं हो तो सुर बेकार हो जाता है। जिस कारण खास तौर पर हारमोनियम की ट्यूनिंग का काम स्वयं करते थे उसके बाद ही कलाकारों को देते थे। ऐसा राजधानी की किसी अन्य दुकानों में नहीं होता था। कई वर्षो तक वाद्य यंत्रों की मरम्मत का कार्य दुकान में होता था जो अब बंद हो गया। अभी दुकान पर वाद्य यंत्रों के खरीदने की सुविधा है।
पहले मिट्टी के बनते थे तबले
प्रवीर दास ने बताया कि समय के साथ वाद्ययंत्रों में भी काफी बदलाव आया है। दादाजी बताते थे कि पहले तबले मिट्टी को पकाकर बनाए जाते थे। इसके बाद लकड़ी के तबले बनने लगे। अब मेटल यानी पीतल और स्टील के तबले बनने लगे हैं। इसी तरह हारमोनियम भी अब लकड़ी की जगह मेटल के बनने लगे हैं। की-पैड में भी अब फाइबर का इस्तेमाल होता है।
50 से 100 रुपये में मिलते थे वाद्ययंत्र आजादी के दौर में वाद्ययंत्रों की कीमत बहुत कम थी। प्रवीर दास बताते हैं कि उस समय कोई भी वाद्ययंत्र 50 से 100 रुपये में मिल जाता था। अब तो डमरू की कीमत भी 150 रुपये है। सबसे महंगा वाद्ययंत्र सरोद है, जिसकी कीमत लगभग 85,000 रुपये है। ग्रामोफोन और माउथ ऑर्गन की होती थी बिक्री दास एंड कंपनी के मालिक मानिकचंद शास्त्रीय वाद्य यंत्रों के साथ कई अंग्रेजी उपकरणों की बिक्री करते थे। मानिकचंद के पोते प्रवीर कुमार दास बताते हैं, अंग्रेजों के राज में दुकान खुली जिसमें अंग्रेजों का भी आना-जाना लगा रहता था। उस दौरान अंग्रेज शास्त्रीय वाद्य यंत्रों से दूर रहते थे वो ग्रामोफोन एचएमवी, माउथ ऑर्गन आदि लेने और मरम्मत कराने आते थे। जिसमें काफी समय भी लगता था। इसके अलावा कई सालों तक आर्मी बैंड बाजा, सैक्सोफोन आदि की भी मरम्मत का काम दुकान में होता था। जिसे बाद में बंद कर दिया गया। धरोहर को संभाले है तीसरी पीढ़ी वर्षो से चली आ रही परंपरा और धरोहर को तीसरी पीढ़ी ने संभाल कर रखा है। दास एंड कपंनी के प्रवीर कुमार दास बताते हैं, दास एंड कपंनी को आज तीसरी पीढ़ी संभाले है। कुमार बताते हैं, मानिकचंद के बाद उनके दो पुत्र तारकचंद दास एवं एमएन दास ने काफी समय तक पिता की धरोहर को संभाल कर रखा। दादा मानिकचंद ने वाद्य यंत्रों के साथ दास रेडियो, दास इलेक्ट्रॉनिक की दुकानें विभिन्न स्थानों पर स्थापित कीं। दास रेंिडयो के नाम से पूर्वी लोहानीपुर में वाद्य यंत्रों की दुकान है जहां पर तारकचंद दास वर्ष 1980 से दुकान का संचालन कर रहे हैं। कई घरानों के कलाकारों का रहा जुड़ाव बिहार में खास तौर पर पटना शहर में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होती रही। इसमें दास एंड कंपनी के वाद्य यंत्रों का उपयोग कलाकार करते रहे। बिहार के बेतिया, दरभंगा, गया आदि के साथ बनारस, मैहर आदि घरानों से जुड़े कलाकारों का जुड़ाव दास एंड कंपनी से रहा। दरभंगा के आमता घराने के धु्रपद गायक रामचतुर मल्लिक, पंडित अभय नारायण मल्लिक, पंडित रमेश मल्लिक, पखावज वादक रामाशीष पाठक के साथ अन्य घरानों के कलाकारों का जुड़ाव दास एंड कंपनी से रहा। प्रवीर कुमार दास बताते हैं, आकाशवाणी पटना के ए ग्रेड कलाकारों की एक मात्र विश्वसनीय दुकानों में दास एंड कपंनी की पहचान है। पुरानी और नई पीढ़ी के कलाकारों का जुड़ाव आज भी दुकान से बना हैं। दुकान से जुड़े कारीगर करते हैं मरम्मत कार्य वाद्य यंत्रों की मरम्मत का कार्य दुकान से जुड़े रहने वाले कारीगर करते आ रहे हैं। प्रवीर कुमार दास बताते हैं, दुकान में वाद्य यंत्रों का निर्माण कार्य 1980 से बंद हो गया, लेकिन यंत्रों की मरम्मत आज भी दुकान से जुड़े पुराने कारीगर अलग-अलग स्थानों पर करते हैं। कारीगर हारमोनियम, तबला, वीणा, मृदंग, ढोलक, तानपुरा आदि की मरम्मत बारीकी करते आ रहे हैं। वीणा, सरोद की बिक्री न के बराबर पारंपरिक वाद्य यंत्रों में वीणा, रुद्र वीणा, सरोद, एकतारा, दिलरुबा आदि की बिक्री न के बराबर होती है, क्योंकि इस विधा की शिक्षा देने वाले और ग्रहण करने वाले उस स्तर के कलाकार अब न के बराबर हैं। ऐसे में इन वाद्य यंत्रों की बिक्री साल में एक दो बार ही बहुत मुश्किल से होती है। कुछ गिने चुने शौकीन लोग इसकी खरीदारी करते हैं। सबसे अधिक बिकता है हारमोनियम, तबला व गिटार आज के दौर में सबसे अधिक हारमोनियम, तबला, तानपुरा, बांसुरी, नाल, ढोलक, पखावज, मृदंग, गिटार, डमरू, माउथ आर्गन आदि वाद्य यंत्रों की बिक्री होती है। प्रवीर बताते हैं, समय के साथ हर चीज में बदलाव आया। वाद्य यंत्रों में भी इलेक्ट्रानिक यंत्रों का प्रयोग होने लगा है। बावजूद शास्त्रीय वाद्य यंत्रों का महत्व हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा। शास्त्रीय वाद्य यंत्र की बिक्री पर थोड़ा असर पड़ा लेकिन जो पारंपरिक चीज है उसे बदला नहीं जा सकता। संगीत और नृत्य से जुड़ी किताबों का है संग्रह शहर का एक मात्र पुरानी दुकान में दास एंड कंपनी में वाद्य यंत्रों के साथ शास्त्रीय संगीत, नृत्य से जुड़ी पुस्तकों का भी विशाल भंडार है। दुकान में इलाहाबाद, हतरस आदि दो प्रमुख संगीत संस्थानों द्वारा प्रकाशित पुस्तकें आसानी से मिलती हैं। सुर और लय से संबधी पुस्तकों के अलावा अलग-अलग वाद्य यंत्रों के लिए अलग-अलग पुस्तक दुकान में उपलब्ध है।
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